आज हमारी युवा पीढी , जो भौतिकवादी पाश्चात्य विदेशी नैतिकता से प्रभावित है एवं हर काम समय पर ही होता है तथा जल्द काम शैतान का ..जैसी कहावतों अदि से इत्तेफाक नहीं रखती और भौतिक सुख-विलास व ऐश्वर्यमय जीवन को ही प्रगति व जीवन-उत्कर्ष समझती है अति भौतिकता की दौड़ में , अधिकाधिक कमाने व शीघ्रातिशीघ्र अमीर बनने की ललक में दिन-रात काम में जुटे रहते हैं | सुबह -सुबह जल्दी-जल्दी निकलजाना रात को देर से घर लौटना, घर पर भी मोबाइल पर दफ्तर-कार्य की बातें... न खाने का समय न नाश्ते का न संतान के साथ समय बिताने की फुर्सत | यदि पशु -पक्षी के तरह सुबह सुबह निकल जाना और देर शाम को अपने -अपने कोटरों में लौट आना ही जीवन है तो सारे ऐश्वर्य का क्या ?
यह सच है कि दीन- हीन में दीनानाथ बचते हैं।
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।!*आज का सुविचार!।*
*दूसरे व्यक्ति को उसके दुख से बाहर निकालने से बड़ा और बेहतर कोई काम नही!
दुनिया में आने वाले सभी अवतार/ सन्त महात्मा ने यही किया!*
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1 माह पहले
bilkul sahi sir ji,aaj ki yuva pidhi ki jindgi kolhu ke bail jaise ho gyee hai
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