दोहे.. चित्र-विचित्र ... डा श्याम गुप्त......
माँ तेरे ही चित्र पर, नित प्रति पुष्प चढ़ायं,
मिसरी सी वाणी मिले, मंत्री पद पा जायं |
जबसे कुर्सी मिल गयी, मुखर बैन गए होय,
विक्रम टीले पर चढ़ा, ग्वाला विक्रम होय |
चाहे करौ प्रशंसा, करो प्रेम संवाद ,
पर पानी की बालटी भरना मेरे बाद |
झूठेहि पब्लिक मांग कहि, फोटो नग्न खिचायं ,
बोल्ड सीन देती रहें, हीरोइन बन जायं |
तेल पाउडर बेचते, झूठ बोल इठलायं,
बड़े महानायक बने, मिलें लोग हरषायं |
खींच-तान की ज़िंदगी वे धनहीन बितायं,
खींच-तान की ज़िन्दगी, वे धन हेतु बितायं |
इक दूजे को लूटते, लूट मची चहुँ और,
चोर सभी, समझें सभी, इक दूजे को चोर |
धन साधन की रेल में, भीड़ खचाखच जाय,
धक्का-मुक्की धन करे, ज्ञान कहाँ चढ़ पाय |
निज को मेल-मिलाप के, लम्बरदार बतायं,
असली पय घृत खाद्य का, नक़ल से मेल करायं |
अपनी लाज लुटा रही, द्रुपुद-सुता बाज़ार,
इन चीरों का क्या करूं, कृष्ण खड़े लाचार |
ईश्वर अल्लाह कब मिले हमें झगड़ते यार,
फिर मानव क्यों व्यर्थ ही,करता है तकरार ||
Bahut sunder dhohe...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद धीरेन्द्र जी.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आपका आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजपुरोहित जी.....
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