तुम्हारा मौन
कितना कोलाहल भरा था
लगा था कहींबादलों कि गर्जन के साथ
बिजली न तडक उठे
तुम्हारे मौन का गर्जन
शायद समुद्र के रौरव से भी
अधिक भयंकर रहा होगा
और उस में निरंतर
उठी होंगी उत्ताल तरंगें
तुम्हारे मौन में
उठते ही रहे होंगे
भयंकर भूकम्प
जिन से हिल गया होगा
पृथ्वी से भी बडा तुम्हारा ह्रदय
इसी लिए मैं कहता हूँ
कि तुम अपना मौन तोड़ दो
और बह जाने दो
अपने प्रेम कि अजस्र धरा
भागीरथी सी शीतल
दुग्ध सी धवल
ज्योत्स्ना सी स्निग्ध
और अमृत सी अनुपम!
रचनाकार :- श्री डॉ. वेद व्यथित जी
ब्लॉग का नाम :- साहित्य सर्जक
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंkripya haardiok aabhar swikar kren
हटाएंmaun bahut hai mushkil hota samjhana,, bahut hi achi kavita.
जवाब देंहटाएंruchi ji smbhvt aap se phli bar milna ho rha hai
हटाएंaap ko rchna ruchikr lgi mera hardik aabhar swikar kren ydi smbhv ho ske to is se porv stri kvita pr bhi drishtipat kr len
बहुत सुन्दर रचना,प्रस्तुत करने के लिए आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना,प्रस्तुत करने के लिए आभार आपका।
जवाब देंहटाएंbndhu hardik aabhar swikr kren
हटाएंbahut sundar prastuti.
जवाब देंहटाएंaap ko rchna achhi lgi saubhagy hai hardik aabhar swikar kren
हटाएंaap ko rchna achhi lgi saubhagy hai hardik aabhar swikar kren
जवाब देंहटाएंमौन की भाषा बहुत सुन्दर होती है, पर उसे समझना हर किसी के बस की बात नहीं होती है।बेहतरीन रचना.....निःसंदेह सराहनीय.....
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
bndhuvr hardik aabhar swikar kren
हटाएंबहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं! पोस्ट करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंbhai yogendr ji hardik aabhar swikar kren
हटाएंatisundar .bahut achchi prastuti.
जवाब देंहटाएंkripya hardik aabhar swikar kren
हटाएंबहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत करने के लिए आभार आपका।
kripya hardik aabhar swikar kren
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