पुरुष यानि व्यक्ति
जो सो सकता है पैर फैला कर
सारी चिंताएँ हवाले कर
पत्नी यानि स्त्री के
और वह यानि स्त्री
जो रहती है निरंतर जागरूक
और और देखती रहतीहै
आगम कि कठोर
नजदीक आती परछाईं को
और सुनती रहती है
उस कि कर्कश पदचापों कि आहट
क्यों कि सोती नही है वह रात रात भर
कभी उडाती रहती है सर्दी में
बच्चों को अपनी ह्रदय अग्नि
और कभी चुप करती रहती है
बुखार में करते बच्चे को
या बदलती रहती है
छोटे बच्चे के गीले कपडे
और स्वयम पडी रहती है
उस केद्वारा गीले किये पर
या गलती है हिम शिला सी
रोते हुए बच्चे को ममत्व कापय दे कर
और कभी कभी देती रहती है
नींद में बडबदाते पीटीआई यानि पुरुष के
प्रश्नों का उत्तर
मैं क्यों कि उसे तो जागना ही निरंतर है
डॉ. वेद व्यथित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर की जाएगी!
सूचनार्थ!
hridy se aabhar vykt krta hoo kripya swikar kr anugrhit kren
हटाएंmujhe prsnnta hogi
स्त्री के मन कि व्यथा को खूबसूरती से परिभाषित करने में सफल रचना | बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंaap ko rchna ruchikr lgi saubhagy aabhaar swikar kren
हटाएंबहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंkripya hardik aabhar swikar kren
हटाएंbahut hi sundar bhavabhivykti hai...
जवाब देंहटाएंaabhar swikaren
हटाएंkripya aabhar swikar kren
हटाएंबहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपुरुष यानि व्यक्ति
जवाब देंहटाएंजो सो सकता है पैर फैला कर
सारी चिंताएँ हवाले कर
पत्नी यानि स्त्री के
और वह यानि स्त्री
जो रहती है निरंतर जागरूक
और और देखती रहतीहै
आगम कि कठोर
नजदीक आती परछाईं को
और सुनती रहती है
बहुत सुंदर पंक्तियाँ !