भारतीय सभ्यता विश्व की
प्राचीनतम सभ्यताओं मे से एक है। अन्य सभ्यताओं की तरह इस सभ्यता से भी ज्ञान, विज्ञान का एक निर्बाध प्रवाह प्रारंभ हुआ था। विदेशी
आक्रान्ताओं तथा औपनिवेश शासन काल मे इस सभ्यता के चिन्ह धूमिल हो गये। औपनिवेश
शासकों ने अपना काम चलाने के लिये भारतीय शिक्षा पद्दति में भारी
परिवर्तन किये, जिससे उनके लिये बिना सोचे समझे अपनी सभ्यता /संस्कृति को भुलाकर सिर्फ़ कामगार की भांति उनके व उनकी सभ्यता-संस्कृति के हितार्थ कार्य एवं प्रचार करने वाला एक वर्ग तैयार तैयार हो सके। अतः पाश्चात्य संस्कारों
की तुलना में भारतीय मूल्य व ज्ञान-विज्ञान पिछडापन के रूप मे चित्रित किया गया। यह आज भी चल रहा है। इसप्रकार एक
ज्ञान-विशिष्ट सभ्यता, एक पिछ्डी, अंधविश्वासी समाज बन गयी। प्राचीन भारतीय विज्ञान के चिन्ह
धूमिल होते जा रहे है। आवश्यकता है आम समाज को उस विज्ञान से परिचित कराने की।
इससे न केवल भारत के विज्ञान का विश्व से परिचय होगा बल्कि मिथ्या धारणायें, तथा अंधविश्वास भी खंडित होगा। हम
"वैदिक विज्ञान" पर एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण श्रंखला
"सृष्टि व ब्रह्माण्ड" प्रारंभ कर रहे है।
पूर्वा पर
ज्ञानचक्षु खुलने पर जब मानव ने प्रकृति के विभिन्न रूपों को रोमांच, आर्श्चय, भय व
कौतूहल से देखा और सोचा कि इन सब का क्या रहस्य है, क्या इन सब का कोइ संचालन-
कर्ता है? उसी क्षण मानव मन मे ईश्वर
का आविर्भाव हुआ, और उसी ईश्वर की खोज के परिप्रेक्ष्य में सृष्टि, जीवन, मानवता, समाज, देश, राष्ट्र, आचरण, सत्य
- असत्य, दर्शन, विज्ञान
आदि के क्रमिक उन्नति व विकास की यात्राएं हैं। सृष्टि व ईश्वर के बारे में
विभिन्न दर्शन, धर्म
व आधुनिक विज्ञान के अपने-अपने मत हैं; परन्तु मानव आचरण व सदाचार
जो समस्त विश्व; शान्ति
हो या उन्नति या विकास सभी का मूल है, उस पर किसी में कोइ मतभेद
नहीं है।
प्रश्न यह है कि आखिर इस
विषय को हम क्यों जानें? आज के सन्दर्भ में इस, ईश्वर
या सृष्टि कैसे बनी जानने का जीवन में क्या लाभ? वस्तुतः इसकी महत्ता नहीं
है कि सृष्टि ईश्वर ने बनाई या विज्ञान के अनुसार स्वयं बनी; परन्तु
यदि आधुनिक भौतिकवादी सोच के अनुसार यदि, यह सब एक संयोग है, ईश्वर
कुछ नहीं, मानव
सब कुछ कर सकता है, इस सोच का पोषण हो तो मानव में अहं- भाव जाग्रत होता है, और
यही अहं-भाव सारे द्वंद्व, द्वेष व पतन का मूल होता है, सदियाँ
गवाह हैं।
परन्तु सर्व-नियामक कोई
ईश्वर है, हमारे
कर्म ही कोई देखता है; इस सोच का पोषण हो तो, अहंभाव तिरोहित रहता है और
मानव परार्थ, परमार्थ, समष्टि-हित
भावों से युत सत्व गुणों को अपनाता है और उसका
कृतित्व सत्यम, शिवम, सुन्दरम
होकर समस्त विश्व को उसी राह पर ले जाकर उसे उन्नति व विकास के ऋजुमार्ग पर
लेजाता है। यही उद्देश्य इस ज्ञान को जानने का है और यही उद्देश्य प्रस्तुत क्रमिक
आलेख का।
संक्षिप्त में विषय भाव कुछ
इस प्रकार है:
खंड (अ)---सृष्टि व ब्रह्माण्ड ....
भाग
१: आधुनिक विज्ञान का मत - सृष्टि पूर्व, आरम्भ, बिग-बेंग, ऊर्जा
व कणों की उत्पत्ति, कोस्मिक-सूप, परमाणु-निर्माण, हाइड्रोज़न-हीलियम, पदार्थ, लय व
पुनः सृष्टि।
भाग
२: वैदिक विज्ञान के अनुसार सृष्टि - सृष्टि पूर्व, एकोअहम
बहुस्याम, ऊर्जा, कण, त्रिआयामी
कण, पदार्थ, चेतन
तत्व, कण-कण
में भगवान, पंचौदन-अज।
भाग -३ ...समय, जड़
व जीव सृष्टि की भाव संरचना,महातत्व, व्यक्त
पुरुष ,व्यक्त
माया,शक्ति ,त्रिदेव, हेमांड, ब्रह्माण्ड ।
भाग-४ -सृष्टि संगठन प्रक्रिया, नियामक शक्तियां, विभिन्न
रूप सृष्टि, लय व
पुनर्सृष्टि।
सभी का आधुनिक वैज्ञानिक मत
से तुलनात्मक संदर्भित व्याख्या
खंड (ब) --- जीवन, जीव व मानव : संक्षिप्त में, आरम्भ कब, कैसे, किसने, कहाँ से, वृद्धि, गति, संतति वर्धन, लिंग चयन, स्वतः संतति-उत्पादन प्रक्रिया, प्राणी व मानव विकास क्रम आदि।
भाग १:.... आधुनिक विज्ञान सम्मत - योरोपीय, रोमन, ग्रीक आदि मत, डार्विन -सिद्धांत।
भाग २:... वैदिक विज्ञान सम्मत -भारतीय दर्शन मत- ब्रह्मा का मूल सृष्टि -क्रम, भाव-पदार्थ निर्माण, रूप सृष्टि, प्राणी निर्माण, मानव, मानस-संकल्प व मैथुनी सृष्टि, मानव विकास क्रम।
भाग ३:... भविष्य का महा मानव ......
-----क्रमश: अगली पोस्ट में खंड (अ)...भाग -१ ....
vartman ke sath bhavishya ka lekha.
जवाब देंहटाएंabhar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सबाई सिन्ह जी एवं सन्गीता जी....
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