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    1 हफ़्ते पहले

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

गज़ल ... डा श्याम गुप्त

              
ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो! 


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |


जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |
नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |


चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |

या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ, ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |

है इब्तिदा, रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||

9 टिप्‍पणियां:

  1. है इब्तिदा, रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
    हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो

    ||वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति,..

    MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...

    जवाब देंहटाएं
  2. है इब्तिदा, रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
    हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||
    लाली मेरे लाल की जित देखू तित लाल ...

    जवाब देंहटाएं
  3. ब्लोग अग्रीगेटर जी....अपने ब्लोग के शीर्षकों मेन वर्तनी की अशुद्दियां हटायें... अखरती हैं हर बार...

    सुवागत = स्वागत
    दुसरे = दूसरे...

    जवाब देंहटाएं
  4. पेश है...

    "न बहर-वज़्न-रूज़ ए कायदा, गज़्ले-बहार होती है।
    कहने का अन्दाज़ ज़ुदा हो वही बहरे-बहार होती है।
    गज़ल तो इक अन्दाज़े-बयां है श्याम-
    श्याम तो जो कहदें वही गज़ले-बहर यार होती है।।

    जवाब देंहटाएं

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