खड़े त्रिभंगी मुद्रा में हैं,
वंशी अधर लगाए ।
छवि सांवरी पीत पट बांधे,
मोर-मुकुट सिर भाये।
मकराकृति कुंडल कानों में,
गल बैजंती माला ।
कृष्ण कन्हैया कान्हा मोहन ,
जसुमति-सुत गोपाला।
जन्मे जेल में थे मथुरा की,
गोकुलपुरी पठाए।
थे वासुदेव-देवकी के सुत,
यसुमति पुत्र कहाए।
गोकुल में वे खेले-कूदे,
गायें थी अति-प्यारी।
वन-वन घूमे गाय चराते,
कहलाये बनवारी ।
खूब दूध दधि माखन खाए,
मित्रों को भी खिलाये।
गायों के रक्षक पालक बन ,
थे गोपाल कहाए।
खेल-खेल में जाने कितने,
दुष्टों को संहारा ।
मथुरा जाकर अत्याचारी,
कंस नृपति को मारा ।
गीता ज्ञान दिया अर्जुन को,
धर्म-कर्म समझाया।
"श्री कृष्ण भगवान" का बच्चो!
विश्व-पूज्य पद पाया।।
जय जय राधे
जवाब देंहटाएंजय जय श्याम ।।
धन्यवाद----जै मुरली वाले की...
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कैलाश जी... जय कान्हा जी की...
हटाएंराधे..राधे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देवेन्द्र जी...
हटाएंराधे-राधे जपत ही भव दुख सबहि नसांय।
बिनु राधे-राधे कहे कान्हा कब हरषांय ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
धन्यवाद....
हटाएंजै कन्हैया की...
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
धन्यवाद गाफ़िल जी....आभार...
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