नदी व् जल
ओ क्षीणकाय नदी !
कहाँ है तेरा जल ,
जो प्लावित करता था ,
खेत खलिहान कुओं को ,
होते थे -
तैराकी के मेले ।।
नीम की हवा
बड़ी बुआ की चिट्ठी आई ,
पूछा है,
मेरे लगाए नीम की ,
छाँह की हवा
क्या अभी भी शीतल है ?
दूरियां
वह कौवा
बस्ती में ,
बच्चों के हाथ से
रोटी छीनने ,
दो मील दूर खड़े
अलसाए, अर्धशुष्क वृक्ष से
आता है ।।
जंगल बासी
हम जंगलों में रहते थे ,
जंगलों में ही रह रहे हैं ,
बस,
पेड़, पौधे, पशु-पक्षी -
मंजिलों में बदल गए हैं ।।
ओ क्षीणकाय नदी !
कहाँ है तेरा जल ,
जो प्लावित करता था ,
खेत खलिहान कुओं को ,
होते थे -
तैराकी के मेले ।।
नीम की हवा
बड़ी बुआ की चिट्ठी आई ,
पूछा है,
मेरे लगाए नीम की ,
छाँह की हवा
क्या अभी भी शीतल है ?
दूरियां
वह कौवा
बस्ती में ,
बच्चों के हाथ से
रोटी छीनने ,
दो मील दूर खड़े
अलसाए, अर्धशुष्क वृक्ष से
आता है ।।
जंगल बासी
हम जंगलों में रहते थे ,
जंगलों में ही रह रहे हैं ,
बस,
पेड़, पौधे, पशु-पक्षी -
मंजिलों में बदल गए हैं ।।
बहुत खूब लिखा है सुंदर रचना ....... आभार ...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतिकरण....हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंwww.gopalkamal.com
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