काले मतवाले घन.....घनाक्षरी छंद
(लीजिये चौमासे लग गए, वो आये तो चाहे बड़े इंतज़ार के बाद आये..... आइये वर्षा की फुहारों में चार कवित्त छंदों से भीगने का आनंद लीजिये ----
काले-काले मतवाले घिरे घनघोर घन ,
बरखा सुहानी आई ऋतुओं की रानी है।
रिमझिम-रिमझिम रस की फुहार झरें ,
बह रही मंद-मंद पुरवा सुहानी है।
दम-दम दामिनि,दमकि रही, जैसे प्रिय,
विहंसि-विहंसि, सखियों से बतरानी है।
बरसें झनन -झन, घनन -घन गरजें ,
श्याम ' डरे जिया,उठै कसक पुरानी है॥
टप-टप बूँद गिरें, खेत गली बाग़ वन ,
छत,छान छप्पर चुए, बरसा का पानी ।
ढ र ढ र जल चलै, नदी नार पोखर ताल ,
माया वश जीव चले राह मनमानी।
सूखी-सूखी नदिया, बहन लगी भरि जल,
पाइ सुसुयोग ज्यों हो उमंगी जवानी ।
श्याम ' गली मग राह, ताल ओ तलैया बने ,
जलके जंतु क्रीडा करें, बोलें बहु बानी॥
वन-वन मुरिला बोलें,बागन मोरलिया,
टर-टर रट यूँ लगाए रे दादुरवा ।
चतुर टिटहरी चाह ,पग टिके आकाश ,
चक्रवाक अब न लगाए रे चकरवा ।
सारस बतख बक, जल में विहार करें,
पिऊ-पिऊ टेर, यूँ लगाए रे पपिहवा ।
मन बाढ़े प्रीति, औ तन में अगन श्याम,
छत पै सजन भीजे, सजनी अंगनवा ॥
खनन खनन मेहा,पडे टीन छत छान ,
छनन -छनन छनकावे द्वार अंगना ।
पिया की दिवानी, झनकाये ज्यों पायलिया,
नवल -नवेली खनकाय रही कंगना ।
कैसे बंधे धीर सखि, जियरा को चैन आबै,
बरसें नयन, उठे मन में तरंग ना ।
बरखा दिवानी हरषावे, धड़कावे जिया ,
ऋतु है सुहानी ,श्याम' पिया मोरे संग ना॥
बरखा सुहानी आई ऋतुओं की रानी है।
रिमझिम-रिमझिम रस की फुहार झरें ,
बह रही मंद-मंद पुरवा सुहानी है।
दम-दम दामिनि,दमकि रही, जैसे प्रिय,
विहंसि-विहंसि, सखियों से बतरानी है।
बरसें झनन -झन, घनन -घन गरजें ,
श्याम ' डरे जिया,उठै कसक पुरानी है॥
टप-टप बूँद गिरें, खेत गली बाग़ वन ,
छत,छान छप्पर चुए, बरसा का पानी ।
ढ र ढ र जल चलै, नदी नार पोखर ताल ,
माया वश जीव चले राह मनमानी।
सूखी-सूखी नदिया, बहन लगी भरि जल,
पाइ सुसुयोग ज्यों हो उमंगी जवानी ।
श्याम ' गली मग राह, ताल ओ तलैया बने ,
जलके जंतु क्रीडा करें, बोलें बहु बानी॥
वन-वन मुरिला बोलें,बागन मोरलिया,
टर-टर रट यूँ लगाए रे दादुरवा ।
चतुर टिटहरी चाह ,पग टिके आकाश ,
चक्रवाक अब न लगाए रे चकरवा ।
सारस बतख बक, जल में विहार करें,
पिऊ-पिऊ टेर, यूँ लगाए रे पपिहवा ।
मन बाढ़े प्रीति, औ तन में अगन श्याम,
छत पै सजन भीजे, सजनी अंगनवा ॥
खनन खनन मेहा,पडे टीन छत छान ,
छनन -छनन छनकावे द्वार अंगना ।
पिया की दिवानी, झनकाये ज्यों पायलिया,
नवल -नवेली खनकाय रही कंगना ।
कैसे बंधे धीर सखि, जियरा को चैन आबै,
बरसें नयन, उठे मन में तरंग ना ।
बरखा दिवानी हरषावे, धड़कावे जिया ,
ऋतु है सुहानी ,श्याम' पिया मोरे संग ना॥