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    1 माह पहले

रविवार, 6 मई 2012

मयूर नृत्य ---डा श्याम गुप्त..



 हे मयूर !
 तुम किसलिए नृत्य करते हो ? 
मयूरी, 
प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं समझती है;
इसलिए तो तुम्हारे साथ नृत्य नहीं करती है |
तुम नृत्य लय हो जाते हो,
प्रेम आवेश में खो जाते हो ;
विरत मोरनी की याद मन में लाते हो,
इसीलिये तो  आंसू बहाते हो ||

मोरनी !
तुम क्यों नृत्य नहीं करती हो? 
क्यों प्रियतम से विरत रहती हो ?
मोरनी ने अपनी कूक से -
 वन गुंजायमान किया ,
अपना समाधान यूं दिया  ||

प्रेम,
अंतर्मन की गहराई से-
किया जाता है  ;
मेरी कूक गुंजन के बिना,
मोर कहाँ नाच पाता है  |
मयूर की  न्रित्य-छटा--
मोरनी को इतनी भाती है, कि -
सुध-बुध खोकर -
नाचना भूल जाती है |
प्रिया की प्रेम-विह्वलता में -
मोर -इतना अविभूत होजाता है कि -
प्रियतम की आँखों में -
आंसू छलक आता है ||

आँसू, तो-
महज़ एक निशानी है;
यह तो मोर-मोरनी की--
प्रेम-कहानी है  |            

5 टिप्‍पणियां:

  1. di
    prem ki ek anupam abhivykti aur anuthi paribhashha----
    bahut bahut hi behtreen
    hardik naman ke saath
    poonam

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद -- झरोखा जी....

      " जैसी देखी प्रीति तुम्हारी,
      परिभाषा वैसी रच डाली।"

      हटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति । प्रेम की अति सुंदर परिभाषा का समन्वय आपकी कविता में देखने को मिला । मरे पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद प्रेम जी --- आपतो स्वयं सरोवर हैं...
      "प्रेम उदधि में डूबिये,
      डूबे सो उतराय।"

      हटाएं
  3. खूबसूरत रचना ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं

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