मित्रो एक बार लेख को जरुर पढ़े ...
कुछ समय पहले, फ़ेसबुक पर, बहुत से व्यक्तियों ने एक खूबसूरत महिला की तस्वीर पोस्ट की जो किसी अख़बार में छपी हुई थी। अखबार में छपी सूचना के अनुसार वह तस्वीर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की थी। हमारी प्रिय और आदरणीय रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर? ज़ाहिर है कि इस तस्वीर को देखने के लिए लोग उतावले थे। लेकिन एक नज़र देखते ही मुझे पता लग गया कि यह तस्वीर झूठी है। दरअसल मुझे बहुत अजीब भी लगा कि भारतीय जनता ज़रा-सा भी कॉमन सेंस प्रयोग नहीं करती! बस किसी ने जो भी कह दिया उसे सच मान लिया। लो
ग उस तस्वीर को जो कि हर कोण से झूठी लग रही थी! बिना सोचे-समझे इंटरनेट पर फैलाए जा रहे थे। देशप्रेम की भावना ने लोगों के दिल और दिमाग पर शायद कब्ज़ा कर लिया था – लेकिन देशभक्ति के लिए अपनी बुद्धि की आंखे बंद कर लेना तो ज़रूरी नहीं है! नीचे मैं वही तस्वीर दे रहा हूँ। आप देखिए और फ़ैसला कीजिए:
अख़बार में छपी तस्वीर जिसे झांसी की रानी की तस्वीर बताया गया। यह झूठ है।
हालांकि हिन्दुस्तान में फ़ोटो स्टूडियो 1840 में भी थे (और शायद उससे पहले भी) –लेकिन यह तस्वीर बहुत अधिक “आधुनिक” लग रही है। यह मानना बेहद मुश्किल है कि उस समय महिलाएँ इस तरह के फ़ोटो खिंचवाती होंगी; और रानी लक्ष्मीबाई ने ऐसा किया होगा –ये मानना तो बहुत दूर की कौड़ी लाने जैसा होगा। इस तरह की तस्वीर रानी के निजी कक्ष में ही खींची जा सकती थी –और मुझे नहीं लगता कि उस समय की कोई भी रानी किसी भी फ़ोटोग्राफ़र को अपने निजी कक्ष में आने की अनुमति देती होगी।
इस तस्वीर में दिखने वाली महिला के हाव-भाव से ही पता चलता है कि वह कैमरे और फ़ोटोग्राफ़ी के साथ काफ़ी अभ्यस्त और सहज हो चुकी हैं। साथ ही फ़ोटोग्राफ़ी की गुणवत्ता भी रानी लक्ष्मीबाई के समय से मेल नहीं खाती। उस समय के बक्से वाले कैमरे से इतनी अच्छी तस्वीरें खींचना संभव नहीं हुआ करता था।
मेरे मूल अंग्रेज़ी लेख की एक पाठक श्रीमति चमन निगम जी ने एक रोचक टिप्पणी की थी। उन्होनें कहा कि ऊपर दिए चित्र के साथ “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली थी” पंक्ति मेल नहीं खाती -इसलिए भी यह चित्र झूठा है!
इस सारे झमेले में जो चीज़ मुझे सबसे अधिक परेशान कर रही है वो है हमारी पत्रकारिता (विशेषकर हिन्दी पत्रकरिता) का गिरता स्तर। मेरी जानकारी के मुताबिक ऊपर दी गई तस्वीर भारत के सबसे बड़े हिन्दी अख़बार दैनिक भास्कर में छपी थी। चित्र के साथ में छपी जानकारी हालांकि ठीक है लेकिन इस खबर के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति ने ग़लत तस्वीर छाप दी! शर्म आती है इस तरह की पत्रकारिता देख कर।
सो, अगर ऊपर दिया गया चित्र ग़लत है तो फिर सही चित्र कहाँ हैं? ऐसा कहा जाता है कि सन 1850 में एक ब्रिटिश फ़ोटोग्राफ़र ने झांसी की रानी की एक तस्वीर ली थी। उस समय रानी की आयु मात्र 15 वर्ष की थी। फ़ोटोग्राफ़र ने अपना नाम “हॉफ़मैन” बताया था और कहा था कि वह जर्मन है। ऐसा उसने शायद इसलिए किया क्योंकि किसी ब्रिटिश व्यक्ति का रानी के आस-पास फटकना भी संभव नहीं था। “हॉफ़मैन” द्वारा लिया गया चित्र नीचे दिया गया है।
"हॉफ़मैन"द्वारा ली गई झांसी की रानी की तस्वीर यह तस्वीर अहमदाबाद के एक चित्रकार अमीत अम्बालाल के पास है। उन्होनें इसे 40 वर्ष पहले जयपुर से करीब डेढ़ लाख रुपए में खरीदा था। अम्बालाल ने इसे अपने फ़ोटोग्राफ़र मित्र वामन ठाकरे को दे दिया और वामन ठाकरे ने इसे भोपाल में एक प्रदर्शनी के दौरान जनता के सामने रखा। इस तरह दैनिक भास्कर की खबर बनी जिसमें ग़लत फ़ोटो को छाप दिया गया। मुझे नहीं पता कि अखबार में छपी ग़लत तस्वीर में जो महिला दिख रही हैं –वे कौन हैं। यदि किसी पाठक को पता हो तो मुझे ज़रूर बताएँ।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 को मणिकर्णिका के रूप में वाराणसी में हुआ था। बाद में उन्हें प्यार से “मनु” कह कर पुकारा जाने लगा। उनकी मृत्यु केवल 22 वर्ष की उम्र में ही हो गई। इस छोटी-सी ज़िन्दगी में ही उन्होनें आत्म रक्षा, घुड़सवारी, धनुर्विद्या का अध्ययन किया; तलवार, भाला और कटार चलाने में दक्षता हांसिल की; विवाह से पहले ही केवल महिला सिपाहियों की एक सेना बनाई; एक राजा से शादी की; 16 वर्ष की उम्र में माँ बनी; चार महीने बाद ही अपने बेटे को खो दिया; और उसके दो वर्ष बाद अपने पति को; उन्होनें झांसी राज्य की कमान संभाली; अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए अंग्रेज़ों के खिलाफ़ जंग की; और ऐसा युद्ध किया कि अंग्रेज़ जनरल भी उनकी बहादुरी और कौशल की प्रशंसा करने लगे थे; अंत में रानी ने बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति पाई।
क्या यह सब आपको रोमांचित नहीं करता? मुझे तो करता है! इसीलिए आज भी हर भारतवासी रानी लक्ष्मीबाई का सम्मान करता है और इसीलिए मुझे उन्हें “हमारी रानी” कहने में कोई संकोच नहीं है। झांसी की रानी भारतीय स्त्रियों के साहस और बहादुरी की मिसाल बन गईं। वे हमारे राष्ट्र का गौरव हैं।
झांसी की रानी द्वारा अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ी गई लड़ाई के फ़ोटोग्राफ़्स उपलब्ध नहीं हैं –लेकिन लड़ाई के खत्म होने के बाद कुछ तस्वीरे ली गईं थी जो अभी भी उपलब्ध हैं।
अगर हम “हॉफ़मैन” द्वारा लिए गए चित्र को छोड़ दें तो लक्ष्मीबाई की छवि के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। आस्ट्रेलियन पत्रकार जॉन लैंग को 1854 में झांसी की रानी से मिलने और बात करने का दुर्लभ मौका मिला था। बाद में लैंग ने रानी के बारे में अपने अखबार “द मोफ़ुसिल” में लिखा था (मैं अंग्रेज़ी से अनुवाद कर रहा हूँ):
जब वे छोटी रही होंगी तो उनका चेहरा बहुत ही सुंदर रहा होगा (लैंग से मुलाकात के समय रानी की उम्र 19 वर्ष थी) और अभी भी उस चेहरे में बहुत-से जादू हैं। उनकी अभिव्यक्ति बहुत अच्छी और बुद्धिमत्तापूर् ण थी। उनकी आंखे विशेष रूप से अच्छी थीं और नाक नाज़ुक और करीने से बनी हुई थी। वे बहुत गोरी नहीं थीं हालांकि काली होने से भी वे कोसों दूर थीं। उन्होनें कानों में सोने के कुंडलों के अलावा और कोई आभूषण नहीं पहना था और उनका वस्त्र बिल्कुल मुलायम सफ़ेद मुस्लिन का था। वस्त्र उनके शरीर पर कस कर लपेटा गया था जिससे कि उनके शरीर की बनावट साफ़ झलक रही थी। यह बनावट काफ़ी अच्छी थी मैंने झांसी की रानी के असली फ़ोटोग्राफ़ के वाकई में असली होने का कोई दावा नहीं किया है। यह काम पुरातत्ववेत्ताओ ं का है। मेरा उद्देश्य केवल इतना है कि अपने पाठकों तक संदेश पहुँचा सकूं ताकि वे अखबार में छपी ग़लत तस्वीर को इंटरनेट पर फैलाना बंद कर दें।..
साभार
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प्रस्तुतकर्ता
सवाई सिंह राजपुरोहित
आपने अच्छा कार्य किया है. लोगों के सामने तथ्य आना चाहिए.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट....
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी...
सादर
अनु
पढ़ लिया...
जवाब देंहटाएं------यदि आप ध्यान दें तो बाई तरफ वाली सैनिक वेश की तस्वीर में होठों की बनावट ..दायीं तरफ वाली फोटो से एक दम मिलती है...चहरे को यदि सम्मुख पोज में रखें तो और भी मिलने लगेगी .... निश्चय ही सैनिकवेश/पुरुष वेश के एवं उम्र और तनावों से ..एवं सामान्य वेश के सौंदर्य एवं चहरे के भावों व कसावट में अंतर आजाता है...परन्तु ध्यान से देखें तो रूप-भाव सामान ही लगता है |
रोचक जानकारी...आभार..
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