चकोर !
तू क्यों निहारता रहता है
चाँद की ओर ?
वह दूर है
अप्राप्य है ,
फिर भी क्यों साधे है
मन की डोर !
प्रीति में है बड़ी गहराई
प्रियतम की आस, जब-
मन में समाई;
दूर हो या पास
मन लेता है अंगडाई ।
प्रेमी-प्रेमिका तो,
नयनों में ही बात करते हैं,
इक दूजे की आहों में ही
बस रहते हैं,
इसी को तो प्यार कहते हैं ।
मिलकर तो सभी प्यार कर लेते हैं ,
जो दूर से ही रूप-रस पीते हैं -
वही तो अमर-प्रेम जीते हैं ।। (--प्रेम काव्य, महाकाव्य से )
जो दूर से ही रूप-रस पीते हैं -
जवाब देंहटाएंवही तो अमर-प्रेम जीते हैं ।।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
---धन्यवाद धीरेन्द्र जी..अप्राप्यता ..ही अमरता है..
हटाएंशोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
धन्यवाद रविकर....
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति है!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद....सवा शेर जी...
हटाएंBeautiful creation. Wonderfully expressed. Thanks.
जवाब देंहटाएंThanks...Dr.Divya ji...
हटाएंwelcome again...
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद... उदय जी....
जवाब देंहटाएंमेरी जीवन रेखा और भाग्य रेखा एक है मेरी लाइफ कैसी होगी कृपया मार्गदर्सन करे. मेरी उम्र ३० साल है . कृपया ९६५४०९६३०९ पर संपर्क करे .
जवाब देंहटाएंमेरी जीवन रेखा और भाग्य रेखा एक है मेरी लाइफ कैसी होगी कृपया मार्गदर्सन करे. मेरी उम्र ३० साल है . कृपया ९६५४०९६३०९ पर संपर्क करे .
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