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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

लोफर..... लघु कथा ........डा श्याम गुप्त...



       'एक ब्रेड देना ।'
       दूकान पर बैठे हुए  सुन्दर ने ब्रेड देते हुए कहा ,' पांच आने ।'
       'लो, तीन आने लुटाओ ।' अठन्नी देते हुए रूपल ने कहा ।
       लुटाओ या लौटाओ, सुन्दर ने उस के चहरे की तरफ घूर कर देखते हुए पैसे उसके हाथ पर रख दिए ।
      ' लोफर ।'
                             रूपल बड़े वकील साहब सक्सेना साहब की तीसरी बेटी थी, तेरह वर्ष की ।  आर के सक्सेना जी पीछे गली में बड़े फाटक वाली 'सक्सेना-हवेली' में रहते थे ।  वकील साहब के दादा-परदादा शायद मुग़ल दरवार में लेखानवीस थे अतः बड़े फाटक वाली हवेली मिली हुई थी ।  अंगरेजी राज में वे वकील साहब बन कर बड़े साहब थे । वकालत तो अब बस चलती ही थी,   पुरुखों की जायदाद के किराए से ही गुजर बसर होजाती थी।  परन्तु नक्श-नखरे अब भी वही बड़े साहब वाले थे।  केपस्टन  की सिगरेट फूंकना, उजले कपडे पहनना, लड़के लड़कियां अंग्रेज़ी स्कूल में ही पढ़ते थे व अंग्रेज़ी में बोलने में ही शान समझते थे ।
                          हवेली के बाज़ार की तरफ दुकानें बनी हुईं थी । उन्हीं में से एक दूकान में सुन्दर के पिता की जनरल स्टोर व स्टेशनरी की दुकान थी।  सुन्दर कक्षा पांच का छात्र था और कभी-कभी दुकान पर बैठ जाया करता था ।  वह सनातन धर्म पाठशाला में पढ़ता था ।  कभी-कभी वकील साहब की सिगरेट या किराया देने को हवेली के अन्दर भी चला जाया करता था ।
                         शाम को दुकान के पीछे वाली गली में जाते हुए  समय फाटक से निकलती हुई रूपल उसे नज़र आई । सुन्दर ने हंसते हुए कहा, ' लुटाओ नहीं लौटाओ ।'
              हट, लोफर ! रूपल ने हिकारत से कहा ।
              लोफर का क्या मतलब होता है ? सुन्दर पूछने लगा ।
              ' बदमाश ' हटो सामने से बाबूजी से शिकायत करूँ !
              क्या मैं बदमाश दिखाई देता हूँ ?
              और क्या, लोफर की तरह लड़की की तरफ घूर कर देखते हो ।
             अच्छा लड़कियों को घूरकर देखने वाले को लोफर कहते हैं । उससे क्या होता है । लो नहीं देखता । अब जब दुकान पर आना तो लौटाना ही कहना...हिन्दी में लौटाना या लौटाओ कहा जाता है ।
            ' शट अप'   वह दौड़कर अपने घर में घुस गयी ।
                               अगले दिन रूपल ब्रेड लेने आयी ब्रेड लेकर बोली, 'पैसे लौटाओ ।' सुन्दर मुस्कुराकर बोला, ' ठीक, फिर कहने लगा,  ' मैंने अंग्रेज़ी की किताब में देखा था ' लोफ  ' ब्रेड को कहते हैं तो लोफर ..रोटी माँगने वाला हुआ न।  रोटी तो तुम रोज लेने  आती हो  तो तुम लोफर......।
            ' शट अप', पैसे लौटाओ ।
             सुन्दर पैसे देते हुए बोला ,' क्या तुम्हें अंग्रेज़ी के सिर्फ दो ही शब्द बोलने आते हैं ...लोफर ..और  शट-अप ..।
            ' यू फूल '
            अरे वाह ! अच्छा तुम्हारा अंग्रेज़ी में नाम क्या है ।
             गुस्से से लाल होती हुई रूपल के मुख से निकला...
            .'लोफर "
           

               
                         

10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. डा. श्याम गुप्तApr 9, 2012 06:46 AM

      "shuddh shbd srajan hi hai n ki srijn yh glt shbd shi ke roop me chl rha hai"

      --वह वाह क्या बात है...जो सही के रूप में है वह गलत है.....बहुत बडा भ्रम पाले हैं हुज़ूर व्यथित जी....ये अन्ग्रेज़ी में आपकी हिन्दी नहीं चलती..आपके दो शब्द..
      srajan व srijn का हिन्दी शब्द है...स्रजन व सृजन ....एकार्थक हैं परन्तु सृजन शुद्ध है।
      --- परन्तु बात तो सर्जन व सृजन की हो रही थी ..आपकी अन्गरेज़ी स्क्रिप्ट ने गडबड कर दी। कोई बात नहीं.....
      ---सर्जन का अर्थ होता है..पूर्व में ही सृजन की हुई वस्तु का पुनर्निर्माण या सुधार या उसी के अनुरूप बनाना..जैसे शल्यक की सर्जरी..सर्जन..और तदानुसार विसर्जन...
      --- सृजन वस्तु को प्रथम बार बनाने/बनने को कहते हैं...यथा..ब्रह्मा श्रिष्टि का सृजन करता है सर्जन नहीं... इसी प्रकार साहित्य में सृजन होता है सर्जन नहीं....तदानुसर विसृजन कहीं/कभी नहीं होता....
      -- सही शब्द ही सही के रूप में चल रहा है...

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार..

    जवाब देंहटाएं
  3. "shuddh shbd srajan hi hai n ki srijn yh glt shbd shi ke roop me chl rha hai"

    --वह वाह क्या बात है...जो सही के रूप में है वह गलत है.....बहुत बडा भ्रम पाले हैं हुज़ूर व्यथित जी....ये अन्ग्रेज़ी में आपकी हिन्दी नहीं चलती..आपके दो शब्द..
    srajan व srijn का हिन्दी शब्द है...स्रजन व सृजन ....एकार्थक हैं परन्तु सृजन शुद्ध है।
    --- परन्तु बात तो सर्जन व सृजन की हो रही थी ..आपकी अन्गरेज़ी स्क्रिप्ट ने गडबड कर दी। कोई बात नहीं.....
    ---सर्जन का अर्थ होता है..पूर्व में ही सृजन की हुई वस्तु का पुनर्निर्माण या सुधार या उसी के अनुरूप बनाना..जैसे शल्यक की सर्जरी..सर्जन..और तदानुसार विसर्जन...
    --- सृजन वस्तु को प्रथम बार बनाने/बनने को कहते हैं...यथा..ब्रह्मा श्रिष्टि का सृजन करता है सर्जन नहीं... इसी प्रकार साहित्य में सृजन होता है सर्जन नहीं....तदानुसर विसृजन कहीं/कभी नहीं होता....
    -- सही शब्द ही सही के रूप में चल रहा है...

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद गाफ़िल जी....
    --यह भी खूब रही....आपकी बेतुक ताल की कविता...सुन्दर

    जवाब देंहटाएं

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