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रविवार, 22 अप्रैल 2012

.श्री कृष्ण......बाल गीत ...........डा श्याम गुप्त .....

श्री कृष्ण       
खड़े त्रिभंगी मुद्रा में हैं,
वंशी अधर लगाए ।
छवि सांवरी पीत पट बांधे, 
मोर-मुकुट सिर भाये।

मकराकृति कुंडल कानों में,
गल बैजंती माला ।
कृष्ण कन्हैया कान्हा मोहन ,
जसुमति-सुत गोपाला।

जन्मे जेल में थे मथुरा की,
गोकुलपुरी  पठाए।
थे वासुदेव-देवकी के सुत,
यसुमति पुत्र कहाए।

गोकुल में वे खेले-कूदे,
गायें थी अति-प्यारी।
वन-वन घूमे गाय चराते,
कहलाये बनवारी ।

खूब दूध दधि माखन खाए,
मित्रों को भी खिलाये।
 गायों के रक्षक पालक बन ,
थे गोपाल कहाए।

खेल-खेल में जाने कितने, 
दुष्टों को संहारा ।
मथुरा जाकर अत्याचारी,
कंस नृपति को मारा ।

गीता ज्ञान दिया अर्जुन को,
धर्म-कर्म समझाया।
"श्री कृष्ण भगवान" का बच्चो! 
विश्व-पूज्य पद पाया।।


11 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद देवेन्द्र जी...

      राधे-राधे जपत ही भव दुख सबहि नसांय।
      बिनु राधे-राधे कहे कान्हा कब हरषांय ।

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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