जैसे ही रफ़्तार पकडती,
जाने क्यूं धीमी होजाती ||
जाने क्यूं धीमी होजाती ||
कभी नीति सरकारों की या,
कभी नीति व्यापार-जगत की |
कभी नीति व्यापार-जगत की |
कभी रीति इसको ले डूबे ,
जनता के व्यबहार-जुगत की ||
जनता के व्यबहार-जुगत की ||
अंग्रेज़ी अखबार मंगाते,
नाविल भी अंग्रेज़ी पढते ||
नाविल भी अंग्रेज़ी पढते ||
अफसरशाही कार्यान्वन जो,
सभी नीति का करने वाली |
सभी नीति का करने वाली |
सब अंग्रेज़ी के कायल हैं,
है अंग्रेज़ी ही पढने वाली ||
है अंग्रेज़ी ही पढने वाली ||
व्यापारी कैसे सेल करें,
योरप से सीख कर आते हैं ||
योरप से सीख कर आते हैं ||
यंत्रीकरण का दौर हुआ,
फिर धीमी इसकी चाल हुई |
फिर धीमी इसकी चाल हुई |
टीवी बम्बैया-पिक्चर से,
इसकी भाषा बेहाल हुई ||
इसकी भाषा बेहाल हुई ||
छुक छुक कर आगे रेल बढ़ी,
कम्प्युटर मोबाइल आये |
कम्प्युटर मोबाइल आये |
पहियों की चाल रोकने को,
अब नए बहाने फिर आये ||
अब नए बहाने फिर आये ||
फिर चला उदारीकरण दौर,
हम तो उदार जगभर के लिए |
हम तो उदार जगभर के लिए |
दुनिया ने फिर भारत भर में,
अंग्रेज़ी दफ्तर खोल लिए ||
अंग्रेज़ी दफ्तर खोल लिए ||
अब बहुराष्ट्रीय कंपनियां है,
सर्विस की मारा मारी है |
सर्विस की मारा मारी है |
हर तरफ तनी है अंग्रेज़ी,
हिन्दी तो बस बेचारी है ||
हिन्दी तो बस बेचारी है ||
हम बन् क्लर्क अमरीका के,
इठलाये जग पर छाते हैं |
इठलाये जग पर छाते हैं |
उनसे ही मजदूरी लेकर,
उन पर ही खूब लुटाते हैं ||
उन पर ही खूब लुटाते हैं ||
क्या इस भारत में हिन्दी की,
मेट्रो भी कभी चल पायेगी |
मेट्रो भी कभी चल पायेगी |
या छुक छुक छुक चलने वाली ,
पेसेंजर ही रह जायेगी ||
---- चित्र गूगल साभार ...
---- चित्र गूगल साभार ...
हम सबके ब्लॉग पर आपने क्या खूब 'हिन्दी गान' गाया.... वाह-वाह!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतुल जी.....निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल ..
हटाएंसुन्दर हिन्दी गीत..हिन्दीदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कनेरी जी.....जय हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ..
हटाएंधन्यवाद शास्त्रीजी ...आभार ...जय भारत..जय हिन्दी
जवाब देंहटाएंहिंदी की रेल भावपूर्ण व्यंजना मूलक रचना है .कुछ भाषिक प्रयोग अखरे हैं जो लय भी भंग किये हैं -
जवाब देंहटाएंअफसरशाही कार्यान्वन जो,
सभी नीति का करने वाली |
क्रियान्वयन ,कार्यन्वित शब्द प्रयोग है -अफसरशाही किर्यान्वयन ,सभी नीति का करने वाली ....
यंत्रीकरण का दौर हुआ,
फिर धीमी इसकी चाल हुई |
टीवी बम्बैया-पिक्चर से,
इसकी भाषा बेहाल हुई || मुम्बैया फ़िल्में आज ग्लोबी स्तर पर हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहीं हैं ,अब फिल्मों का ग्लोबल रिलीज़ होता है .शुद्धता वादियों ने ही हिंदी की रेड़ पीटी है ,स्लेंग (अपभाषा मत कहो )का अपना वजन और आकर्षण होता है श्याम गुप्त जी .
हम बन् क्लर्क अमरीका के,
हम बने क्लर्क अमरीका के होना चाहिए यहाँ लय की दृष्टि से
बहर सूरत भाव और अर्थ दोनों हिंदी की रेल के लुभातें हैं और स्टेशन पे सीढ़ी लगा ,छत पे चढ़ते पैसिंजर,ध्यान बटातें हैं .
बहुत बढ़िया प्रयोग है इन पंक्तियों में -
क्या इस भारत में हिन्दी की,
मेट्रो भी कभी चल पायेगी |
या छुक छुक छुक चलने वाली ,
पेसेंजर ही रह जायेगी ||
बधाई इस रचना के लिए हिंदी दिवस पर इक समर्पित हिंदी सेवी को .
शनिवार, 15 सितम्बर 2012
सज़ा इन रहजनों को मिलनी चाहिए
सच है जिंदगी की रेल अपने आप चलते चलते रुक जाती है |बहुत भाव पूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
धन्यवाद ..आशाजी ..
हटाएं-----बात ज़िंदगी की रेल की नहीं ....हिन्दी की रेल की है ..जिसे रोकने को बार बार नए-नए कृत्य सामने आजाते हैं ...
जब हिंदी भाषी ...अपनी हिंदी को गालियाँ देंगे तो आने वाला समय कैसा होगा ...भगवान ही मालिक है
जवाब देंहटाएंसही कहा अंजू जी....धन्यवाद
हटाएंबहुत ही बहुत सुन्दर .......
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