भारत के कुछ प्रदेशों में गर्मी का मौसम क्या शुरू होता है लोग बूँद २ पानी को टीआरएस जाते हैं पानी की एक २ बूँद सच्चे मोती की तरह लगने लगती है नलों में पानी आना तो दूर बूँद भी टपकती देखने को लोग तरस जाते हैं | लोग रात २ भर जाग कर पानी के लिए प्रेमिका की तरह इन्तजार करते हैं की शायद कभी एक बूँद के प्रेमिका की तरह दर्शन हो जाएँ परन्तु पानी भी क्या करे | लोगो से अपने गाँव के कुए का ठंडा मीठा पानी पिया ही नही गया और चल दिए शहर में बूँद २ पानी को तरसने आ गये जैसे शहर में में तो मुफ्त में लड्डू बत रहे हैं कि लो जी आओ और भोग लगाओ और इतना ही नही छोटे २ कस्बिन में भी कालोनी पर कालोनी नेताओं के नाम पर बस्ती चली गईं और अब भी बसे जा रही है जैसे मधु मक्खियों का छत्ता बढ़ता जाता है वैसे ही | फिर आखिर इस तरह बढ़ रही आबादी के लिए पानी कहाँ से आये |
आखिर सरकार भी क्या करे लोग आबादी को ही धर्म की कसम कहा २ कर दिन दुगनी रात चौगुनी नही अपितु आठ गुनी बढ़ाने पर लगे हैं | तो फिर सरकार भी इतनी पाइप लाइन , ट्यूबेल व उन्हें चलाने के लिए बिजली आखिर कहाँ से लाये सरकार | सरकार की भी तो अपनी सीमाएं हैं | उस के भी तो खर्चे हैं |आखिर सरकार के मंत्रियों व मुख्य मंत्री व अधिकारयों आदि को देश विदेशों के करने पड़ते हैं | उन के दौरों के समय तुरंत सडकें बनवानी पडती हैं मंच , पंडाल व दावत आदि की व्यवस्था करना उन के वेतन भत्तों का इंतजाम करना अपने निकट के ठेकेदारों को काम देना गोबर के उपयोग के लिए विदेश यात्राएं करना , गरीबी की रेखा टी करने के शौचालय बनवाना ताकि वहाँ गरीबी पर ठीक से सोचा जा सके बड़े २ पांच सितारा होटलों में मीटिंग करवाना , पानी बचाओ अभियान पर प्रचार सामग्री च्प्व्वना व बंटवाना और उस की रिपोर्ट बनवाना आदि २ कहाँ २ तक गिनवाए जाये सरकार के काम | फिर बजट में से इतना पैसा बचता कहाँ है जो रोज २ नई २ पाइप लाइन ही सरकार बिछाती रहे |
परन्तु लोग है कि सरकार के पीछे लठ्ठ लर कर पड़े रहते हैं |गर्मियां आई नही कि विरोधी पार्टियों के कार्य कर्म पहले ही निश्चित हो जाते हैं कि कब २ कहाँ २ और किस २ कालोनी के लोगों से खाली मटके ले लर प्रदर्शन करवाना है क्यों कि अब लोग घरों में तो पानी के लिए मटके रखते ही नही है इसी लिए पार्टी के कार्य कर्ताओं को मटके खरीदने का आदेश उपर से आ जाता है और लोग लोग प्रदर्शन की अगुआई करने के चक्कर में ख़ुशी २ फोड़ने के लिए मटके खरीद लेते हैं जिन्हें मुख्यालय पर जा कर फोड़ना ही होता है क्यों कि वहाँ से बचा कर तो उन्हें ला नही सकते और ले भी आयें तो उन्हें फ्रिज को हटा कर कौन रखता है घर में | इस लिए मटका फोड़ने की रस्म क्रिया कर ली जाती है |एक बात और है कि इस बहाने मटके वाले के मटके भी बिक जाते हैं नही तो अब मटकों में पानी भर कर पिने के लिए मटके खरीदता ही कौन हैं और जैसे ही गर्मी शुरू हो जाती हैं वैसे ही मटके वालों को प्रदर्शनों के कारण मटके बिकने की उम्मीद बढ़ जाती है |चलो इसी बहाने ही सही कुटीर उद्योग का भी विकास हो जाता है |
परन्तु इस के बाद भी पानी की समस्या वहीं की वहीं रहती है और लोग बरसात की प्रतीक्षा करने लगते हैं क्यों कि ज्यद्फा गर्मी के कारण कोई २ बादल आसमान दिखाई दे जाता है |इन प्रदर्शनी से न तो पानी आता है और न ही पिप लाइन ही बिछाई जाती है | आप को वैसे ही पहले जैसे ही हर साल की तरह ही एक दो महीने साल में पानी की बूँद २ के लिए तरसना ही होता है | परन्तु विचारनीय यह है कि इन दो महीनों में किस तरह बिन पानी गुजारा किया जाये | असली समस्या तो यह है |
आखिर सरकार भी क्या करे लोग आबादी को ही धर्म की कसम कहा २ कर दिन दुगनी रात चौगुनी नही अपितु आठ गुनी बढ़ाने पर लगे हैं | तो फिर सरकार भी इतनी पाइप लाइन , ट्यूबेल व उन्हें चलाने के लिए बिजली आखिर कहाँ से लाये सरकार | सरकार की भी तो अपनी सीमाएं हैं | उस के भी तो खर्चे हैं |आखिर सरकार के मंत्रियों व मुख्य मंत्री व अधिकारयों आदि को देश विदेशों के करने पड़ते हैं | उन के दौरों के समय तुरंत सडकें बनवानी पडती हैं मंच , पंडाल व दावत आदि की व्यवस्था करना उन के वेतन भत्तों का इंतजाम करना अपने निकट के ठेकेदारों को काम देना गोबर के उपयोग के लिए विदेश यात्राएं करना , गरीबी की रेखा टी करने के शौचालय बनवाना ताकि वहाँ गरीबी पर ठीक से सोचा जा सके बड़े २ पांच सितारा होटलों में मीटिंग करवाना , पानी बचाओ अभियान पर प्रचार सामग्री च्प्व्वना व बंटवाना और उस की रिपोर्ट बनवाना आदि २ कहाँ २ तक गिनवाए जाये सरकार के काम | फिर बजट में से इतना पैसा बचता कहाँ है जो रोज २ नई २ पाइप लाइन ही सरकार बिछाती रहे |
परन्तु लोग है कि सरकार के पीछे लठ्ठ लर कर पड़े रहते हैं |गर्मियां आई नही कि विरोधी पार्टियों के कार्य कर्म पहले ही निश्चित हो जाते हैं कि कब २ कहाँ २ और किस २ कालोनी के लोगों से खाली मटके ले लर प्रदर्शन करवाना है क्यों कि अब लोग घरों में तो पानी के लिए मटके रखते ही नही है इसी लिए पार्टी के कार्य कर्ताओं को मटके खरीदने का आदेश उपर से आ जाता है और लोग लोग प्रदर्शन की अगुआई करने के चक्कर में ख़ुशी २ फोड़ने के लिए मटके खरीद लेते हैं जिन्हें मुख्यालय पर जा कर फोड़ना ही होता है क्यों कि वहाँ से बचा कर तो उन्हें ला नही सकते और ले भी आयें तो उन्हें फ्रिज को हटा कर कौन रखता है घर में | इस लिए मटका फोड़ने की रस्म क्रिया कर ली जाती है |एक बात और है कि इस बहाने मटके वाले के मटके भी बिक जाते हैं नही तो अब मटकों में पानी भर कर पिने के लिए मटके खरीदता ही कौन हैं और जैसे ही गर्मी शुरू हो जाती हैं वैसे ही मटके वालों को प्रदर्शनों के कारण मटके बिकने की उम्मीद बढ़ जाती है |चलो इसी बहाने ही सही कुटीर उद्योग का भी विकास हो जाता है |
परन्तु इस के बाद भी पानी की समस्या वहीं की वहीं रहती है और लोग बरसात की प्रतीक्षा करने लगते हैं क्यों कि ज्यद्फा गर्मी के कारण कोई २ बादल आसमान दिखाई दे जाता है |इन प्रदर्शनी से न तो पानी आता है और न ही पिप लाइन ही बिछाई जाती है | आप को वैसे ही पहले जैसे ही हर साल की तरह ही एक दो महीने साल में पानी की बूँद २ के लिए तरसना ही होता है | परन्तु विचारनीय यह है कि इन दो महीनों में किस तरह बिन पानी गुजारा किया जाये | असली समस्या तो यह है |
इस समस्या को दूर करने के लिए यदि मैं सरकार को दो चार सुझाव दूं तो सरकार कौन सा मेरे सुझावों को मान ही लेगी क्योंकि सरकार के पास पहले ही बहुत से सुझाव आये रहते हैं लोग जबरदस्ती ज्ञापन दे २ कर सुझावों का ढेर लगये रहते हैं इसी लिए सरकार मिनट २ में गौर करती रहती है इसी लिए उसे गौरमिनट कहते हैं और फिर मैं कोई विशेषग्य भी तो नही हूँ , साधारण लेखक ही तो हूँ और न ही पार्टी का कार्यकर्ता यहाँ तो सरकार विशेषज्ञों के सुझावोंसे भी रद्दी की टोकरी को स्स्जती रहती है तो भला मेरे सुझावों का क्या होगा |कौन पूछता है आप चाहें तो आमरण अनशन तज कर लें | मरे २ मरे और जब बिलकुल मरने की नौबत ही आ जाएगी तो पुलिस आप को उठा कर अस्पताल पहुंचा देगी जहाँ डाक्टर आप का अनशन जबर दस्ती तुडवा देंगे| पर बात वहीं की वहीं रहेगी इसी लिए सरकार को सुझाव देने में मैं अपनी बुद्धिमानी नही मानता हूँ |
परन्तु हो सकता है आप को मेरे सुझावों में से कुछ आप को जरूर जंच जाएँ और आप उन में से दो चार पर अपनी पत्नी जी से विचार विमर्श कर के उन दो चार सुझावों को मान लें जिन से आप को फायदा होगा और उन में से जिन सुझावों से आप को पडौसियों से फायदा होगा उन्हें आप अदौसियों तक भी सरका देंगे ताकि आप पडौसियों से भी फायदा उठाने के धर्म को भी बखूबी निभा सकें |इसी लिए आप को सरकार न मान कर और अपने आप को महा बुद्धिमान समझ कर ये सुझाव आप को दे रहा हूँ | बेशक मुझे मेरे घर में कोई बुद्धि मान माने या व माने पर आप तो मान ही लेंगे फिर आप संकट के समय श्री सत्य नारायण स्वामी की कथा की तरह इन को बांच कर लाभ प्राप्त कर सकेंगे |
इन सुझावों में से सब से महत्व पूर्ण मेरा एक सुझाव यह है कि आप यदि कहीं जाएँ या न जाये पर आप आप के यहाँ आने वाले सभी रिश्तेदारों को खबर कर दो की आप तो गर्मियों में बाहर जा रहे हैं एयर तिकत भी बुक हो चुकी है कोई पूछे भी तो कह दो यदि आप कहे तो आप के यहाँ भी आ सकते हैं | वैसे कोई पूछेगा नही कि कहाँ जा रहे हैं और कोई ज्यादा ही पूछे तो इतने सारे पहाड़ी स्थान हैं जो छोटी कक्षा में पढ़े होंगे ही जैसे मंसूरी , नैनीताल , शिमला ,ऊंटी मनाली आदि २ कहीं का भी कह दो पर पत्नी को भी साथ २ बता देना कि मैंने फलने रिश्ते दार को फलन स्थान का नाम बताया है | और आप छुट्टियाँ होते ही किसी दूसरे शहर में रिश्ते दार के यहाँ जा धमको ताकि आप को पानी की किल्लत का सामना न करना पड़े ध्यान रखना आप अपने गाँव जाने को टालना| हो सके तो बच्चों के कान में नानी के घर जाने को उकसाना यहाँ आप की भी खूब अच्छी सेवा होगी और बच्चों की माँ भी खुश रहेगी परन्तु पत्नी जी फसल की चीजों की हिस्सेदारी मांगने की ज्यादा ही जिद्द करे तो कह देना छुट्टियों के आखरी दो तीन दिन के लिए चले जायेंगे और माल समेट लायेंगे |
इब यह सुनिश्चित हो जाये कि आप के यहाँ कोई मेहमान नही आ रहा है तो आप निश्चिन्त हो कर गर्मी २ सुख से जीयें परन्तु अपने यहाँ रहने पर भी आप को गर्मी के दो महीने काटने के लिए कुछ अन्य बातों को भी ध्यान में रखना होगा जैसे जब आप रोटी कहा चुकें तो पडोसी के घर पहुंच जाएँ और उन के छोटे बच्चे पर बहुत लाड बिखेरे कि अरे इसे क्यों रुला रहे हो मैं तो रोटी खाता २ ही बिना पानी पिए ही आ गया |इस के रोने की इ आवाज आ रही थी | कहाँ गया आप का छुटकू |जरा एक गिलास पानी मंगवाना उस से और इस प्रकार रोटी खा कर आप आसानी से पड़ोसी के घर इस भने जा कर आसानी दो चार गिलास पानी गटक कर आ जाएँ |
इसी तरह दो तीन बार उन के छोटे बच्चे के भने या किसी अन्य भने से जैसे डाकिया आ जाये तो पड़ोसी की डाक भी उस से आप ही ले लो और डाक देने के भने या घर वाली जब सब्जी खरीद रही हो तो उसे कहें कि पड़ोसन से भी पूछ ले कि लेकी तजि है उर सस्ती दे रहा है आप को भी लेनी है क्या और सब्जी वाले को मना कर दो ताकि वह चला जाये और अब अगले सब्जी वाले के आने तक वहीं जमे रहो पीछे से आप उन्हें ढूंढते २ उन्ही के घर पहुंच जाएँ कि अरे कहाँ चली गईं और वही दो चार गिलास पानी गटक लें |
परन्तु यह फार्मूला यदि पडोसी आप के जुप्र आजमाने लगें तो कह दो कि भाई कल से काम वाली बाई नही आई है सारे गिलास जूठे पड़े हैं | लाना जी जरा इन के लिय पानी सेंक (जूठे बर्तन रखने की जगह )में से ही गिलास ले लो पडोसी अपने आप मना कर देगा कि मुझे पानी नही पीना है जी मैंतो पी कर ही आया हूँ परन्तु कई बार आप के कई गहरे दोस्त भी होते हैं वे बिना सूचना समाचार के ही आ जाते हैं |
जब कोई ऐसा दोस्त आ ही धमके तो उन के लिए ठंडा कभी मत बनवाओ क्यों कि ठंडा पेय बनवाने में पानी ज्यादा खर्च होता है और उन के बैठते ही गर्मी का जिक्र शुरू कर दो और पसीने सुखाने का सुझाव दो तथा अपना ज्ञान भी उन्हें बताओ कि जैसे लोहे से लोहा कट्टा है वैसे ही गर्मी ही गर्मी को मारती है | इस लिए आप की गर्मी दूर करने के लिए आप को चाय पिल्वाई जाती है और उन के सीधे २ चाय बनवा दो और चाय से वे पानी मांगे तो बताओ कि ठंडा और गर्म हो जायेगा तो नुक्सान करगा इस लिए अब आप चाय ही पी लो पानी बाद में थोड़ी देर बाद पी लेना |
ऐसे ही कितने सारे और भी उपाय आप के दिमाग में भी होंगे ही जिन्हें आप रोज २ अपने पड़ोसियों पर आजमाते ही रहते होंगे उन्हें तो आप करते ही रहे और यदि कहीं कोई पानी बचाने के नये उपाय लागू कर रहा हो तो उन्हें भी ध्यान में रखें और आगे से उन्हें भी प्रयोग कर लें |
इस प्रकार भगवान आप का गर्मी २ खूब भला करेंगे क्योंकि आप भगवान की एक अमूल्य निधि को खर्च करने से बचा रहे रहे हैं | इस लिए भगवान जी भी आप को कम से कम पानी देंगे क्यों कि आप तो कम पानी में भी काम चला सकते हैं परन्तु जो लोग अन्य लोगों को मुफ्त पानी पिलाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं बेशक गर्म २ लूह के थ्पेधों वे तब भी स्टेशनों पा जा कर भी पानी पिला रहे होते हैं या सडकों पर भी पेड़ों के नीचे मटके रखवा रहे होते हैं या प्याऊ लगा रहे होते हैं तो मजबूरी में भगवान जी को भी उन के लिए भरपूर पानी का प्रबंध करना ही पड़ता है |
अब आप देख लो कि आप को कम पानी चाहिए या ज्यादा पानी |खुद के लिए भी और दूसरों को पिलाने के लिए भी या न पिलाने के लीये कम पानी यह तो आप पर ही निर्भर करता है |
व्यंगकार :- श्री डॉ. वेद व्यथितजी
dr.vedvyathit@gmail.com
अगर आप भी इस मंच पर रचना या कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें...1blog.sabka@gmail.com
सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
जवाब देंहटाएंbndhuvr sadr aabhar
हटाएंमुझे लगा व्यंग्य कुछ लम्बा हो गया।
जवाब देंहटाएंbndhu aap ne vyng pdha dhnyvaad grmi ke karn aap ko lmba lga hoga jyada lmba hai to aadha pd lo
हटाएंव्यंग भरी अच्छी प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
bndhuvr bhut 2 hardik aabhar
हटाएंजल है तो कल है !
जवाब देंहटाएंbhut 2 hardik aabhar bndhu
हटाएंवाह....कभी एक बूँद के प्रेमिका की तरह दर्शन हो जाएँ परन्तु पानी भी क्या करे | लोगो से अपने गाँव के कुए का ठंडा मीठा पानी पिया ही नही गया!
जवाब देंहटाएंbndhuvr hardik aabhar swikaar kren
हटाएंसार्थक पोस्ट ... आभार
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र ने सही कहा... यह लंबा होगया ..आलेख की भांति.... जिसके कारण विषयांतर होकर अपना प्रभाव खों देता है....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंjyoti ji aap ka hardik aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren
हटाएंआप भी कृपया मेरे ब्लाग को फालो करें.
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