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    3 हफ़्ते पहले

रविवार, 15 अप्रैल 2012

दीपक राग... डा श्याम गुप्त...

    दीपक राग... 


पतंगा परवाना दीवाना ,
क्या प्रदर्शित करता है, तुम्हारा -
यूं जल जाना ?
दीपक कहाँ -
प्रीति की रीति को पहचानता है !
क्या व्यर्थ नहीं है ,
तुम्हारा यूं छला जाना ?

अर्ध मूर्छित परवाना तडफडाया ,
बेखुदी में यूं बड़बड़ाया ;
अरे दुनिया वालो -
यही तो सच्चा प्यार है,
प्यार के बिना तो जीना बेकार है |
शमा, बुलाये तो सही,
मुस्कुराए तो सही,
परवाना तो एक नज़र पर -
मिटने को तैयार है |
इसीलिये अमर-प्रेम पर,
शमा-परवाना का अधिकार है ||

दीपशिखा झिलमिलाई ,
लहराकर  खिलखिलाई |
दुनिया वाले व्यर्थ शंका करते हैं ,
प्यार करने वाले-
जलने से कहाँ डरते हैं |
पतंगों के प्यार में  ही तो हम -
तिल तिल कर जलते हैं |

वे मर मर कर जीते हैं ,
जल जल कर मरते हैं |
हम तो पिघल पिघल  कर ,
आखिरी सांस तक,
आंसू बहाते हैं |

पतंगे की किस्मत में-
ये पल कहाँ आते हैं ?   
 

12 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम में दर्द की गहराई को मापने का कोई माप दंड.
    पीड़ा किसकी गहन !!प्रेम किसका गहरा !!
    शमा की पीड़ा को बड़े मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा है आपने.परवाना जला और भस्म हो गया. शमा पल पल कतरा कतरा पिघली और अंत तक पिघलती रही जब तक उसे धरती ने अपने आंचल में ना ले लिया.
    मीरा ने लिखा है -मैं बिरहन ऐसी जली कोयला भई न राख'
    शमा का अंत भी ऐसे ही होता है पर.....दोनों वहाँ मिल ना जाते होंगे? शायद इसीलिए साथ साथ मिट जाते हैं.
    मार्मिक रचना. प्यार संवेदनशील मन का स्थाई भाव है और इश्वर की तरह ही पवित्र इसीलिए इस पर युगों से लिखा जाता रहा है,लिखा जाता रहेगा भले ही शमा परवाने के रूप में हो है प्रेम ही प्रमुख.बहुत खूब लिखा.ताजगी,नवीनता आपके शब्दों ने दी .विषय भले पुराना है.पुराना कभी न होगा.जब तक प्रेम है..हम हैं.....प्रेम रहेगा.इसके बिना जीवन का कोई महत्त्व नही.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद इन्दु जी.... सत्य कहा, उन्नत प्राणि-श्रिष्टि-उत्पत्ति के साथ उत्पन्न सर्वप्रथम भाव...स्नेह का प्रसारी रंग-भाव ..श्रिष्टि, स्रजन व जीवन का आवश्यक तत्व......प्रेम..नित नूतन रूपधारी है जो "अजो नित्य शाश्वत यथो पुराणं” भाव में न कभी पुराना हुआ है न होगा।

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. धन्यवाद सबाई सिन्ह जी...
      " प्रेम कौ पन्थ कराल महा, तरवार की धार पै धावनो है।

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. धन्यवाद उदय जी...
      " चाहे मन्दिर मस्ज़िद तोडो, बुल्लेशाह कहदा,
      पर प्यार भरा दिल कभी न तोडो,
      इस दिल में दिलबर रहता।"......

      हटाएं

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