तेरे कितने रूप गोपाल |
सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल |
नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नन्द-गुपाल |
मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, युदुपाल |
चीर-हरैया, रास-रचैया, रसानंद, रसपाल |
कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण मुरारी, केशव, नृत्य-गुपाल |
वासुदेव, ऋषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधर-गोपाल |
जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल |
देवकीसुत, रणछोड जी,गोविन्द, अच्युत,जसुमतिलाल |
वर्णन क्षमता कहाँ श्याम' की राधानंद , नंदलाल |
माखन-चोर, श्याम , योगेश्वर, अब काटहु भव-जाल ||
कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए |
कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये |
ज्योति-दीप मन होय प्रकाशित,तन जगमग कर जाए |
तीन लोक में गूंजे ये ध्वनि , देव-दनुज मुसकाये |
पत्ता-पत्ता, कलि कलि झूमे, पुष्प-पुष्प खिल जाए |
नर-नारी की बात कहूँ क्या सागर उफना जाए |
बैरन छेड़े तान अजानी , मोहिनि -मन्त्र चलाये |
राखहु श्याम' मोरी मर्यादा, मुरली मन भरमाये ||
----चित्र -गूगल साभार ..