सारंग !
तुम संगीत में आत्म लय हो जाते हो ।
मोह जाल में बंधकर
जान से जाते हो ।
क्यों ?
जाल में फंसा घायल मृग ,
तड़फड़ाया ;
यही कह पाया ।
यह तो है प्रेम की ही माया ,
नाद प्रेम तो है जन जन में समाया ।
नाद जीवन है, नाद जगत है ,
नाद है प्रभु की छाया ।
जो आनंद नाद जी लेता है,
नाद रूपी प्रेम रस पी लेता है ,
वह तो एक क्षण में ही -
सारा जीवन जी लेता है ||
नाद आनंद है,
प्रेमानंद है, परमानंद है,
ब्रह्मानंद है |
कल कल निनाद है,
अंतर्नाद है |
सारा जगत ही जीवन का नाद है ;
नाद ब्रह्म का संवाद है |
फिर क्या जीना ,
क्या मरना ;
व्यर्थ का विवाद है ||
बहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
धन्यवाद शा्न्ति जी...काव्यानन्द..
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना श्याम जी......
जवाब देंहटाएंसादर.
अनु
धन्यवाद...अनु...
हटाएं----आनन्दाणु समस्त विश्व में प्रवाहित हों.. ॐ..
अनहद नाद की अनुभूति ही अंतिम लक्ष्य हो।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देवेन्द्र...
हटाएं--- सुन्न भवन में अनहद बाजे.....
सारा जगत ही जीवन का नाद है ;
जवाब देंहटाएंनाद ब्रह्म का संवाद है |
फिर क्या जीना ,
क्या मरना
वाह ... बहत खूब ....सुन्दर अभिव्यक्ति |
धन्यवाद सबाई सिन्ह जी... जीवन स्वयं ही ब्रह्म का का नाद है.."एकोहं बहुस्याम"..
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