एक स्कूल का वार्षिक उत्सव होना था | स्कूल मतलब प्राइवेट स्कूल क्यों कि सरकारी स्कूलोंमे तो ऐसी बातें होती ही नही है क्यों कि वहाँ तो रोज आधी छुट्टी में वार्षिक उत्सव हो जाता है परन्तु प्राइवेट स्कूलों को साल भर में यह कार्य कर्म करना ही पड़ता है क्यों कि यह कार्यक्रम के साथ २ उन की एड्वर्स्तैमेंट का यानि प्रचार का अच्छा माध्यम भी होता है और कमाई का भी क्यों कि आज कल प्रचार का ही तो युग है किसी चीज का प्रचार करोगे तभी तो उस से कमाई होगी | इस में दोनों लूटे हैं आने व देखने वाले भी और अभिभावक भी क्यों कि उन से स्कूल के फायदे को छुपाते हुए उन के बच्चे की पतिभा [र्द्रष्ण के नाम पर चंदा वसूल कर लिया जाता है और फायदा स्कूल को हो जाता है
ऐसे ही एक वार्षिक उत्सव का निमन्त्रण मुझे भी आया | मैं भी प्रसन्न था कि चलो अभिभावकों से गई लूट में से मुझे भी फूलों की एक माला मिलेगी इसी प्रसन्नता में मैं भी फूल कर कुप्पा हो रहा था | यहाँ तक तो सब ठीक था परन्तु मंच संचालक जो स्थानीय कवि था |गलती से मुझे भी पहचानता था , उस ने टाइम पास करने के लिए मुझ से मंच पर आ कर बच्चों का मार्ग दर्शन करने की घोषणा कर दी क्यों कि नेता जी के आने में अभी देर थी उस ने सोचा चलो इतनी देर में इन से तैओम पास करवा लिया जाये क्यों कि डांस यानि नाच के कार्यक्रम तो नेता जी दिखा कर खुश करने के लिए तभी करवाने थे इस लिए उस ने मुझे मतग दर्शन का आदेश सुना दिया |
परन्तु मैं तो वहाँ गले में माला डलवाने के चक्कर में गया था परन्तु यह माला के चक्कर मर गले में मुसीबत ही पड़ गई कईं कि बच्चो का मत्गद्र्ष्ण करना कोई आसन काम थोड़ी है मार्ग दर्शन यानि उपदेश देना |परन्तु मैंने सोचा देश की बात करना ठीक है पर यहाँ तो देश के आगे उप लगा कर देश को छोटा करने की बात हो रही थी |मैंने पूछ ही लिया कि मार्ग दर्शन करूं या उप देश करूं ?हिंदी की अध्यापिका से भी नही रहा गया उस ने तुरंत खा "सर !उपदेश करिये यानि इतने बड़े देश को उप देश करूं परन्तु यह काम तो पहले ही बहुत हो चुका है इतने बड़े आर्य व्रत का उप होते २ छोटा सा टुकड़ा रह गया है यदि प्राचीन इतिहास में न भी जाएँ तो भी भारत के ही बहुत से उपदेश बन गये पहले पाकिस्तान बनवाया फिर बंगला देश बना और आज कल की राजनीति इस देश के और भी उपदेश बन्नाने के चक्कर में हैं |
परन्तु जहाँ तक मार्ग दर्शन की बात है तो यह काम दूर दर्शन और बहुत से टी वी चैनल कर ही रहे हैं क्यों कि आज कल उन का दर्शन ही सब से ज्यादा और सब से महत्व पूर्ण हो गया है बच्चे तो चलो बच्चे हैं पर बड़े भी उसी के दर्शन से अपना २ मतग दर्शन कर रहे हैं |हम सब जानते हैं कि पहले तो मार्ग दर्शनका काम माँ बाप ,गुरुजन ,संत महात्मा व समाज के बड़े लोग करते थे पर अब इन्हें कौन पूछता है आप सब जानते हैं कि जब आप ने ही अपने मा बाप की नही सुनी तो आगे के बच्चे ही अपने माँ बाप की कटना सुनेगे गुरु जी की तो बस पूछो ही मत और साधू संतों के उपदेशों को तो पोंगा पंथी कहने का फैशन ही हो गया है |रही बात समाज की तो उस की प्रवाह ही कौन करता है इस लिए मेरे लिए यह बड़ी विकट समस्या हो गई कि मैं क्या मार्ग दर्शन करूं |
बच्चे जब अपने मा बाप कि ही नही सुनते उन्हें ही उल्टा वे ही पढ़ा और समझा देते हैं कि आप को नही पता तुम लोग चुप रहो अब ऐसा नही होता जो आप के टाइम में होता था |क्यों कि अब वे पढ़ लिख कर बहुत कुछ सिख गये हैं और सीखे भी उन से हैं जो हम से सीखते थे |जिन्होंने हम से सभ्यता सीखी ,अंक गणित सीखा ,ज्ञान सीखा ज्ञान विज्ञान सीखा परन्तु उन्हें जो ये बढिया २ धर्म व दर्शन की बातें सिखाई वे दुष्टों के डर के मारते उन्हें धीरे २ भूल गये और उन्ही के डर से उन्ही के अनुसार आतंकवाद सीख कर उसे ही धर्म मान कर करने लगे इस के अलावा और भी बहुत सी बातें दूसरे लोगों से सीख लीं जो उपर २ प्रेम व करुणा की बातें करते हैं परन्तु अंदर ही अंदर आदमी की आदमियत ही बदल देते हैं उन के बड़े बूढ़े तो हमारे यहाँ सीखने आते थे परन्तु हम उन की बुराइयों को भी अच्छी मान कर उन्हें ही सीखना अपना बडप्पन समझने लगे परन्तु वे सीखते क्या हैं असली बात तो यह है तो आप को इस का पता ही है कि वे उन से खाने पीने ,सोने बैठने से ले कर दिशा मैदान जाना तक उन्ही की तरह सिख गये और इतना ही नही ये बातें ही आज गाँव देहात तक में भी सीखी जाने लगीं हैं |
हमारे यहाँ एक रक्षा बंधन का त्यौहार होता है भाई बहन आपस में ख़ुशी २ राखी बंधते हैं अडोस पडोस की लडकियाँ भी राखी बाँध जातीं थीं उन्हें भी बहन की ही तरह माना जाता था परन्तु अब तो बहन को भी ठीक से बहन मानना मुश्किल हो रहा है उसे तो पचास रूपये देने में भी रोने पड़ते हैं परन्तु बाहर से सीख कर वैलनटाइन डे पर दो रूपये के गुलाब को सौ रूपये में खरीद कर लिए २ फिरते हैं | बताओ कितनी बड़ी २ बातें सीख रहे हैं परन्तु जिसे गुलाब देना है तो उस के घर जा जर दो न जैसे पडोस की लडकी के घर जा कर सब के सामने राखी बंधवा आते थे परन्तु गुलाब देने में छुपते २ फिरते हो हिम्मत है तो जिस के सामने देना है उस के घर जा कर दो न पता चल जायेगा और तुम्हारी बहन को जो गुलाब देना चाहता है उसे भी घर बुला कर चाय नाश्ता करवाओ परन्तु अपनी बहन के पीछे तो जेम्ज बांड की तरह घुमते हो और दूसरे की बहन के पीछे ऐसे घुमते हो जैसे बस अब क्या कहूँ रहने भी दो |
परन्तु स्कूल वालों ने बताया कि आप तो ऐसा नही वैसा मार्ग दर्शन करो क्यों कि ऐसा वैसा मार्ग दर्शन तो आजकल सब कर देते हैं या बच्चे स्वयं भी बहुत कुछ सीख लेते हैं |
ऐसे ही एक वार्षिक उत्सव का निमन्त्रण मुझे भी आया | मैं भी प्रसन्न था कि चलो अभिभावकों से गई लूट में से मुझे भी फूलों की एक माला मिलेगी इसी प्रसन्नता में मैं भी फूल कर कुप्पा हो रहा था | यहाँ तक तो सब ठीक था परन्तु मंच संचालक जो स्थानीय कवि था |गलती से मुझे भी पहचानता था , उस ने टाइम पास करने के लिए मुझ से मंच पर आ कर बच्चों का मार्ग दर्शन करने की घोषणा कर दी क्यों कि नेता जी के आने में अभी देर थी उस ने सोचा चलो इतनी देर में इन से तैओम पास करवा लिया जाये क्यों कि डांस यानि नाच के कार्यक्रम तो नेता जी दिखा कर खुश करने के लिए तभी करवाने थे इस लिए उस ने मुझे मतग दर्शन का आदेश सुना दिया |
परन्तु मैं तो वहाँ गले में माला डलवाने के चक्कर में गया था परन्तु यह माला के चक्कर मर गले में मुसीबत ही पड़ गई कईं कि बच्चो का मत्गद्र्ष्ण करना कोई आसन काम थोड़ी है मार्ग दर्शन यानि उपदेश देना |परन्तु मैंने सोचा देश की बात करना ठीक है पर यहाँ तो देश के आगे उप लगा कर देश को छोटा करने की बात हो रही थी |मैंने पूछ ही लिया कि मार्ग दर्शन करूं या उप देश करूं ?हिंदी की अध्यापिका से भी नही रहा गया उस ने तुरंत खा "सर !उपदेश करिये यानि इतने बड़े देश को उप देश करूं परन्तु यह काम तो पहले ही बहुत हो चुका है इतने बड़े आर्य व्रत का उप होते २ छोटा सा टुकड़ा रह गया है यदि प्राचीन इतिहास में न भी जाएँ तो भी भारत के ही बहुत से उपदेश बन गये पहले पाकिस्तान बनवाया फिर बंगला देश बना और आज कल की राजनीति इस देश के और भी उपदेश बन्नाने के चक्कर में हैं |
परन्तु जहाँ तक मार्ग दर्शन की बात है तो यह काम दूर दर्शन और बहुत से टी वी चैनल कर ही रहे हैं क्यों कि आज कल उन का दर्शन ही सब से ज्यादा और सब से महत्व पूर्ण हो गया है बच्चे तो चलो बच्चे हैं पर बड़े भी उसी के दर्शन से अपना २ मतग दर्शन कर रहे हैं |हम सब जानते हैं कि पहले तो मार्ग दर्शनका काम माँ बाप ,गुरुजन ,संत महात्मा व समाज के बड़े लोग करते थे पर अब इन्हें कौन पूछता है आप सब जानते हैं कि जब आप ने ही अपने मा बाप की नही सुनी तो आगे के बच्चे ही अपने माँ बाप की कटना सुनेगे गुरु जी की तो बस पूछो ही मत और साधू संतों के उपदेशों को तो पोंगा पंथी कहने का फैशन ही हो गया है |रही बात समाज की तो उस की प्रवाह ही कौन करता है इस लिए मेरे लिए यह बड़ी विकट समस्या हो गई कि मैं क्या मार्ग दर्शन करूं |
बच्चे जब अपने मा बाप कि ही नही सुनते उन्हें ही उल्टा वे ही पढ़ा और समझा देते हैं कि आप को नही पता तुम लोग चुप रहो अब ऐसा नही होता जो आप के टाइम में होता था |क्यों कि अब वे पढ़ लिख कर बहुत कुछ सिख गये हैं और सीखे भी उन से हैं जो हम से सीखते थे |जिन्होंने हम से सभ्यता सीखी ,अंक गणित सीखा ,ज्ञान सीखा ज्ञान विज्ञान सीखा परन्तु उन्हें जो ये बढिया २ धर्म व दर्शन की बातें सिखाई वे दुष्टों के डर के मारते उन्हें धीरे २ भूल गये और उन्ही के डर से उन्ही के अनुसार आतंकवाद सीख कर उसे ही धर्म मान कर करने लगे इस के अलावा और भी बहुत सी बातें दूसरे लोगों से सीख लीं जो उपर २ प्रेम व करुणा की बातें करते हैं परन्तु अंदर ही अंदर आदमी की आदमियत ही बदल देते हैं उन के बड़े बूढ़े तो हमारे यहाँ सीखने आते थे परन्तु हम उन की बुराइयों को भी अच्छी मान कर उन्हें ही सीखना अपना बडप्पन समझने लगे परन्तु वे सीखते क्या हैं असली बात तो यह है तो आप को इस का पता ही है कि वे उन से खाने पीने ,सोने बैठने से ले कर दिशा मैदान जाना तक उन्ही की तरह सिख गये और इतना ही नही ये बातें ही आज गाँव देहात तक में भी सीखी जाने लगीं हैं |
हमारे यहाँ एक रक्षा बंधन का त्यौहार होता है भाई बहन आपस में ख़ुशी २ राखी बंधते हैं अडोस पडोस की लडकियाँ भी राखी बाँध जातीं थीं उन्हें भी बहन की ही तरह माना जाता था परन्तु अब तो बहन को भी ठीक से बहन मानना मुश्किल हो रहा है उसे तो पचास रूपये देने में भी रोने पड़ते हैं परन्तु बाहर से सीख कर वैलनटाइन डे पर दो रूपये के गुलाब को सौ रूपये में खरीद कर लिए २ फिरते हैं | बताओ कितनी बड़ी २ बातें सीख रहे हैं परन्तु जिसे गुलाब देना है तो उस के घर जा जर दो न जैसे पडोस की लडकी के घर जा कर सब के सामने राखी बंधवा आते थे परन्तु गुलाब देने में छुपते २ फिरते हो हिम्मत है तो जिस के सामने देना है उस के घर जा कर दो न पता चल जायेगा और तुम्हारी बहन को जो गुलाब देना चाहता है उसे भी घर बुला कर चाय नाश्ता करवाओ परन्तु अपनी बहन के पीछे तो जेम्ज बांड की तरह घुमते हो और दूसरे की बहन के पीछे ऐसे घुमते हो जैसे बस अब क्या कहूँ रहने भी दो |
परन्तु स्कूल वालों ने बताया कि आप तो ऐसा नही वैसा मार्ग दर्शन करो क्यों कि ऐसा वैसा मार्ग दर्शन तो आजकल सब कर देते हैं या बच्चे स्वयं भी बहुत कुछ सीख लेते हैं |
इस लिए आप तो वैसा मार्ग दर्शन करो दूसरे वाला |मैंने सोचा जरूर मेरे किसी शत्रु ने इन को मेरा नाम इस काम के लिए बताया होगा जो कि मुझ से अपनी दुश्मनी इन के माध्यम से आसानी से निकल रहा होगा क्यों कि जिस २ ने भी मार्ग दर्शन करने का प्रयत्न किया उस २ को ही समाज ने दंड दिया है किसी को भी नही छोड़ा कि भाई ये मार्ग दर्शन करने वाले हैं इन्हें तो छोड़ दो पर नही किसी ने भी इन की नही सुनी |
इस का बड़ा सटीक उदाहरन भक्ति काल के महान संत कबीर दास हुए हैं उन्होंने अपने प्राणों की भी प्रवाह किये बिना ही सही २ बात कहने का प्रयत्न किया यानि मार्ग दर्शन करने की कोशिश की इसी मार्ग दर्शन की कोशिश के कारण उन के बहुत से शत्रु बन गये और उन्हें पूजने के बजाय उन की जानके ही पीछे पड़ गये और इतने पीछे पड़े कि उन्हें हाथी के पैर से बंधवा कर काशी की गलियों में खिंच्द्वाया |उन दुष्टों से उन्हें जान बचानी भी मुश्किल हो गई इसी मार्ग दर्शन के कारण | कबीर ही नही संत तुलसी दास के साथ भी ऐसा ही हुआ उनके पीछे भी लोग पड़ गये उन की लिखी हुई श्री रामचरित मांस को ही नष्ट करने का विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करने लगे क्यों कि उन्होंने भगवान श्री राम जी के चरित्र के माध्यम से लोगों का मार्ग दर्शन करने का प्रयत्न किया इसी कारण विभिन्न प्रकार से उन्हें दूसरे तथा कथित विद्वानों ने खूब सताया |
इसी प्रकार स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने भी समाज का मार्ग दर्शन करने का प्रयत्न किया उन्होंने भी पाखंडों का खूब खंडन कर के सही मार्ग दर्शन किया परन्तु लोगो को यही तो चिढ होती है कि कोई मार्ग दर्शन क्यों करता है वे किसी को मार्ग दर्शन करने ही देते हैं इसी लिए उन्होंने स्वामी जी को मार्ग दर्शन करने के कारण ही कई बार खाने में विष मिला कर खिला दिया और आखिर इसी मार्ग दर्शन के कारण उन्हें भी अपने प्राण गंवाने पड़े |
इसी तरह देश में कई और मत जिन्हें हम ग्ज्ती से धर्म कहते हैं वे भी ऐसे ही लकीर के फकीर हैं वे मार्ग दर्शन लेना ही नही चाहते और बाबा आदम के जमाने की लकीर को पीटना ही अपना धर्म समझे हुए हैं जब कि वह धर्म नही है अधर्म है क्यों कि बात बात २ में उन का धर्म खतर में आ जाता है और वे तुंत लड़ाई झगड़े और आगजनी तक पर उतारू हो जाते हैं उन से पूछो क्या यही तुम्हारा धर्म है लड़ाई करना और क्या वह इतना कमजोर है कि दूसरोंके आरती करने से घंटा बजाने से भी टूट जाता है उन से पूछो कि तुम कुछ नही करते कए क्या दूसरे से झगड़ने से धर्म पालन होता है तो उसे धर्म कह सकते हैं यहाँ तो लोगो ने अपना शीश तक बलिदान कर के धर्म की रखा की दूसरों को मार कर नही या आतंक फैला कर नही |
इन सब बातों को सोच कर मैंने भी मार्ग दर्शन करने का विचार आजकल छोड़ा हुआ है क्यों कि पता नही मेरे मार्ग दर्शन करने से कब किसी की अक्ल सनक जाये और वह मार्ग दर्शित होने के बजाय मेरी जान के ही पीछे पड़ जाये क्यों कि जिस को भी अच्छी भलाई की बात कहूँगा वो ही मेरा दुश्मन हो जयेगा और तो और खुद के बीबी बच्चे भी मार्ग दर्शन नही चाहते वे भी अपने २ हिसाब से चलते हैं और उल्टा मेरा ही मार्ग दर्शन कर देते हैं | इस लिए अपना २ मार्ग दर्शन खुद कर लो क्यों कि महात्मा बुद्ध ने इन्ही सब कारणों को सोचते हुए शायद किसी का मार्ग दर्शन नही किया हो और सब को इसी लिए कह दिया होगा "आप्प दीप्पो भव "यानि सब अपना २ मार्ग दर्शन खुद कर लो , मुझे रहने ही दो तो बड़ी मेहरबानी होगी |
इस का बड़ा सटीक उदाहरन भक्ति काल के महान संत कबीर दास हुए हैं उन्होंने अपने प्राणों की भी प्रवाह किये बिना ही सही २ बात कहने का प्रयत्न किया यानि मार्ग दर्शन करने की कोशिश की इसी मार्ग दर्शन की कोशिश के कारण उन के बहुत से शत्रु बन गये और उन्हें पूजने के बजाय उन की जानके ही पीछे पड़ गये और इतने पीछे पड़े कि उन्हें हाथी के पैर से बंधवा कर काशी की गलियों में खिंच्द्वाया |उन दुष्टों से उन्हें जान बचानी भी मुश्किल हो गई इसी मार्ग दर्शन के कारण | कबीर ही नही संत तुलसी दास के साथ भी ऐसा ही हुआ उनके पीछे भी लोग पड़ गये उन की लिखी हुई श्री रामचरित मांस को ही नष्ट करने का विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करने लगे क्यों कि उन्होंने भगवान श्री राम जी के चरित्र के माध्यम से लोगों का मार्ग दर्शन करने का प्रयत्न किया इसी कारण विभिन्न प्रकार से उन्हें दूसरे तथा कथित विद्वानों ने खूब सताया |
इसी प्रकार स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने भी समाज का मार्ग दर्शन करने का प्रयत्न किया उन्होंने भी पाखंडों का खूब खंडन कर के सही मार्ग दर्शन किया परन्तु लोगो को यही तो चिढ होती है कि कोई मार्ग दर्शन क्यों करता है वे किसी को मार्ग दर्शन करने ही देते हैं इसी लिए उन्होंने स्वामी जी को मार्ग दर्शन करने के कारण ही कई बार खाने में विष मिला कर खिला दिया और आखिर इसी मार्ग दर्शन के कारण उन्हें भी अपने प्राण गंवाने पड़े |
इसी तरह देश में कई और मत जिन्हें हम ग्ज्ती से धर्म कहते हैं वे भी ऐसे ही लकीर के फकीर हैं वे मार्ग दर्शन लेना ही नही चाहते और बाबा आदम के जमाने की लकीर को पीटना ही अपना धर्म समझे हुए हैं जब कि वह धर्म नही है अधर्म है क्यों कि बात बात २ में उन का धर्म खतर में आ जाता है और वे तुंत लड़ाई झगड़े और आगजनी तक पर उतारू हो जाते हैं उन से पूछो क्या यही तुम्हारा धर्म है लड़ाई करना और क्या वह इतना कमजोर है कि दूसरोंके आरती करने से घंटा बजाने से भी टूट जाता है उन से पूछो कि तुम कुछ नही करते कए क्या दूसरे से झगड़ने से धर्म पालन होता है तो उसे धर्म कह सकते हैं यहाँ तो लोगो ने अपना शीश तक बलिदान कर के धर्म की रखा की दूसरों को मार कर नही या आतंक फैला कर नही |
इन सब बातों को सोच कर मैंने भी मार्ग दर्शन करने का विचार आजकल छोड़ा हुआ है क्यों कि पता नही मेरे मार्ग दर्शन करने से कब किसी की अक्ल सनक जाये और वह मार्ग दर्शित होने के बजाय मेरी जान के ही पीछे पड़ जाये क्यों कि जिस को भी अच्छी भलाई की बात कहूँगा वो ही मेरा दुश्मन हो जयेगा और तो और खुद के बीबी बच्चे भी मार्ग दर्शन नही चाहते वे भी अपने २ हिसाब से चलते हैं और उल्टा मेरा ही मार्ग दर्शन कर देते हैं | इस लिए अपना २ मार्ग दर्शन खुद कर लो क्यों कि महात्मा बुद्ध ने इन्ही सब कारणों को सोचते हुए शायद किसी का मार्ग दर्शन नही किया हो और सब को इसी लिए कह दिया होगा "आप्प दीप्पो भव "यानि सब अपना २ मार्ग दर्शन खुद कर लो , मुझे रहने ही दो तो बड़ी मेहरबानी होगी |
नोट :- अगर आप करते है सार्थक लेखन तो यह मंच है आपके लिए, आप अपनी रचनाओं को 1blog.sabka@gmail.com पर मेल करें उन्हें यहाँ प्रकाशित किया जायेगा..
सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन आलेख ,..
जवाब देंहटाएंNEW POST...फिर से आई होली...
bndhuvr kin shbdon me aabhar vykt kroon jo aap ne kripa kr ke yh lekh pdhaa hridy se aabhari hoon
हटाएंबेहतरीन आलेख ,..
जवाब देंहटाएंsangiita ji aap ne kripa poorvk yh aalekh pdha kin shbdon me aabhar vykt kroon kripya aabhar swikar kr len
हटाएंबहुत खूब लिखा है
जवाब देंहटाएंaap ko rchna psnd aai prsnnta hai kripya mera hardik aabhar swikar kren smvad bna rhe prsnnta hogi
हटाएंपोस्ट करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ही नया और रोचक बहुत ही अच्छा
जवाब देंहटाएंbndhuvr kripya hardik aabhar swikar kr len
हटाएंbahut badhiya.
जवाब देंहटाएंdr. nisha ji aap ka nirntr meri rchna ko sneh prapt ho rha hai prsnnta ho rhi hai
हटाएंkriya mera hardik aabhar swikar kr len smvad bna rhe prsnnta hogi
बेहतरीन लेख ..
जवाब देंहटाएंbndhuvr aap ka meri rchna ko sneh prapt huaa saubhagy hai kripya mera hardik aabhar swikar kren
हटाएंआपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (३३) में शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से अवगत करिए /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /
जवाब देंहटाएंइसका लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/03/33-happy-holi.html
prerna ji aap ka rchna ko sneh prapt huaa prsnnta ho rhi hai
हटाएंkripya mera hardik aabhar swikar kr len
रंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंbhai stish ji aap ka sneh vshubhkamnayen mera smbl hain bnaye rhiye sch me bhut smbl milta hai
हटाएंkripya mera hardik aabhr swikar kren
बेहतरीन लेख ..
जवाब देंहटाएंहम भी आगरा से हैं दोस्त.....
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