(ब) जीवन्, जीव् व मानव्
अभी तक् आप् सबने सृष्टि व ब्रह्मान्ड .....इतने विशद् रूप् में पढा, शायद् हैरान्-परेशान् भी होंगे? वास्तव् में तो यह् वर्णन् भी सन्क्षिप्त ही था। वैदिक्-विज्ञान में यह मूल विषय अत्यन्त व्याख्या से दिया है और आधुनिक् विज्ञान अभी वहां तक नहीं पहुंचा है।
सृष्टि-क्रम के क्रमिक आलेख के इस द्वितीय-क्रम “जीवन, जीव व मानव” में हम-
जीवन कैसे आरम्भ हुआ, जीव में गति, आकार-वर्धन व सन्तति-वर्धन (रीप्रोडक्शन), लिन्ग भिन्नता भाव (सेक्सुअल्-सिलेक्सन), सन्तति वर्धन की लिन्गीय स्वतः चालित प्रणाली (सेक्सुअल ओटोमेशन फ़ोर रीप्रोडक्शन) कैसे प्रारम्भ हुआ एवम प्राणी व मानव का विकास क्रम तथा भविष्य का मानव –विषयों पर, आधुनिक वैज्ञानिक मत, पाश्चात्य दर्शन व भारतीय वैदिक-विज्ञान सम्मत विचारों से, निम्न तीन प्रलेखों द्वारा अवगत करायेंगे-
भाग १-पाश्चात्य दर्शन व आधुनिक
वैज्ञानिक मत, डार्विन सिद्धान्त .
भाग २-वैदिक-विज्ञान सम्मत मत.
भाग ३- भविष्य का महामानव
भाग १-आधुनिक वैज्ञानिक मत
आधुनिक विज्ञान मूलतः डार्विन की थिओरी (सर चार्ल्स डार्विन-१८०९—१८८२ ई), ओरिज़िन ओफ़ स्पेसीज़ (१८५९) पर केन्द्रित है। वस्तुतः डार्विन की थ्योरी कोई नवीन
खोज नहीं थी अपितु प्राचीन ग्रीक धारणाएं--आगस्ताइन, अरस्तू, लिओनार्डो डा विंसी, अल्फ़्रेड रसल, प्लेटो आदि दार्शनिकों के विचारों की पुष्टि व
समाशोधन ही था, वस्तुतः विज्ञान..दर्शन से ही प्रारम्भ होता है|
आगस्टाइन को- अडाप्टेशन व हेरीडिटी के बारे में पता था। प्लेटो के अनुसार-ईश्वर एक सम्पूर्णता है तथा महानता की क्रमिकता (अ ग्रेट चेन) के अनुसार सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट पर कार्य करता है । अरस्तू
के अनुसार प्राणी, रौक (शिला-अर्थात कण=एटम ) से à सामान्य जीव --> जटिल प्राणी--> मानव--> एन्जिल्स की सीढी (लेडर लाइक ) प्रणाली से बना। ग्रीक दार्शनिक एनाक्सीमेन्डर (ई.पू.६१०—५४६ ईपू )ने बताया कि जीवन जल की नमी से सर्वप्रथम जल में हुआ फ़िर सरल--> जटिल--> प्राणी-->मछली व मानव बना,--चित्र अ--। ब्रह्मांड ( यह शब्द वैदिक देन है ) एक प्रारम्भिक अन्ड ( अ प्राइमोर्डियल एग --कोस्मोस) से बना । इन दर्शनों के अनुसार समस्त विश्व एक सम्मिलित श्रेणी (कोमन डिसेन्ट) व एक जीन पूल से बना है। इन्ही
दर्शनों को डार्विन ने प्रयोगों, अनुभवों द्वारा अपनी थ्योरी का आधार बनाया, वस्तुतः ये प्राचीन दर्शन व्यक्तिवादी, मानवतावादी व ईश्वर-अनीश्वर-विज्ञान वादी थे, वह तो बाद में कठोर ईश्वरवादी
धर्मों – क्रिश्चियन व इस्लाम में सब कुछ गोड या खुदा द्वारा ६ या
७ दिनों में बनाया गया बताया है, जो इवोल्यूशन में विश्वास नहीं
रखते ।
१.जीवन – विज्ञान के अनुसार ओक्सीज़न न होने से पृथ्वी पर जीवन नहीं था, शायद जल में उपस्थित ओक्सीज़न परमाणु किसी तरह माइक्रो-मोलीक्यूल बने और जल में
अपने आप को पुनः
वर्धित करके प्रथम एक कोशीय जीव बना अथवा धूमकेतु के साथ पृथ्वी पर जीवन आया व
विकसित हुआ । इस सम्बन्ध में मूलतः ये मत हैं—
----(अ) उल्काओं की वर्षा या धूम्रकेतु के साथ जीवन वहां से पृथ्वी पर-- जल-महासागरों में आया.
----(ब) धूम्रकेतु या उल्का के जल में गिरने पर उत्पन्न तीब्र ताप की, उपस्थित कणों से
प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति हुई ।
---(स)-१९५० में अमेरिकन केमिस्ट व बायोलोजिस्ट, स्टेनले लायड मिलर तथा यूरे ने प्रयोगों द्वारा प्रयोगशाला में अकार्बनिक पदार्थों से सामान्य भौतिक प्रक्रियाओं से जैविक (कार्वनिक) पदार्थ बनाने में सफ़लता प्राप्त की । अमोनिया, हाइड्रोज़न व मीथेन (जैसे इस् समय् ज्युपिटर (ब्रहस्पति) पर् अमोनिया, हाइड्रोजन व मीथेन है, वैसे ही प्रथ्वी पर प्रारम्भ में थीं।--पुरा कथाओं में प्राय: मानव का ज्यूपिटर से आना बताया गया है ) गेसों के मिश्रण में जलवाष्प की उपस्थिति में विध्युत पास की, तो भूरे रन्ग का –अमीनो-असिड जैसा पदार्थ बना जो न्यूक्लिअक-अम्ल (जो प्रत्येक जीव कोशिका का मूल अंग है) बनाने में मूल हिस्सा निभाता है। मिलर के अनुसा्र–जीवन की प्रथम बार उत्पत्ति का यह कारण हो सकता है। (चित्र-ब)
इस प्रकार( विज्ञान के अनुसार मूलतः संयोग ही ) प्रथम जीवन – जीव जो पृथ्वी पर आया वह एक कोशीय जीवाणु (बेक्टीरिया) बना, जिससे प्रथम-प्राणी एक कोशीय अमीवा व एक् कोशीय् पौधे (स्पाइरोगाइरा, यूलोथ्रिक्स् आदि) फ़िर् क्रमश्ः समस्त जीव जगत—वनस्पति, प्राणी व मानव् वने ।
2-गति, वर्धन, सन्तति वर्धन, लिन्ग भिन्नता एवम लिन्गीय स्वचालित सन्तति वर्धन प्रणाली ---के अस्तित्व में आने को विज्ञान
मूलतः संयोग ही मानता है, कोई निश्चित धारणा नहीं है।
डार्विन के अनुसार-एक कोशीय जीव से क्रमिक् विकास द्वारा बहु-कोशीय प्राणी, जलचर, जल- स्थलचर, कीट, सरीस्रप, पक्षी, स्तनधारी ,वानर व मानव बना| मानव तक विकास के लिये मूलतः निम्न
चार प्रमुख बिन्दु—भूमिका निभाते हैं--
(क.)- जीवन के लिये सन्ग्राम (स्ट्रगल फ़ोर एग्ज़िस्टेन्स)—परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढालना, बदलना । प्रत्येक जीव धारी अपने ज़िन्दा रहने के लिये सन्घर्ष करता है, और् अपने आप को परिस्थितियों के योग्य बनाने का प्रयत्न करता है।
(ब)- उपयुक्त का जीवित रहना-( सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट )—कमज़ोर व अनुपयुक्त प्रज़ातियां नष्ट होजाती हैं, तथा उपयुक्त जातियां सम्वर्धन ,वर्धन व प्रगति करती है। यथा... पृथ्वी पर कालान्तर में जल के अथाह सागर कम होने, वनस्पति के कम होने, व
स्तनपायियॊं के आने पर डायनासोरों का समाप्त होना ।
(स)—प्राकृतिक -चुनाव ( नेचुरल सिलेक्शन)—प्रकृति ??? (या ईश्वर???)...अपने अनुसार स्वयम चुनाव कर लेती है कि कौन कब,कितनी- सन्बर्धन, प्रगति करेगा ।
(द)—उत्परिवर्तन ( म्यूटेशन )—किसी भी जीवधारी में अचानक कोई भी स्वतः बदलाव आसकता
है, परिस्थिति, वातावरण,आवश्यकतानुसार या बिना किसी कारण
के; -मूलतः परिस्थिकी ( ईकोलोजी ), अडाप्टेबिलिटी, हेरीडिटी व जीन–ड्रिफ़्ट के अनुसार उपरोक्त बदलाव
होते हैं।
३-मानव का विकास क्रम---- उपरोक्त कारणों व बिन्दुओं के अनुसार ही , डार्विन के मतानुसार एक कोशीय जीव--->बहुकोशीय---->कीट-कृमि आदि---> मत्स्य--->जल-स्थलचर--->सरीस्रप( रेंगने वाले रेप्टाइल)--->स्तनधारी--->वानर--->गोरिल्ला अदि क्रमिक विकास से मानव
बना।----चित्र (स) एवम (द). -----सभी चित्र गूगल से साभार ...
चित्र-अ- |
चित्र-ब |
चित्र-स |
चित्र-द |
ज्ञान वर्धक आलेख!!
जवाब देंहटाएंआभार डॉ श्याम गुप्त जी!!
धन्यवाद सुज्ञ जी ....आभार...
हटाएंकृपया, मेरे दो ब्लॉग सम्मिलित करलें
जवाब देंहटाएंhttp://shabdswarrang.blogspot.in
http://rajasthaniraj.blogspot.in
धन्यवाद राजेन्द्र जी ...दोनों ब्लॉग रीडिंग लिस्ट में सम्मिलित कर लिए हैं ....आभार
हटाएंसदैव की भांति ज्ञानवर्धक आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सबाई सिंघ जी...
हटाएंबेहतरीन आलेख!!...
जवाब देंहटाएंआभार !
धन्यवाद आपका.....आपका जी....
हटाएंज्ञानवर्धक और प्रभावशाली आलेख...
जवाब देंहटाएंdhanyvad...abhisek ji...
हटाएंThanks...india ji
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख
जवाब देंहटाएंHindiXpress Blog
धन्यवाद कैलाश जी....
हटाएंक्रुपया मेरा ब्लॉग सम्मिलीत करले
जवाब देंहटाएंhttp://hindixpress.wordpress.com/
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रेम जी...
हटाएं