अच्छी बातों
के बुरे भाव ....
हम भारतीय यह सोच कर, मानकर मस्त
हैं कि बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सोचो .... स्वयं के व्यक्तिगत
परिप्रेक्ष्य में यह उचित हो सकता है परन्तु समष्टि-भाव एवं राष्ट्र-भक्ति भाव
में बुरा न करे ठीक है पर कोई क्यों बुरा न देखे ...बुरा न सुने ? जिसके बिना आप
सत्य तथ्यों से भिज्ञ नहीं हो सकते एवं उचित व सही कृत्य नहीं सोचे व् किये जा सकते
| क्योंकि भी समुचित एवं प्रत्येक पहलू के विश्लेषण के उपरांत तथाकथित दिखाई
देने में अच्छी बातों के भी नकारात्मक पहलू हो सकते हैं |
कोकाकोला इंडिया के सीईओ ने
अपने दो साथियों के साथ एक अच्छा कदम उठाया, सूर्य-ऊर्जा चालित से ‘इको कूल
बक्से’ बनवा कर गावों में मुफ्त में बंटवाए ताकि भारत के ग्रामीण इलाकों में
भी इन बक्सों द्वारा, जो फ्रिज की भांति बोतलों को ठंठा करने का कार्य करते हैं,
कोकाकोला की ठंडी, फिज्ज़ करती हुईं बोतलें मिल सकें एवं दूर दराज क्षेत्रों जहां
विद्युत नहीं है वहाँ के ग्रामीण भी इनका आनंद उठा सकें | ये बक्से मोबाइल
चार्जिंग , लालटेन जलाने आदि के कार्य भी आते सकते हैं |
इस कृतित्व से भारत के ग्रामीण इलाकों में
वे अपने प्रोडक्ट ..कोकाकोला को ग्रामीण व दूरवर्ती क्षेत्रों में भी प्रवेश
दिलाने में कामयाब हुए तथा कोकाकोला की बिक्री में काफी बढोतरी होगई | अपने इस
कार्य द्वारा वे कर्मचारी अपनी विदेशी मल्टीनेशनल कंपनी के ‘सेलीब्रिटी- हीरो’ बन
गए होंगे एवं उनके ‘पे एंड पर्क्स’ की बढोतरी के साथ प्रोमोशन का लाभ मिला होगा |
सामान्यतया देखने पर तथा जनता के परिदृष्यानुसार
यह एक महान विकास की बात है कि ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी भी भारत की गर्मियों
में कोकाकोला एवं उसकी फिज्जिंग का आनंद उठा सकेंगे जैसा टीवी, सिनेमा विज्ञापनों
में होरो-हीरोइन सर उठाकर उसका आनंद लेते हैं |
तो इसमें ऐसी अच्छी एवं विकास की बात में
ऐसी बुरी बात क्या है जो इसके नकारात्मक पहलू पर सोचा जाय ?........
१-
क्योंकि भारत के नगरी
क्षेत्रों में अमूल आदि जैसी स्थानीय कंपनियों द्वारा स्थानीय ठन्डे-पेय... ठन्डे
सुगन्धित-विविध स्वाद के दुग्ध, मट्ठा, लस्सी, आदि को बाजार में उतारने से कोकाकोला
की बिक्री कम होने लगी थी अतः अब कोकाकोला कंपनी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के
बाज़ार को हथियाना चाहती है |
२-
हमारे स्वयं के देशवासी ही, जो इस मल्टीनेशनल कंपनी के वेतन भोगी है, कर्मचारी
हैं वे ही एक विदेशी प्रोडक्ट कोकाकोला जिसकी कोई खाद्य-महत्त्व नहीं है, को प्रचारित
कर रहे हैं सिर्फ अपने व्यक्तिगत लाभ व लालच हेतु एवं राष्ट्रीय महत्त्व की अनदेखी
करके, जो हमारी स्थानीय व स्वदेशी पेयों लस्सी, मट्ठा , दुग्ध, ठंडाई,शर्बत,
कह्र्बूज़, तरबूज आदि का महत्त्व कम कर देंगे तथा उन्हें हटा भी सकते हैं भारतीय
बाज़ार से | बहु-राष्ट्रीय कंपनियों का
सिर्फ अपना आर्थिक महत्त्व की सोच व कृतित्व की लंबी-लंबी कहानियाँ सभी जानते हैं
सिवाय मोटी-मोटी पगार पाने वाले बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इन भारतीय कर्मचारियों
के | “आखिर सबसे बड़ा रुपैय्या... च्च... डालर “
तो आखिर किया क्या जाय ....
हम, हमारी सरकार, स्थानीय प्रशासन,
ग्रामीण विक्रेता आदि सभी को नव-विकास को तो अपनाना चाहिए एवं सूर्य-ऊर्जा व इस
प्रकार के बक्सों को प्रयोग में लाना चाहिए परन्तु कोकाकोला के लिए नहीं अपितु
अपने स्थानीय ठन्डे पेय उत्पादों को और ठंडा करने हेतु यदि वे अपने स्थानीय पेयों,
पदार्थों, देशी उत्पादों व बाज़ार व
उद्योग-धंधों को बचाना चाहते हैं तो |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (मुहब्बत का सूरज) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
दूरगामी परिणामो के चिंतन के लिये लेखक को हार्दिक.........धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभारत मे लिबर्टी रिजर्व / liberty reserve in india
धनयवाद दिनेश जी एवं शास्त्री जी ....
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