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सोमवार, 14 मई 2012

सृष्टि व जीवन--क्रम (ब) जीवन, जीव व मानव, भाग १-आधुनिक वैज्ञानिक मत...डा श्याम गुप्त...

           (ब) जीवन्, जीव् मानव्

                अभी तक् आप् सबने सृष्टि व ब्रह्मान्ड .....इतने विशद् रूप् में पढा,  शायद् हैरान्-परेशान् भी होंगे?  वास्तव् में तो यह् वर्णन् भी सन्क्षिप्त ही था।  वैदिक्-विज्ञान में यह मूल विषय अत्यन्त व्याख्या से दिया है और आधुनिक् विज्ञान  अभी वहां तक नहीं पहुंचा है।
       सृष्टि-क्रम के क्रमिक आलेख के इस द्वितीय-क्रम जीवन, जीव व मानव  में हम-  
जीवन कैसे आरम्भ हुआ, जीव में गति, आकार-वर्धन व सन्तति-वर्धन (रीप्रोडक्शन), लिन्ग भिन्नता भाव (सेक्सुअल्-सिलेक्सन), सन्तति वर्धन की लिन्गीय स्वतः चालित प्रणाली (सेक्सुअल ओटोमेशन फ़ोर रीप्रोडक्शन) कैसे प्रारम्भ हुआ एवम प्राणी मानव का विकास क्रम तथा भविष्य का मानवविषयों पर, आधुनिक वैज्ञानिक मत, पाश्चात्य दर्शन व भारतीय वैदिक-विज्ञान  सम्मत विचारों से, निम्न तीन प्रलेखों द्वारा अवगत करायेंगे-
 भाग १-पाश्चात्य दर्शन व आधुनिक वैज्ञानिक मत, डार्विन सिद्धान्त .  
 भाग २-वैदिक-विज्ञान सम्मत मत.
     भाग ३- भविष्य का महामानव



                     भाग १-आधुनिक वैज्ञानिक मत
      आधुनिक विज्ञान  मूलतः डार्विन की थिओरी (सर चार्ल्स डार्विन-१८०९१८८२ ई), ओरिज़िन ओफ़ स्पेसीज़ (१८५९) पर केन्द्रित है। वस्तुतः डार्विन की थ्योरी कोई नवीन खोज नहीं थी अपितु प्राचीन ग्रीक धारणाएं--आगस्ताइन, अरस्तू, लिओनार्डो डा विंसी, अल्फ़्रेड रसल, प्लेटो आदि दार्शनिकों के विचारों की पुष्टि व समाशोधन ही था, वस्तुतः विज्ञान..दर्शन से ही प्रारम्भ होता है|        

आगस्टाइन को- अडाप्टेशन व हेरीडिटी के बारे में पता था। प्लेटो के अनुसार-ईश्वर एक सम्पूर्णता है तथा महानता की क्रमिकता (अ ग्रेट चेन) के अनुसार सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट पर कार्य करता है । अरस्तू के अनुसार प्राणी, रौक (शिला-अर्थात कण=एटम ) से à सामान्य जीव --> जटिल प्राणी--> मानव--> एन्जिल्स की सीढी (लेडर लाइक ) प्रणाली से बना। ग्रीक दार्शनिक एनाक्सीमेन्डर (.पू.६१०५४६ ईपू )ने बताया कि जीवन जल की नमी से सर्वप्रथम जल में हुआ फ़िर सरल--> जटिल--> प्राणी-->मछली व मानव बना,--चित्र अ--ब्रह्मांड ( यह शब्द वैदिक देन है ) एक प्रारम्भिक अन्ड ( अ प्राइमोर्डियल एग --कोस्मोस) से बना । इन दर्शनों के अनुसार समस्त विश्व एक सम्मिलित श्रेणी (कोमन डिसेन्ट) एक जीन पूल से बना है। इन्ही दर्शनों को डार्विन ने प्रयोगों, अनुभवों द्वारा अपनी थ्योरी का आधार बनाया, वस्तुतः ये प्राचीन दर्शन व्यक्तिवादी, मानवतावादी व ईश्वर-अनीश्वर-विज्ञान वादी थे, वह तो बाद में कठोर ईश्वरवादी धर्मों क्रिश्चियन व इस्लाम  में सब कुछ गोड या खुदा द्वारा ६ या ७ दिनों में बनाया गया बताया है, जो इवोल्यूशन में विश्वास नहीं रखते ।  
 
.जीवनविज्ञान के अनुसार ओक्सीज़न न होने से पृथ्वी पर जीवन नहीं था, शायद जल में उपस्थित ओक्सीज़न परमाणु किसी तरह माइक्रो-मोलीक्यूल बने और जल में
अपने आप को पुनः वर्धित करके प्रथम एक कोशीय जीव बना अथवा धूमकेतु के साथ पृथ्वी पर जीवन आया व विकसित हुआ । इस सम्बन्ध में मूलतः ये मत हैं
----() उल्काओं की वर्षा या धूम्रकेतु के साथ जीवन वहां से पृथ्वी पर-- जल-महासागरों में आया.
----() धूम्रकेतु या उल्का के जल में गिरने पर उत्पन्न तीब्र ताप की, उपस्थित कणों से प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति हुई ।
---()-१९५० में अमेरिकन केमिस्ट व बायोलोजिस्ट, स्टेनले लायड मिलर  तथा यूरे ने प्रयोगों द्वारा प्रयोगशाला में अकार्बनिक पदार्थों से सामान्य भौतिक प्रक्रियाओं से जैविक (कार्वनिक) पदार्थ बनाने में सफ़लता प्राप्त की । अमोनिया, हाइड्रोज़न व मीथेन (जैसे इस् समय् ज्युपिटर (ब्रहस्पति) पर् अमोनिया, हाइड्रोजन मीथेन है, वैसे ही प्रथ्वी पर प्रारम्भ में थीं।--पुरा कथाओं में प्राय: मानव का ज्यूपिटर से आना बताया गया है गेसों के मिश्रण में जलवाष्प की उपस्थिति में विध्युत पास की, तो भूरे रन्ग का अमीनो-असिड जैसा पदार्थ बना जो न्यूक्लिअक-अम्ल (जो प्रत्येक जीव कोशिका का मूल अंग है) बनाने में मूल हिस्सा निभाता है। मिलर के अनुसा्रजीवन की प्रथम बार उत्पत्ति का यह कारण हो सकता है। (चित्र-)
       इस प्रकार( विज्ञान के अनुसार मूलतः संयोग ही ) प्रथम जीवन जीव जो पृथ्वी पर आया वह एक कोशीय जीवाणु (बेक्टीरिया) बना, जिससे प्रथम-प्राणी एक कोशीय अमीवा एक् कोशीय् पौधे  (स्पाइरोगाइरा, यूलोथ्रिक्स् दि) फ़िर् क्रमश्ः समस्त जीव जगतवनस्पति, प्राणी मानव् वने

 2-गति, वर्धन, सन्तति वर्धन, लिन्ग भिन्नता एवम लिन्गीय स्वचालित सन्तति वर्धन प्रणाली ---के अस्तित्व में आने को विज्ञान  मूलतः संयोग ही मानता है, कोई निश्चित धारणा नहीं है। डार्विन के अनुसार-एक कोशीय जीव से क्रमिक् विकास द्वारा बहु-कोशीय प्राणी, जलचर, जल- स्थलचर, कीट, सरीस्रप, पक्षी, स्तनधारी ,वानर मानव बना| मानव तक विकास के लिये मूलतः निम्न चार प्रमुख बिन्दुभूमिका निभाते हैं--

(.)- जीवन के लिये सन्ग्राम (स्ट्रगल फ़ोर एग्ज़िस्टेन्स)—परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढालना, बदलना । प्रत्येक जीव धारी अपने ज़िन्दा रहने के लिये सन्घर्ष करता है, और् अपने आप को परिस्थितियों के योग्य बनाने का प्रयत्न करता है।

()- उपयुक्त का जीवित रहना-( सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट )—कमज़ोर व अनुपयुक्त प्रज़ातियां नष्ट होजाती हैं, तथा उपयुक्त जातियां सम्वर्धन ,वर्धन प्रगति करती है। यथा... पृथ्वी पर कालान्तर में जल के अथाह सागर कम होने, वनस्पति के कम होने,   स्तनपायियॊं के आने पर डायनासोरों का समाप्त होना ।

()प्राकृतिक -चुनाव ( नेचुरल सिलेक्शन)प्रकृति ??? (या ईश्वर???)...अपने अनुसार स्वयम चुनाव कर लेती है कि कौन कब,कितनी- सन्बर्धन, प्रगति करेगा ।
()उत्परिवर्तन ( म्यूटेशन )—किसी भी जीवधारी में अचानक कोई भी स्वतः बदलाव आसकता है, परिस्थिति, वातावरण,आवश्यकतानुसार या बिना किसी कारण के; -मूलतः परिस्थिकी ( ईकोलोजी ), अडाप्टेबिलिटी, हेरीडिटी व जीनड्रिफ़्ट के अनुसार उपरोक्त बदलाव होते हैं। 
३-मानव का विकास क्रम---- उपरोक्त कारणों व बिन्दुओं के अनुसार ही , डार्विन के मतानुसार एक कोशीय जीव--->बहुकोशीय---->कीट-कृमि आदि---> मत्स्य--->जल-स्थलचर--->सरीस्रप( रेंगने वाले रेप्टाइल)--->स्तनधारी--->वानर--->गोरिल्ला  अदि क्रमिक विकास से मानव बना।----चित्र () एवम ().          -----सभी चित्र गूगल से साभार ...

   



चित्र-अ-

चित्र-ब

चित्र-स

चित्र-द

     
     

        क्रमश: ....(ब) जीवन, जीव व मानव ...भाग दो..वैदिक मत ....



  

16 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञान वर्धक आलेख!!

    आभार डॉ श्याम गुप्त जी!!

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी ...दोनों ब्लॉग रीडिंग लिस्ट में सम्मिलित कर लिए हैं ....आभार

      हटाएं
  3. सदैव की भांति ज्ञानवर्धक आलेख. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. ज्ञानवर्धक और प्रभावशाली आलेख...

    जवाब देंहटाएं
  5. क्रुपया मेरा ब्लॉग सम्मिलीत करले

    http://hindixpress.wordpress.com/

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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