ब-जीवन्, जीव् व मानव्
भाग २. वैदिक विज्ञान का मत
प्रस्तुत प्रलेख के पिछले अंक भाग १. में हमने सृष्टि-क्रम शीर्षक विषय पर आधुनिक वैज्ञानिक मत प्रस्तुत किया था | इस भाग में हम उपर्युक्त विषय पर वैदिक व भारतीय दर्शन सम्मत मत प्रस्तुत करेंगे |
वैदिक साहित्य के अनुसार सृष्टि का निर्माण- ब्रह्मा द्वारा किया गया | ऋग्वेद ४/५८ का कथन है--""उद् ब्रह्मा शृंणवत्पश्यमानं चतु: श्रंगोs वसादिगौर एतत ||""---अर्थात हमारे द्वारा गाये गए स्तवन ब्रह्मा जी श्रवण करें जिन चार ( वेद रूपी ) श्रंगों वाले गौरवर्णी देव ने इस जगत को बनाया |
१. मूल सृष्टि क्रम--ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का मूल संक्षिप्त क्रम चार चरणों में बनाया गया | प्रथम जड़-सृष्टि जिसे सावत्री परिकर कहते हैं व द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ मनस्तत्व या चेतन-सृष्टि, जिसे गायत्री परिकर कहा गया | जिसमें भू:, ऊर्जा-तत्व् व भुवः,
मनस्तत्व, संकल्प भाव-तत्व है | ये तीन चेतन हैं - (१.) द्वितीय -देव ,
जो सदा देने वाले हैं परमार्थ भाव युक्त--देव,( वरुण ,पृथ्वी, अग्नि,पवन आदि )एवं बृक्ष (वनस्पति जगत ) | (२) तृतीय-मानव -आत्म बोध युक्त, ज्ञान कर्म पुरुषार्थ मय -पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ तत्व | (३) चतुर्थ -प्राणि जगत - प्रकृति के अनुसार सुविधा भाव से जीने वाले, मानव, वनस्पति व भौतिक जगत के मध्य संतुलन रखने वाले |
वस्तुत विज्ञान के अनुसार पहले पदार्थ होता है पुनः उसमे किसी तरह जीवन उद्भूत होता है | चेतन तत्व, भाव-तत्त्व व रूप-तत्वों की अवधारणा विज्ञान में नहीं है जबकि वैदिक-विज्ञान में उससे आगे जाकर , चेतन तत्व की सदैव उपस्थिति की बात कही गयी है; ब्रह्मा द्वारा भाव-तत्व, रूप-तत्वों की सृष्टि के बाद जीव-जगत बनाया जाता है एवं चेतन-तत्व, मूल आदि-ऊर्जा व भाव एवं रूप सृष्टि में प्रवेश करके जीव का रूप देतीं हैं, जो वनस्पति, प्राणी व मानव सभी में प्रवेश करती है | यह व्यवस्था (भूयज्ञ) पुनः -पुनः क्रमिक चक्रीय क्रम में होती रहती है| यह भारतीय विज्ञान व दर्शन का विशिष्ट विचार है | ऋग्वेद १०/७२/४ -में कहागया है--
वस्तुत विज्ञान के अनुसार पहले पदार्थ होता है पुनः उसमे किसी तरह जीवन उद्भूत होता है | चेतन तत्व, भाव-तत्त्व व रूप-तत्वों की अवधारणा विज्ञान में नहीं है जबकि वैदिक-विज्ञान में उससे आगे जाकर , चेतन तत्व की सदैव उपस्थिति की बात कही गयी है; ब्रह्मा द्वारा भाव-तत्व, रूप-तत्वों की सृष्टि के बाद जीव-जगत बनाया जाता है एवं चेतन-तत्व, मूल आदि-ऊर्जा व भाव एवं रूप सृष्टि में प्रवेश करके जीव का रूप देतीं हैं, जो वनस्पति, प्राणी व मानव सभी में प्रवेश करती है | यह व्यवस्था (भूयज्ञ) पुनः -पुनः क्रमिक चक्रीय क्रम में होती रहती है| यह भारतीय विज्ञान व दर्शन का विशिष्ट विचार है | ऋग्वेद १०/७२/४ -में कहागया है--
""भूर्जग्यो उत्तानापदो भुव आशा अजायन्त |
अदिर्तेदक्षो अजायत दक्षाद्वादिती परि: ||"" ---भू-(आदि प्रवाह) से ऊर्ध्व गतिशील ( मूल आदि कणों ) की रचना हुई| भुव: ( होने की ) से आशा (संकल्प शक्ति-चेतन) का विकास हुआ | अदिति ( मूल अखंड आदिशक्ति ) से दक्ष (सृजन के कुशलता युक्त प्रवाह ) उत्पन्न हुए, दक्ष से पुनः अदिति (अखंड प्रकृति, पृथ्वी, जग) उत्पन्न हुआ |
२. भाव सृष्टि की उत्पत्ति --जैसा पहले ही बतायाजाचुका है कि भुव: -चेतन तत्व -
शंभु व माया ( आदि ऊर्जा तत्व ) के संयोग से महत्तत्व( आदि व्यक्त तत्व ) बनता है और उससे अहं (जो वस्तुतः आदि सृष्टि भाव-तत्व है ) | अहं के मूल तीन गुणों से ही सारे भाव-तत्व उत्पन्न हुए | अतः सत् , तम् , रज ये तीन गुण ही प्रत्येक वस्तु, भाव व क्रिया के गुण होते हैं | इसप्रकार---
----अहं के तामस भाव से -शब्द, आकाश,धारणा, ध्यान, विचार , स्वार्थ, लोभ, भय ,सुख, दुःख आदि बनाए गए |
----अहं के राजस भाव से -५ ज्ञानेन्द्रियाँ -कान, नाक, नेत्र, जिव्हा,त्वचा आदि. ५ कर्मेन्द्रियाँ -वाणी, हाथ, पैर, गुदा, उपस्थ व तैजस ( वस्तु का रसना भाव ) जिससे जल के संयोग से गंध, सुगंध बने|
----अहं के सत् भाव से --मन (११ वीं इन्द्रिय ), ५ तन्मात्राएँ ( ज्ञानेन्द्रियों के भाव -शब्द, रूप, स्पर्श, गंध, रस ) एवं १० इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव |
----अहं के तामस भाव से -शब्द, आकाश,धारणा, ध्यान, विचार , स्वार्थ, लोभ, भय ,सुख, दुःख आदि बनाए गए |
----अहं के राजस भाव से -५ ज्ञानेन्द्रियाँ -कान, नाक, नेत्र, जिव्हा,त्वचा आदि. ५ कर्मेन्द्रियाँ -वाणी, हाथ, पैर, गुदा, उपस्थ व तैजस ( वस्तु का रसना भाव ) जिससे जल के संयोग से गंध, सुगंध बने|
----अहं के सत् भाव से --मन (११ वीं इन्द्रिय ), ५ तन्मात्राएँ ( ज्ञानेन्द्रियों के भाव -शब्द, रूप, स्पर्श, गंध, रस ) एवं १० इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव |
३. रूप सृष्टि की संरचना --जीव व शरीर से पहले ही भाव-सृष्टि की तरह रूप सृष्टि होती है | पुनः शरीर उत्पन्न होने पर वे सब उसमें प्रवेश करते हैं, यह भी वैदिक ज्ञान
का विशिष्ट पहलू है । ब्रह्मा के स्वयं के विविध भाव, रूप, गुण, शरीर व शरीर त्याग से क्रमिक रूप में अन्य विविध श्रिष्टि रचना हुई ।( इसे विज्ञानं कीभाषा में कह सकते हैं कि ब्रह्मा के ज्ञान, मन व संकल्प शक्ति के अनुसार क्रमिक विकास होता गया ।---
---तमोगुणी--सोते समय सृष्टि - जो तिर्यक-अग्या्नी, भोगी, इच्छा-वशी, क्रोधी, विवेक शून्य, भ्रष्ट आचरण वाले-पशु-पक्षी-पुरुषार्थ के अयोग्य ।
---सत्व गुणी---देव, ग्यान वान,विषय प्रेमी, दिव्य-परन्तु पुरुषार्थ के अयोग्य ।
-- -रज़ो गुणी--तप साधना भाव में-मानव की रचना -जो अति विकसित प्राणी था, साधनाशील, क्रियाशील, तीनों गुणों से युक्त-सत, तम, रज़-कर्म व लक्ष्योन्मुख, सुख-दुख रूप, द्वन्द्व युक्त,श्रेय-प्रेय के योग्य, ब्रह्म का सबसे उत्तम साधक ।---मानव की कोटियों में---ब्रह्मा के तम-भाव देह से-आसुरी-प्रवृत्ति, जानु से-वैश्य भाव, चरण से शूद्र भाव, उस देह के त्याग से-रात्रि व अग्यान भाव । सत्व भाव देह से--मुख से ब्राह्मण भाव, पार्श्वसे पितृगण व सन्ध्या भाव, इस देह के त्याग से -दिन व उज्जवल ग्यान के भाव ।रज़ो भाव देह से -काया से-काम व क्षुधा भाव, वक्ष से-क्षत्रिय व क्षात्र भाव,शौर्य, इस देह के त्याग से -उषा व उषा भाव । अन्य विशिष्ट कोटियां--ब्रह्मा के प्रसन्न भाव -गायन-वादन में- गन्धर्व, अन्धेरे में-राक्षस,यक्ष आदि भूखी श्रिष्टि, क्रोध में क्रोधी व मान्साहारी, पिशाच आदि बने । पांच मुखों(ज्ञान ) से--चार वेद—ऋक, यजु, साम, अथर्व ; गायत्री, ब्रहत्साम, जगती छंद, वैराग्य व पन्चम मुख से आयुर्वेद तत्पश्चात---ब्रह्मचर्य,
---तमोगुणी--सोते समय सृष्टि - जो तिर्यक-अग्या्नी, भोगी, इच्छा-वशी, क्रोधी, विवेक शून्य, भ्रष्ट आचरण वाले-पशु-पक्षी-पुरुषार्थ के अयोग्य ।
---सत्व गुणी---देव, ग्यान वान,विषय प्रेमी, दिव्य-परन्तु पुरुषार्थ के अयोग्य ।
-- -रज़ो गुणी--तप साधना भाव में-मानव की रचना -जो अति विकसित प्राणी था, साधनाशील, क्रियाशील, तीनों गुणों से युक्त-सत, तम, रज़-कर्म व लक्ष्योन्मुख, सुख-दुख रूप, द्वन्द्व युक्त,श्रेय-प्रेय के योग्य, ब्रह्म का सबसे उत्तम साधक ।---मानव की कोटियों में---ब्रह्मा के तम-भाव देह से-आसुरी-प्रवृत्ति, जानु से-वैश्य भाव, चरण से शूद्र भाव, उस देह के त्याग से-रात्रि व अग्यान भाव । सत्व भाव देह से--मुख से ब्राह्मण भाव, पार्श्वसे पितृगण व सन्ध्या भाव, इस देह के त्याग से -दिन व उज्जवल ग्यान के भाव ।रज़ो भाव देह से -काया से-काम व क्षुधा भाव, वक्ष से-क्षत्रिय व क्षात्र भाव,शौर्य, इस देह के त्याग से -उषा व उषा भाव । अन्य विशिष्ट कोटियां--ब्रह्मा के प्रसन्न भाव -गायन-वादन में- गन्धर्व, अन्धेरे में-राक्षस,यक्ष आदि भूखी श्रिष्टि, क्रोध में क्रोधी व मान्साहारी, पिशाच आदि बने । पांच मुखों(ज्ञान ) से--चार वेद—ऋक, यजु, साम, अथर्व ; गायत्री, ब्रहत्साम, जगती छंद, वैराग्य व पन्चम मुख से आयुर्वेद तत्पश्चात---ब्रह्मचर्य,
ग्रह्स्थ, बानप्रस्थ, सन्यास चार आश्रम, कर्म बिमुख लोगों के लिये-नर्क आदि का दन्ड विधान । यह ब्रह्मा का क्रमिक विकास -विधान है, मानव का
ज्ञान-अज्ञान आदि से जैसा भाव होता गया वैसा ही प्राणी भाव बनता गया ।( शायद गुण सूत्र, क्रोमोसोम, हेरीडिटी, स्वभाव का क्रमिक विकास ) ।
४. जीवन— विज्ञान के अनुसार जीवन बाहर से आया व विकसित हुआ, इसके विपरीत वैदिक मत के अनुसार-चेतन ब्रह्म सदैव ही उपस्थित रहता है-अव्यक्त-- भुव: रूप में और व्यक्त होकर माया से संपृक्त होकर ब्रह्मा द्वारा बनाये शरीर में भाव व रूप सृष्टि के अनुसार प्रविष्ठ होकर जीवन की उत्पति करता, व जीव बनता है।
५. जीव, जीवन-वर्धन, सन्तति-वर्धन, लिन्ग-चयन, एवं स्वचालित मैथुन प्रक्रिया- ब्रह्मा ने समस्त प्राणियों, देव, असुर, वनस्पति के साथ ही मानव का निर्माण किया, यह सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति थी जिसे सभी पुरुषार्थ ,धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष ) के योग्य पाया गया | यह क्रम इस प्रकार था-
----अ. मानस सृष्टि
----ब. संकल्प सृष्टि
----स. काम संकल्प सृष्टि
----द. मैथुनी (माहेश्वरी ) प्रजा...... क्रमशः -----
१. सर्वप्रथम ब्रह्मा ने -सनक,सनंदन ,सनातन व सनत्कुमार --चार मानस पुत्र बनाए ,जो योग साधना हेतु रम गए।
२- पुनःसंकल्प से नारद, भृगु, कर्म, प्रचेतस, पुलह, अन्गिरिसि, क्रतु, पुलस्त्य, अत्री, मरीचि --१० प्रजापति बनाए..
३.-पुनः संकल्प द्वारा --९ पुत्र- भृगु, मरीचि, पुलस्त्य, अंगिरा , क्रतु, अत्रि, वशिष्ठ, दक्ष, पुलह एवं ---९ पुत्रियां --ख्याति, भूति , सम्भूति, प्रीति, क्षमा, प्रसूति आदि उत्पन्न कीं |
यद्यपि ये सब संकल्प द्वारा संतति प्रवृत्त थे परन्तु कोई निश्चित, सतत स्वचालित प्रक्रिया व क्रम नहीं था ( सब एकान्गी थे--प्राणियों व वनस्पतियों में भी ), अतः ब्रह्मा का सृष्टि क्रम व कार्य समाप्त नही हो पा रहा था |
----अ. मानस सृष्टि
----ब. संकल्प सृष्टि
----स. काम संकल्प सृष्टि
----द. मैथुनी (माहेश्वरी ) प्रजा...... क्रमशः -----
१. सर्वप्रथम ब्रह्मा ने -सनक,सनंदन ,सनातन व सनत्कुमार --चार मानस पुत्र बनाए ,जो योग साधना हेतु रम गए।
२- पुनःसंकल्प से नारद, भृगु, कर्म, प्रचेतस, पुलह, अन्गिरिसि, क्रतु, पुलस्त्य, अत्री, मरीचि --१० प्रजापति बनाए..
३.-पुनः संकल्प द्वारा --९ पुत्र- भृगु, मरीचि, पुलस्त्य, अंगिरा , क्रतु, अत्रि, वशिष्ठ, दक्ष, पुलह एवं ---९ पुत्रियां --ख्याति, भूति , सम्भूति, प्रीति, क्षमा, प्रसूति आदि उत्पन्न कीं |
यद्यपि ये सब संकल्प द्वारा संतति प्रवृत्त थे परन्तु कोई निश्चित, सतत स्वचालित प्रक्रिया व क्रम नहीं था ( सब एकान्गी थे--प्राणियों व वनस्पतियों में भी ), अतः ब्रह्मा का सृष्टि क्रम व कार्य समाप्त नही हो पा रहा था |
४--ब्रह्मा ने पुनःप्रभु का स्मरण किया--- तब अर्ध नारीश्वर( द्विलिन्गी) रूप ,में रुद्र देव जो शम्भु महेश्वर व माया का सम्मिलित रूप था, प्रकट हुए। जिसने स्वयम को --क्रूर-सौम्या; शान्त-अशान्त;श्यामा-गौरी;शीला-अशीला आदि ११ नारी भाव एवम ११ पुरुष भावों में विभक्त किया। रुद्रदेव के ये सभी ११-११ स्त्री-पुरुष भाव सभी जीवों में समाहित हुए, इस प्रकार काम सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ।
६.जीव श्रिष्टि--- ब्रह्मा ने स्वयम के दायें-बायें भाग से मनु व शतरूपा को प्रकट किया,जिनमे रुद्रदेव के ११-११ नर-नारी भाव समाहित होने से वे प्रथम मानव युगल हुए। वे मानस,सन्कल्प व काम सन्कल्प विधियों से सन्तति उत्पत्ति में प्रव्रत्त थे, परन्तु अभी भी पूर्ण स्वचालित प्रक्रिया नहीं थी।
------पुनः ब्रह्मा ने मनु की काम सन्कल्प पुत्रियां आकूति व प्रसूति-को दक्ष को दिया। दक्ष को मानस-सृष्टि फ़लित नहीं थी अतः उसने काम-सम्भोग प्रक्रिया से ५००० व १०००० पुत्र उत्पन्न किये,परन्तु सब नारद के उपदेश से तपस्या को चले गये । दक्ष ने नारद को सदा घूमते रहने का श्राप देदिया।
------पुनः दक्ष ने प्रसूति के गर्भ से -सम्भोग, मैथुन जन्य प्रक्रिया से ६० पुत्रियों को जन्म दिया, जिन्हें सोम, अन्गिरा, धर्म, कश्यप व अरिष्ट्नेमि आदि ऋषियों को दिया गया जिनसे मैथुनी क्रिया द्वारा, सन्तति से आगे स्वतः क्रमिक सृष्टि-क्रम चला, व चल रहा है। अतः वास्तविक सृष्टि-क्रम दक्ष से माना जाता है।
-- प्रथम मैथुनी क्रम प्रसूति से चला अतः गर्भाधान को प्रसूति एवं जन्म को प्रसव कहा जाता है।
-- शम्भु महेश्वर, इस लिन्गीय चयन व निर्धारण व काम-सम्भोग स्वतः उत्पत्ति प्रणाली के मूल हैं अतः इस सृष्टि को "माहेश्वरी प्रज़ा या सृष्टि " कहाजाता है।
------पुनः दक्ष ने प्रसूति के गर्भ से -सम्भोग, मैथुन जन्य प्रक्रिया से ६० पुत्रियों को जन्म दिया, जिन्हें सोम, अन्गिरा, धर्म, कश्यप व अरिष्ट्नेमि आदि ऋषियों को दिया गया जिनसे मैथुनी क्रिया द्वारा, सन्तति से आगे स्वतः क्रमिक सृष्टि-क्रम चला, व चल रहा है। अतः वास्तविक सृष्टि-क्रम दक्ष से माना जाता है।
-- प्रथम मैथुनी क्रम प्रसूति से चला अतः गर्भाधान को प्रसूति एवं जन्म को प्रसव कहा जाता है।
-- शम्भु महेश्वर, इस लिन्गीय चयन व निर्धारण व काम-सम्भोग स्वतः उत्पत्ति प्रणाली के मूल हैं अतः इस सृष्टि को "माहेश्वरी प्रज़ा या सृष्टि " कहाजाता है।
भला जबतक नारी भाव की उत्पत्ति न होती स्वतः सृष्टि-क्रम कैसे पूरा हो सकता था??
७-मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणियों का जन्म--कश्यप ऋषि
से उनकी विभिन्न पत्नियों से हुआ--
अदिति-से देव; दिति से दैत्य, दनु से दानव, स्वोषा से रुद्रगण, भद्रा से गन्धर्व, सन्ध्या से राक्षस, क्रोधाविष्ठा से जन्गली जानवर, वारु्णी- एरावती से गज,वराह, दिग्गज़, सरमा से कुत्ते-बिल्ली वंश, व्रत्ता से विध्याधर,किन्नर; जांगल से-वनस्पति, कामधेनु से गाय,बैल आदि भारवाहक पशु, वडवा से अश्व, गधे, ऊंट खच्चर, श्येनी-शुकी- धतराष्ट्री, ग्रधी, क्रोन्ची से समस्त पक्षी, मैढक,मत्स्य, जलचर व विनता से गरुड और कद्रू से नाग, व अन्य रेंगने वाले सरीसृप आदि उत्पन्न हुए।
--------इस् प्रकार ब्रह्मा का सृष्टि-क्रम संपूर्ण हुआ ।---यह क्रम सदैव संपूर्ण रहता है क्रमिक लय-प्रलय ---सृष्टि---लय-प्रलय के क्रमानुसार ...क्यॊकि ब्रह्म सदैव पूर्ण है---
अदिति-से देव; दिति से दैत्य, दनु से दानव, स्वोषा से रुद्रगण, भद्रा से गन्धर्व, सन्ध्या से राक्षस, क्रोधाविष्ठा से जन्गली जानवर, वारु्णी- एरावती से गज,वराह, दिग्गज़, सरमा से कुत्ते-बिल्ली वंश, व्रत्ता से विध्याधर,किन्नर; जांगल से-वनस्पति, कामधेनु से गाय,बैल आदि भारवाहक पशु, वडवा से अश्व, गधे, ऊंट खच्चर, श्येनी-शुकी- धतराष्ट्री, ग्रधी, क्रोन्ची से समस्त पक्षी, मैढक,मत्स्य, जलचर व विनता से गरुड और कद्रू से नाग, व अन्य रेंगने वाले सरीसृप आदि उत्पन्न हुए।
--------इस् प्रकार ब्रह्मा का सृष्टि-क्रम संपूर्ण हुआ ।---यह क्रम सदैव संपूर्ण रहता है क्रमिक लय-प्रलय ---सृष्टि---लय-प्रलय के क्रमानुसार ...क्यॊकि ब्रह्म सदैव पूर्ण है---
""""ओम पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥"""
-----क्रमश : (ब)जीवन जीव व मानव ---भाग ३ ..भविष्य का महामानव ... अगली पोस्ट में ...
-----क्रमश : (ब)जीवन जीव व मानव ---भाग ३ ..भविष्य का महामानव ... अगली पोस्ट में ...
abhar sir ji
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सोनू जी...
हटाएंदोस्तों क्या आपका भी नेट से पैसे कमाने का मन करता है
जवाब देंहटाएंमैं तुम्हारे लिए कुछ दिलचस्प है - आप आसानी से PaisaLive.com के माध्यम से नियमित आय ऑनलाइन कमा सकते हैं!
मेल पढने के आपको पैसे मिलते है तो देर किस बात की अभी रजिस्टर करे
abhi is link par jaae......
..http://www.PaisaLive.com/register.asp?5000971-6731800
बेहतरीन आलेख..
जवाब देंहटाएंआभार डॉ श्याम गुप्त जी!!
हटाएंधन्यवाद सवाई जी....
हटाएंबड़ी मेहनत से तैयार की गई पोस्ट.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद काजल जी...
हटाएं