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    3 हफ़्ते पहले

रविवार, 25 मार्च 2012

अभी तो दिन निकला है

अभी तो दिन निकला है
सूरज अठखेली करता है
पता कहाँ चल पाया मुझ को
इतनी जल्दी सांझ हो गई

दिन बीता सपने सा खाली
फिर अंधियारी रात हो गई ||

दीख रहा था अभी सामने
हाथ बढ़ा कर छूना चाहा
पर माया मृग बन कर खुद को
खुद से दूर बहुत ही पाया

कहाँ २ ढूँढा फिर खुद को
सब कोशिश बेकार होगी ||

आखों का विश्वाश अगर मैं
कर भी लूं तो नादानी है
बिना बताये कहाँ उलझ लें
वे पीड़ा से अनजानी हैं

उन का क्या वे उलझ २ कर
मुझ को बेहद पीर दे गईं

26 टिप्‍पणियां:

  1. "अभी तो दिन निकला है
    सूरज अठखेली करता है
    पता कहाँ चल पाया मुझ को
    इतनी जल्दी सांझ हो गई
    दिन बीता सपने सा खाली
    फिर अंधियारी रात हो गई ||"
    sundar panktiyaan....

    जवाब देंहटाएं
  2. दिन बीता सपने सा खाली
    फिर अंधियारी रात हो गई ||very nice.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  5. bndhu kin shbdon me aap ke sneh ka uttr doon
    kripya mera hardik aabhar swikar kren

    जवाब देंहटाएं
  6. दिन बीता सपने सा खाली
    फिर अंधियारी रात हो गई ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय श्री डॉ. वेद व्यथित जी
    इस रचना के लिए आभार

    आखों का विश्वाश अगर मैं
    कर भी लूं तो नादानी है
    बिना बताये कहाँ उलझ लें
    वे पीड़ा से अनजानी हैं

    बहुत खूब लिखा है.

    जवाब देंहटाएं
  8. आद.श्री डॉ.वेद व्यथित जी
    आगरा में ताज महोत्सव होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका! इस में मेरा भी स्टोल था!
    " सवाई सिंह "

    जवाब देंहटाएं

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