विदेशी विचार की उपज महिला दिवस पर एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ
भारतीय संस्कृति में इकार के बिना शिव भी शव हो जाता है शिव ही सृष्टि की निर्मात्री है और डिवॉन की भी पूज्य है ।
मैं कैसे मान लूं कि
नही हारोगी तुम
तुम इतनी जल्दी हार जाओगी
क्योंकि मैं जानता हूँ
तुम्हारा संघर्ष ,तुम्हारा जीवट ,
तुम्हारी अन्तस् की तीव्र आंधी
मैंने घोर गर्जन के साथ
तुम्हारी तडित कौंध को देखा है
मूसलाधार वृष्टि से अधिक
तुम्हारे आसुंओं की बाढ़ से
मैंने बहुत कुछ उजड़ते देखा है
तुम्हारे भयंकर ताप से
बहुत कुछ झुलसने पर
उस का ताप अनुभव किया है
और बर्फ सी सर्द हो कर
जमते पिघले और गलते देखा है तुम्हें ।
तब कैसे मान लूं कि
तुम हार जाओगी इतनी जल्दी
नहीं यह विश्वसनीय नहीं है
क्योंकि सूरज नहीं उगता रात में
या तारे नहीं चमकते हैं दिन में
यदि ऐसा हो गया तो लगेगा तुम हार गईं
परन्तु ऐसा हुआ तो
अनर्थ हो जायेगा
सब कुछ समाप्त हो जायेगा
मिट जायेगा सब कुछ ।
बेशक गर्जना , बिजली सी तडकना
आग सा झुलसना
या बर्फ सी सर्द हो कर
गलना भी पड़े तुम्हें
परन्तु हारना नहीं
सोचना भी मत ऐसा
क्योंकि तुम हारोगी ही नहीं
कभी नहीं कदापि नहीं ।।
तुम हारोगी ही नहीं
जवाब देंहटाएंकभी नहीं कदापि नहीं -----
---तुम कभी नहीं हारीं ...
nice. plz mere blog ko bhi samil kare yeh takniki ko smarpit he,...
जवाब देंहटाएंhttp://www.hiteshnetandpctips.blogspot.com
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