देश स्वत्रन्त्र हुआ तो कुछ लोग कहने लगे की देश में बन रहे बड़े 2 बाँध ही देश के लिए अब धर्म स्थल हैं । मैं उन की इन भावनाओ पर कोई आतंकी हमला नही करना चाहता हूँ कोई अपनी मां को माता जी कहे मम्मी कहे या अम्मी कहे मुझे इस में क्या आपत्ति हो सकती है परन्तु मुझे अपनी बात कहने का भी पूरा अधिकार है तभी तो मैं इस देश में स्वतन्त्रता माँनूगा वैसे अपनी बात कहने का अधिकार हो या न हो पर कहने को तो स्वतन्त्रता है ही पर लेखक कौन सा कम है वो भी छंटे हुए ही होते हैं वे भला अपनी बात को बिना खे कैसे रह सकते हैं चाहे खाए बिना रह जाएँ परन्तु वे कहे या लिखे बिना कैसे रह सकते हैं इसी लिए कहता हूँ कि असल में तो आधुनिक समाज के धर्म स्थल तो नाई की दुकान को ही कहना चाहिए आलतू फालतू चीजों को नही ।
मेरी यह बात सुन कर भाई भरोसे लाल एक दम मेरे प्रति पक्ष में खड़े हो गये जैसे मैंने सत्ता रूढ़ दल के आका के विरुद्ध कोई अपशब्द कह दिया हो या उन पर कोई घोटालेका आरोप लगा दिया हो । वे एक दम प्रतिवाद करने लगे और प्रति वाद भी ऐसा करने लगे जैसे लोग अपने नम्बर बनाने के चक्कर में शोर मचाने लगते हैं और रोके से भी नही रुकते हैं परन्तु मैं भी अड़ गया कि आप को मेरी बात सुननी ही पड़ेगी नही तो .....,भरोसे लाल ने मेरे नही तो बाद मैं क्या कहूँगा इस के लिए कुछ क्षण इंतजार किया । पर मैं कुछ कह कर अपने आप को किसी बंधन में क्यों बाधूं यदि मन कहता कि मैं खम्बे पर चढ़ जाऊँगा तो वे कहते कि कभी पेड़ पर तो चढ़ नही पाया खम्बे पर क्या चढ़ेगा और यदि मैं कहता कि आमरण अनशन करूंगा तो वे कहते ख़ुशी से करो और मरने से पहले तक अनशन खत्म मत करना और न ही कोई मेरा अनशन तुडवाने आता आखिर मुझे खुद ही अनशन तोडना पड़ता और बच्चे बुलवा कर अपना अनशन खुद तोडना पड़ता पर मुझे बहुत बुरा लगता कि मैं तो बच्चों से जूस पी रहा होता और बच्चे बेचारे मेरे मुंह की और देख रहे होते मेरे गले से जूस नीचे ही नही उतरता ।
मान लो मुझे यह सब कुछ करना पड़ जाता तो मैं अपनी बात कैसे कह सकता था फिर तो उपवास की समाप्ति पर हीसब खत्म हो जाता पर मैं इतना ना समझ भी नही हूँ जो बिना अपनी बात कहे रह जाऊं मरूं क्यों , मरे मेरे दुश्मन मैं तो अपनी बात कहूँगा और खूब शोर मचा कर उसे दुनिया में मनवा भी लूँगा क्यों की आजकल का जमाना ही ऐसा है कि किस बात को मनवाने के लिए खूब शोर करो तो उस का असर जनता पर हो जाता है क्यों की जनता अपना दिमाग कहाँ लगती है जो जैस कह देता है उसे ही दोहराने लगती है बच्चों की तरह या मूर्खों की तरह कभी आसूओ की बाढ़ में बह जाती है कभीगम के पोखर में डूब मरती है कभी दारू को ही चरणामृत मान लेती है जिस से झूठ भी सच बन जाता है पर आप को खूब अच्छी तरह शोर मचाना आना चाहिए ।
हाँ तो मैं कह रह था की हमे यदि किस स्थान को आधुनिक धर्म स्थल कहना ही है तो वह है नाई की दुकान जिन्हें इन धर्म स्थलों की संज्ञा दी जा सकती है मेरी यह बात सोलह आने यानि शत प्रतिशत या हन्दरद परसेंट एक दम सही है इस में किसी को कोई शक नही होना चाहए और यदि कोई एक भी विरोध करेगा तो वह निश्चित देश द्रोही होगा ऐसे लोग हर काम में गलती ही देखते रहते हैं यह तो उन की आदत ही है ऐसे लोग कोई काम ही नही करने देते हैं मैं तो सत्ता रूढ़ पार्टी की तरह भुत कुछ करना चाहता हूँ पर मेरे विरोधी विपक्षी पार्टियों की तरह मेरे विरोध करते रहते हैं और मुझे कुछ करने ही नही देते हैं आखिर मैं कुछ तो कर ही रहा हूँ चाहे उल्टा करूं या सीधा उन्हें सोचना चाहिए की मैं कुछ तो कर ही रहा हूँ पर वे अपनी आदतों से बाज खान आते हैं परन्तु मैं उन की प्रवाह भी नही करता वो कुछ दिन में अपने आप थक हर कर चुप हो जायेगें नही तो और त्रिकोण से चुप करा दिया जायेगा ।
इस लिए मुझे मेरी बात कहने दो जो पूछना है बाद में पूछना यदि मैं पूछने का मौका दूं नही तो मैं अपनी बात कह कर जैसे नेता प्रेस कान्म्फ्रेस खत्म कर देते ऐसे ही मैं भी अपनी बात कह कर चलता बनूंगा और यह जरूरी नही की मैं आप के प्रश्नों का उत्तर ही दूं क्यों की यदि उत्तर दूंगा तो जरूर फंस जाऊँगा इस से तो अच्छा है कि बस अपनी बात कहूं और किसी की भी न सुनूँ बाकि जो कहते हों वे कहते रहें ।इसी लिए मैं कहता हूँ की नाई की दुकान ही वास्तव में आज के पूजा स्थल हैं । तब भाई भरोसे लाल कहा कि यह सिद्ध भी करना पड़ेगा केवल मेरे कहने भर से काम थोड़ी चल जायेगा तब मुझे लगा कि भाई भरोसे लाल अब कुछ सुनने के मूड में आ गये हैं क्यों की अब वह मेरे खिलाफ बोल 2 कर थक चुके थे । मुझे भी इसी मौके का इंतजार था तो मैं भी शुरू हो गया की देखो आप को कहीं भी सुबह या शाम को जाना किसी धार्मिक स्थल पर जाने की जरूरत नही है आप जब भी बाजार की तरफ निकले या वहन से गुजरे तो नाई की दुकान जरूर बाजार में मिलेगी बस वहाँ आप अपना सर झुका लिया करें क्यों कि एक तो वहां वैसे ही अच्छे 2 आ कर अपना सर झुकाते हैं परन्तु यहाँ वैसे भी आते जाते सर झुकाने के बाद आप को कहीं सर झुकाने की या किसी धर्मिक स्थल पर जाने की जरूरत ही नही पड़ेगी ।
अरे भाई !बताओ तो कैसे ?भाई भरोसे लाल झुझला कर बोले ।तो मैंने कहा देखो नाई की दुकान ही एक ऐसी जगह है जहां सभी धर्मों या मतों के पूजनीय चिह्न व् चित्र एक साथ होते हैं बताओ और किसी दूसरी जगह कहीं देखे हैं आप ने ? मन्दिर में जाओगे तो आप को अन्य मतों के चिह्न नही मिलेंगे या मस्जिद में या चर्च में तो किसी अन्य मत के प्रतीक चिह्न का तो सवाल ही नही पैदा होता है परन्तु यहाँ नाई की दुकान पर आप को सब मिल जायेंगे बेशक सरकार इस के लिए गला फाड़ 2 कर चिल्लाती है रात दिन एक करती है पैसा भी पानी की तरह बहाती है परन्तु उस के बाद भी कहीं साम्प्रदायिक एकता दिखाई नही देती है न चर्च में न मस्जिद में और न ही कहीं और सिवाय नाई की दुकान के बताओ भाई भरोसे लाल जी ऐसा है या नही है ।
परन्तु उन के पास मेरे इस तर्क का कोई जबाब नही था परन्तु फिर भी वे इतनी आसानी से हर मानने वाले नही थे । इसी लिए चुप रह कर भी मेरी ओर अन्य सबूतों के मांगने की मुद्रा में मुहं बनाये रहे परन्तु मैंने कहा पहले मेरी इस बात की हाँ भरो तब और भी बताऊंगा तो उन्हें मजबूरी में अपना सिर हिलाना ही पड़ा ।परन्तु मन से नही उपर 2 से ही तो मैंने उन्हें दूसरा उदाहरन बताया की जैसे अंग्रेजों ने हमारे यहाँ पूरिनमा और अमावश्या के अवकाश को बंद कर दिया और रविवार यानि इतवार या संडे की छुट्टी जबरदस्ती करवानी शुरू कर दी तब हमे भी जबरदस्ती छुट्टी करनी पड़ी क्यों तब तो गोर अन्गेर्जों का दबाब था पर बाद में काले अंगेजों का भी उतना ही दबाब रहा और इतवार की ही पहले की तरह छुट्टी होती रही और वह भी सरकारी आदेश से ।
परन्तु देखो नाई की दुकान के लिए कोई ऐसा आदेश नही है वे सरकार के इस दबाब या आदेश को नही मानते हैं वे इतवार को छुट्टी नही करते बताओ आप क्या कर लोगे अपितु वे तो इस का खूब फायदा भी उठाते हैं और इतवार को तो सारे दिन ही काम करते हैं अपितु वे मंगलवार को छुट्टी करते हैं क्यों कि यहाँ पर मंगलवार को बाल नही कटवाते हैं और न ही नाखून ही काटते हैं और इसी दिन हनुमान जी की पूजा के कारण ही ज्यादातर इस दिन मांस आदि का सेवन भी नही करते हैं इसी लिए मंगल वर के दिन नाई भी अपनी दुकान बंद रखते हैं चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान ।
इस के बाद भी भाई भरोसे लाल इतनी आसानी से मानने वाले नही थे तो उन्होंने कहा की धर्म स्थलों की जगह भला नाई की दुकान कैसे ले सकती है ।तब उन्हें समझाया कि सब लो धर्म स्थलों पर अच्छाई के लिए जाते हैं परन्तु आप बताओ मन्दिरों में भी भगवान जी के दर्शन के लिए पंक्तियों में खड़े लोगो की भी जेब कट जाती हैं या जूतियाँ चुरा ली जातीं हैं और शुक्रवार को यानि जुम्मे की नमाज के बाद भी लोग सडकों पर उत्पात मचाते हैं आगजनी कर देते हैं लूटपाट कर देते हैं यहाँ तक कि हत्या तक करने में परहेज नही करते हैं इसी तरह चर्च में भी दूसरों का धर्म खरीदने की योजनायें बनती हैं । इन सब से अच्छी तो नाई की दुकान है क्यों कि वहाँ कम से कम लोग झगड़ा तो नही करते हैं और अपनी 2 बरी आने तक लोग सभी मतों के प्रतीकों के दर्शन करते रहते हैं ।
भाई भरोसे लाल जी अब बताओ नई की दुकान अच्छी है या कुछ और इसी लिए मैं इसे धर्म स्थल कहता हूँ और इतना ही नही यह आधुनिक धर्म स्थल इस लिए भी है की यह लोकतंत्र या प्रजा तन्त्र की पाठशाला भी तो है संसद की ही भांति सभी पार्टियों के लोग यहाँ आते हैं और सभी अपनी 2 पार्टी के पक्ष में बातें करते हैं तथा दुकान का मालिक नाई जी सभापति की ही भांति सब की सुनता रहता है पर वह निष्पक्ष होने के नाते अपनी राय नही देता है वह तो पार्टी से उपर उठ कर सब की सुनता है और कर्म की पूजा करते हुए अपना काम करता रहता है ।
भाई और सुनो ये नाई की दुकान समय के साथ 2 प्रगतिशील भी खूब है भाई भरोसे लाल आप ने बचपन में नई से सिर पर खूब गुठली फिरवाई होगी परन्तु अब जा कर देखो गुठली फिरवाने की बात तो दूर अब तो वहां क्या बड़े 2 आदम कद दर्पण लगे होते हैं और अब वह शायद गुठली फिरवाना समझे भी नही की कैसे गुठली फेरी जाती है वहां खड़ा उन का पोता इस गुठली फेरने की बात पर जोर से हंस पड़ा तब मैंने मैंने उसे पूछा कि बेटे तुम्हे पता है यह गुठली फेरना क्या होता है उस ने न में सिर हिलाया तब मुझे बताना पड़ा कि जब तुम्हारे दादा जी के बाल काटने नाईआता था तो मैं और तुम्हारे दादा जी दोनों भुस के बोंगे यानि चारा रखने के स्थान में जा कर छुप जाते थे तब हमे वहां भी ढूंढ कर निकल लिया जाता था और हम दोनों के सिर पर गुठली फिरवा दी जाती थी क्यों की सर्दी में खोपड़ी पर उस्तरा फिरवाने से यानि पूरे बाल सफा चट हो जाने पर सर्दी लग जाने का खतरा रहता था इस लिए छोटे 2 बाल काट कर ताऊ नाई हमारे सिर पर आम की आधी कटी हुई गुठली घुमा देता था जिस से हमारे सर में महीनों की जमी धुल उस गुठली में आ जाती थी क्यों तब आज कल जैसे शैम्पू या साबुन तो थे नही बस कुएं पर जा कर शरीर के उपर पानी बिखेर आते थे इस लिए सर पर गुठली फिरवाना जरूरी था इसे ही गुठली फिरवाना कहते हैं समझ गये वैसे ठीक से तब ही समझ आएगी जब आप अपने सर पर गुठली खुद ही फिर्वाओगे ।
भाई भरोसे लाल बच्चे का कारण बात कहीं और चली गई पर चल तो नाई की दुकान की ही हो रही है परन्तु आप को मेरी बात से सहमती तो रखनी ही पड़ेगी कि मैं जो कह रहा हूँ वह एक दम सोलह आने सही है ।
व्यंगकार :- श्री डॉ. वेद व्यथित जी
अनुकम्पा - 1577 सेक्टर -3
फरीदाबाद 121004
09868842688
चित्र गूगल से साभार
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हमारा ई-मेल पता है :- sawaisinghraj007@gmail.com
प्रस्तुतकर्ता :- sawai singh rajpurohit
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंकरवाचौथ की अग्रिम शुभकामनाएँ!
aadrniy bndhu hardik aabhar swikar kren
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
bndhuvr aap ka hardik aabhar
हटाएंbahut sundar prastuti
जवाब देंहटाएंaap ka haridk aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren
हटाएंbndhuvr hardik dhnyvad
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है...बहुत सुन्दर, सटीक और सार्थक व्यंग्य ..बधाई ...
जवाब देंहटाएं---सच में ही नाई की दूकान ही सबसे बड़ा धर्म स्थल है.और नई धर्मनिरपेक्ष सभापति ...तभी तो सभी उसके आगे शीश झुकाते हैं चाहे कितना भी बड़ा तीसमारखां हो ...
abhaar bndhu
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