हे शुक !
तोता |
हे सारिके !
तुम क्यों व्यर्थ विवाद करते हो ?
नर-नारी द्वंद्व तो सदियों पुराना है,
क्यों कलह-निनाद करते हो ?
किस उपमेय-उपमान को -
सुलझाने का प्रयत्न करते हो ?
शुक मुस्कुराया,
सारिका चहचहाई , लजाई ;
शुक की चौंच से चौंच मिलाकर ,
मैना |
मुस्कुराई |
जाने से, मानने से,
सदियों पुरातन होने से ,तो-
काम नहीं चलता है |
सत-असत,
कर्म-अकर्म,
सही-गलत, पर-
विवाद करने से ही तो,
परस्पर विचार-विनिमय की कुंजी से ही तो;
समाज के अंतर्द्वार का,
विश्व-व्यापार का,
प्रेमी-प्रेमिका के प्यार-इज़हार का -
ताला खुलता है ||
शुक तो सारिका को,
सदा ही भाता है |
शुक-सारिका का तो-
सदा ही प्रेम का नाता है |
पर-बार-बार वार्तालाप से ,
परस्पर विचार-विनिमय से -
प्यार और बढ जाता है ||
प्रेमी-प्रेमिका का वाद-विवाद,
प्रेमालाप कहलाता है ;
गुण-दोष दिखाता है,
कमियाँ दूर करने को उकसाता है -
दोनों को और करीब लाता है |
इसीलिये तो यह-
'किस्सा तोता-मैना' कहलाता है ||
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआशा
मेरा यू .आर .एल
http://akanksha-ashablogspot.com
धन्यवाद आशाजी ....
हटाएंआदरणीय आशा जी
हटाएंआपका ब्लॉग लिंक गलत है!
बहुत सुंदर और सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भूषण जी.....आभार ..
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसुन्दर:-)
धन्यवाद रीना जी ...
हटाएंपरस्पर विचार-विनिमय की कुंजी से ही तो;
समाज के अंतर्द्वार का,
ताला खुलता है ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
धन्यवाद शास्त्रीजी ..आभार ...
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कनेरी जी ....
हटाएंकिस्सा तो ठीक। कविता भी इस भाव से बढ़िया। लेकिन हाय! कभी शुक सारिका को मिलते नहीं देखा।:)
जवाब देंहटाएंक्या बात है देवेन्द्र जी.... धन्यवाद ...इतनी दूर तक सोच के लिए ..यही तो साहित्य है..
हटाएं---यही तो किस्सा तोता-मैना है.... मिलते तो शुक-शुकी को ही देखा होगा ... सारिका तो परकीया अभिसारिका है ...तभी तो वह सारिका है...
वाह अच्छी कविता है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद काजल कुमार जी....नर-नारी द्वंद्व तो सदियों पुराना है,
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट कविता.
जवाब देंहटाएंdhanyvaad
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