प्रेम पाती मिली, मन कमल खिल गया,
हम को ऐसा लगा, सब जहाँ मिल गया ॥
चाँद-तारे धरा पर उतरने लगे ,
पुष्प कलियों से हिलमिल के इठ्लारहे।
देके आवाज़ गुपचुप बुलाते मुझे ,
कोई प्यारा मधुर बागवाँ मिल गया॥
अक्षर -अक्षर मैं तेरी महक चंदनी
शब्द मानों तेरे ही चंचल नयन ।
भाव ह्रदय के मन की पहेली से हैं,
छंद रस प्रीति पायल की छनछन बने ।।
पढ़के ऐसा लगा प्रेम सरिता का मन ,
तोड़ तटबंध निर्झर बना बह गया।
ख़त तुम्हारा मिला, मन कमल खिल गया ,
पढ़ के ऐसा लगा सब जहाँ मिल गया ।
प्रेम पाती मिली, मन कमल खिल गया ,
हम को ऐसा लगा, सब जहाँ मिल गया ॥