1 - -छात्र जीवन मैं ज्ञान प्राप्त करना --ज्ञान योग .
2 --गृहस्थ जीवन मैं कर्म करके , धनोपार्जन के साथ दान ,पुण्य , सिद्दी -प्रिसिद्दी प्राप्त करना -- कर्म- योग ।----
-बिना लालच ,लोभ ,मोह के सिद्दि-प्रसिद्धि , (प्रभाव -तथा स्थिति ) का दूसरों एवं समाज के लिए उपयोग --निष्काम कर्म
-फल व सिद्दि प्राप्ति की इच्छा से कर्म --सकाम कर्म।
3--सिद्दि- प्रसिद्दी व जीवन मैं सफलता के बाद सारे कार्य केवल भगवद्भक्ति ,समाज सेवा ,संतति-सेवा ,धर्म, दर्शन, ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति के लिए ही कार्य करना -----भक्ति- योग ।
4- -अगली पीढी को तैयार कर देने के पश्चात, केवल स्वयं की आत्म संतुष्टि के लिए ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति की ओर समस्त मोह त्यागकर, कर्मत्याग व मुक्ति की इच्छा ----ईश्वर-योग, अमृत-योग, या योग है।
5--ज्ञान के साथ कर्म व भक्ति ; कर्म के साथ ज्ञान व भक्ति ; भक्ति के साथ कर्म व ज्ञान अति- आवश्यक है ......... अतः तीनों प्रकार के योग साथ -साथ प्रत्येक स्तरपर होने चाहिए - यही संसार व ज्ञान दोनों पाकर माया बंधन से मुक्ति व अमृत प्राप्ति व मोक्ष है। यही जीवन-योग है।
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