हे मयूर !
तुम किसलिए नृत्य करते हो ?
मयूरी,
प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं समझती है;
इसलिए तो तुम्हारे साथ नृत्य नहीं करती है |
तुम नृत्य लय हो जाते हो,
प्रेम आवेश में खो जाते हो ;
विरत मोरनी की याद मन में लाते हो,
इसीलिये तो आंसू बहाते हो ||
मोरनी !
तुम क्यों नृत्य नहीं करती हो?
क्यों प्रियतम से विरत रहती हो ?
मोरनी ने अपनी कूक से -
वन गुंजायमान किया ,
अपना समाधान यूं दिया ||
प्रेम,
अंतर्मन की गहराई से-
किया जाता है ;
मेरी कूक गुंजन के बिना,
मोर कहाँ नाच पाता है |
मयूर की न्रित्य-छटा--
मोरनी को इतनी भाती है, कि -
सुध-बुध खोकर -
नाचना भूल जाती है |
प्रिया की प्रेम-विह्वलता में -
मोर -इतना अविभूत होजाता है कि -
प्रियतम की आँखों में -
आंसू छलक आता है ||
आँसू, तो-
महज़ एक निशानी है;
यह तो मोर-मोरनी की--
प्रेम-कहानी है |
di
जवाब देंहटाएंprem ki ek anupam abhivykti aur anuthi paribhashha----
bahut bahut hi behtreen
hardik naman ke saath
poonam
धन्यवाद -- झरोखा जी....
हटाएं" जैसी देखी प्रीति तुम्हारी,
परिभाषा वैसी रच डाली।"
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति । प्रेम की अति सुंदर परिभाषा का समन्वय आपकी कविता में देखने को मिला । मरे पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रेम जी --- आपतो स्वयं सरोवर हैं...
हटाएं"प्रेम उदधि में डूबिये,
डूबे सो उतराय।"
खूबसूरत रचना ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति.
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