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    1 हफ़्ते पहले

मंगलवार, 5 जून 2012

पर्यावरण दिवस पर चार अगीत .....डा श्याम गुप्त...

 नदी व् जल
 ओ क्षीणकाय  नदी !
कहाँ है तेरा जल ,
 जो   प्लावित करता था ,
खेत खलिहान कुओं को ,
होते थे -
तैराकी के मेले ।।  

नीम  की हवा 
बड़ी बुआ की चिट्ठी आई ,
पूछा है,
मेरे लगाए नीम की ,
छाँह  की हवा
क्या अभी भी शीतल है ?

दूरियां 
वह कौवा
बस्ती में ,
बच्चों के हाथ से
रोटी छीनने ,
दो मील दूर खड़े
अलसाए, अर्धशुष्क वृक्ष से
 आता है ।।

जंगल बासी
हम जंगलों में रहते थे ,
जंगलों में ही रह रहे हैं ,
बस,
पेड़, पौधे, पशु-पक्षी -
मंजिलों में बदल गए हैं ।।



3 टिप्‍पणियां:

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