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देश की राजधानी में बड़ी घटना घटित हो गई एक बड़े नेता जी फंस गये
तो हंगामा भी बड़ा ही होना था और जब हंगामा होना है तो फिर टी वि चैनलवाले
भला कहाँ पीछे रहने वाले थे वैसे भी यह तो बड़ा हंगामा था जब कि ये तो छोटे
२ हंगामे को भी बड़ा तूफ़ान बना सकते हैं या बना देते हैं परन्तु कए करें
कमबख्त समय भी बेवफा प्रेमिका से कम थोड़ी है जो तुरंत एक सैकेंड लगाये कहीं
और चला जाता है बड़ी दुश्मनी निकलता है हरेक से क्यों कि जिन के पैसे के
बल पर टी वि चैनल चलता है उन की एड ठीक समय पर दिखाना भी तो जरूरी है
|क्यों कि जिस का नमक यानि पैसा खाया जा रहा है तो उसे हलाल करने का भी
फर्ज बनता है इसी लिए चाहे समाचार रोकना पड़े या सम्वाददाता को चुप करवाना
पड़े पर एड यानि विज्ञापन तो समय पर दिखाया ही जायेगा | इस के लिए बेशक कुछ
भी हो जाये |
इसी लिए यह काम यानि समाचार दिखाना कोई आसन काम नही है कि अकेली
उद्घोषिका या उद्घोषक इतने सारे लोगों को एक साथ निपटा ले और समय पर एड भी
दिखवा दे | कितना बड़ा संकट होता है उन के साथ पर दूसरे के संकट से उन्हें
क्या लेना देना यहाँ तो सब से पहले अपने को हल करने की लगती है परन्तु
बेचारा सम्वाददा जो कितनी मेहनत से खबर बनाता या लता है उस को तो अवसर
मिलना ही चाहिए |
परन्तु इतने सारा सम्वाद दाता शहर २ गली २ मैह्ल्ले २ फैले होते
हैं कि गिनती भी मुश्किल है क्यों कि जिस के भी पास बढिया कैमरा हो उसे ही
वे सम्वाददाता बना देते हैं | इसी लिए मेरे मौहल्ले के भी कई छोरों ने
बढिया कैमरा खरीदने के लिए क्या २ पापड़ नही बेले कि पूछो ही मत कई न घर पर
खूब क्लेश मचाया और कई ने और दूसरी तरह २की तिकडम बिठाई पर जैसे भी हुआ कई
लडके बढिया सा कैमरा खरीदने में कामयाब हो गये वह भी इस लिए कि चलो अब तो
उन का भी चेहरा टी वी जरूर दिखाई देगा ही |
विचार तो नेक था पर टी वी पर चहेरा दिखवाना कोई आसन काम है क्या ?
ये मुंह और मसूर की दाल | पता नही कैसे और कहाँ से बनी होगी यह कहावत पर
जैसे भी बनी हो यहाँ पर इसे लागू करने में मुझे भी अपने भाषा ज्ञान पर गर्व
सा अनुभव हो रहा है कि मुझे भी स्कूल में हिंदी वाले गुरु जी के द्वारा
रटवाए गये मुहावरे और उन का वाक्यों में प्रयोग करना आता है या यूं कहूँ
कि यह मुहावरा अचानक प्रयोग हो गया और मैं साहित्यकार बनने की कोशिश करने
लगा परन्तु बात तो सम्वाददाता के चेहरा दिखने की थी कि मैं तो बीच में वैसे
ही अपने मुंह मियां मिठ्ठू बन गया |
पर मुझे लगा साहित्यकार समझने की भूल से मुझे अपनेआप को विद्वान्
समझने का भ्रम होने लगा | इसी लिए एक दो स्म्वाद्दाताओं पर भी रौब गांठने
के लिए गाहे बगाहे उन्हें कोई कठिन शब्द बता देता था ताकि हो सके तो ये
अपने चहरे के साथ २ मेरा भी चहेरा टी वी पर दिखवा दें पर यहाँ तो उन के ही
चहेरा दिखने के लाले पड़े रहते हैं क्यों कि एक तो बड़े २ शहरों में ही रोज
२ क्या घंटे दो घंटे में ही इतने बड़े २ हंगामे होते रहते हैं कि छोटे
शहरों की तो बड़ी २ बातों का भी नबर नही आता है परन्तु कभी कभार दस बारह
सैकेंड के लिए किसी भाग्य शाली सम्वाददाता को यह सैभाग्य प्राप्त हो जाये
तो वाह २ क्या सौभाग्य है उस का |
ऐसा ही सौभाग्य मेरे छोटे से शहर में भी घट गया मुश्किल से बिल्ली
के भागों छींका टूट गया बड़ी पार्टी के छोटे नेता जी बड़े चक्कर में आ गये |
नेता जी बड़ी पार्टी से सम्बन्धित थे और घटना नेता जी से सीधे २ जुडी थी
इस लिए घटना बड़ी हो गई , नही तो उसे कौन बड़ी घटना मानता और पुलिस वाले ही
ले दे कर वहीं निबटा देते परन्तु अनसमझ नैसिखिये और जोशीले सम्वाददाता ने
उस की सूचना अपने चैनल को भी दे दी | बस फिर क्या था चैनल वालों ने अपने
पैनल वालों को आमंत्रित कर लोइय | कई २ पार्टियों के प्रवक्ता और तथा कथित
विशेषज्ञों को न्योता दे दिया गया | सम्वाददाता से पूरा ब्यौरा पहले ही
टेलीफोन से ले लिया गया | बस स्गुरु हो गया जबानी जंग का घ्माशन | इसी बीच
सुबह से तैयार खड़े स्म्वाद्द्दाता को भी कहा गया कि बताओ वहाँ क्या हुआ |
सम्वादाता का आज जैसे तैसे वर्षों का सपना पूरा होने जा रहा था कि आज तो उस
का चहेरा टी वी पर जरूर पूनम के चाँद से भी ज्यादा कुछ सैकेंड के लिए
चमकेगा ही परन्तु कई बार सिर मुड़ते ही ओले भी पड़ जाते हिंम पकी फसल पर भी
दुर्भग्य से बिजली गिर जाती है |
ऐसा ही इस के साथ भी हुआ जैसे ही इस ने अपने ज्वाला मुखी से मुख के
सामने माइक लगा कर बोलने के लिए मुंह खोला वैसे ही चैनल से सम्पर्क टूट
गया | बेचारे के पसीने छूओत गये पैरों के नीचे से जमीन खिसकने लगी बहुत
कोशिश की परन्तु इस की आवाज चैनल तक नही जा सकी | परन्तु इतनी देर भला
उद्घोषिका को कहाँ सहन थी इतनी देर तो वह अपने सामने किसी विशेषग्य को ही
नही बोलने देती है जितनी देर तक यह कनेक्शन को ही ठीक करता रहा इतने सैकेंड
बेकार चले गएर क्योंकि यहाँ तो सेकेंडों का हिसाब होता है सेकेंडों के
हिसाब से पैसा लिया और दिया जाता है | इसी लिए जब कैनेकष्ण मिला ही नही तो
उद्घोषिका ने उसे कह दिया कि हम आप के पास दुबारा आते हैं इतनी देर आप इस
घटना पर नजर बनाये रहिये इतना कह कर उस ने कनेकशन काट दिया तथा वह दूसरे
नेताओं के भयंकर वाक् युद्ध का मुस्करा २ आनन्द लेती रही जो एक दूसरे पर
बिना सिर पैर के आरोप लगा २ कर चिल्ला रहे थे कि मनो जनता को बता रहे हों
कि यही हमारा चरित्र है इसे ठीक से परख लो कि कौन अधिक शोर मचा कर जनता को
बेवकूफ बना सकता है और जो अधिक शोर मचा सकता है दूसरे को बोलने ही न देता
हो अपने नेता या नेत्री की शान में ज्यादा कसीदे पढ़ सकता हो वही तो सफल और
बड़ा नेता हो सकता है और प्रवक्ता भी |
परन्तु वहाँ तो कनेक्शन क्या टूटा बस यूं समझो कि बिजली कैमरे से
निकल कर सीधे सम्वाद दाता पर ही गिर गई हो | परन्तु आशा तृष्णा कहाँ मरती
हैं बेशक टी वि चैनल से कनेकशन ही तो टूटा हैं अब पता नही केंकष्ण कब जुड़
जाये इसी के पुन: जुड़ने की आशा हरेक सम्वादाता को बनी रहती है यही तो
जिजीविषा है इसे ही तो जिन्दगी कहते हैं वरना तो मौत दूर ही कितनी रहती है
जिन्दगी से | बस इस आशा और तृष्णा में सम्वाद दाता ने उद्घोषिका से इतना
सुन पाया कि आप नेता जी पर नजर बनाये रहिये | हम आप के पास कुछ समय बाद फिर
आते हैं |
परन्तु जब आप किसी पर नजर रखते हैं तो जिस पर आप कि नजर पड़ रही है
वह क्या उसे पता नही चलेगी | जरूर पता चल जाती है कि आप पर कौन २ नजर
लगाये हुए हैं क्यों कि नजर बड़े कमाल की चीज है ये नजरे तो बिना बोले भी
बहुत कुछ बोलती रहती हैं बहुत कुछ कहती रहती हैं बहुत कुछ देखती रहतीं हैं
और बहुत कुछ सुनती रहतीं हैं | भरी भीड़ में में जिस से चाहे बात कर लेतीं
हैं 'बहरे भुवन में करत हैं नैनन ही सों नेह 'इसी लिए धीरे २ नेता जी को भी
पता चल गया कि उन पर सम्वादाता नजरें बनाये हुए है और इसी कारण नेता जी
सावधान भी हो गये कि उन पर नजर रखी जा रही है | इसी लिए उन्होंने सावधानी
बरतनी शुरू कर दी परन्तु सम्वाददाता को और कौन सा काम था | उस ने भी पहले
तो केवल नजर रखनी शुरू कि और बाद में तो नजरें गढ़ानी शुरू कर दीं क्यों कि
नेता जी सावधान जो हो गये थे |
परन्तु जब किसी पर नजरें गढ़ ही जाएँ तो भला वह उन जनरों से कितने
दिन बच सकता है | आखिर नजर तो नजर है , कहते हैं नजर तो पत्थर को भी तोड़
देती है परन्तु जब नजर लग ही जाये तो लोग उस नजर को दूर करने का भी कोई न
कोई इंतजाम भी पूरे जोर शोर से करते हैं ताकि वह अधिक हानि कर्क न हो जाये |
इस लिए विभिन्न उपाय भी यहाँ प्रचलित हैं जिन में सिर के उपर से जूती
घुमाने से ले लकर दान दक्षिण तक बहुत सारे उपाय हैं | बस इसी लिए कोई उपाय
तो करना ही होता है इसी लिए नेता जी ने भी इस नजर को दूर करने का उपाय
सोचना शुरू कर दिया |
इन में सब से पहला उपाय जूती या जूता घुमाने का था परन्तु यह उपाय
तो नजर को दूर करने के बजाय नजर को और बढ़ा देता क्यों कि सम्वाददाता तो सब
के लिए शनि देवता स्वरूप ही होता है जिस के कोप से वे भी डरते हसीं जिन से
सब डरते हैं यानि पुलिस भी घबराती है और वह भी छोटे शहरों में तो ज्यादा
ही क्यों कि पुलिस वालों को पहले भी इस के कई उदाहरण देखने को मिलते रहे
हैं क्यों कि उन के कई बड़े अफसरान की इन के प्रेमालाप और विलाप के चक्कर
में नौकरी तो गई ही अपितु जेल बी भुगतनी पदी ऐसा ही पहले भीकई नेटों के साथ
भी होता रहा है इसी कारण उन्होंने जूता उतराई के उपाय को नजर उतरने के
उपाय में से छोड़ दिया |
परन्तु इस का कुछ न कुछ या कोई न कोई उपाय या इलाज तो करना ही था
इसी लिए उन्होंने दान दक्षिण वाला उपाय ही इस के लिए ज्यादा बेहतर समझा
परन्तु किसी को खो कि यह मेरे कष्टों की दक्षिणा है तो उसे कोई लेने के लिए
राजी नही होगा पहले बात और थी परन्तु अब ऐसा नही है अब तो लोग आदमी के
टुकड़े कर के भी दक्षिण ले लेते हैं परन्तु फिर भी कहीं न कहीं डॉ तो बना ही
रहता है कि कोई मना न कर दे इसी लिए दक्षिण देने के दूसरे उपाय सोचे गये
तो नेता जी ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की जिस में बढिया भोज और सुंदर उपहार
की व्यवस्था की गई तो नजरे कुछ २ कम होनी होनी शुरू हो गईं |
उस के बाद तो निरंतर बिना नागा शनि पर तेल चढाने की तरह ही दान
दक्षिण का कार्यक्रम शुरू हो गया होली और दीपावली तो स इस नजर से बचाव की
दक्षिण के विशेष अवसर थे ही इस के आलावा भी बीच २ में और अवसर तलाश २ कर यह
दान दक्षिण का कार्यक्रम सुचारू रूप से चलता रहा |
बस फिर क्या था धीरे २ दान दक्षिण के प्रभाव से नेता जी के कष्ट
धीरे २ दूर होने शुरू हो गये जो नजर उन पर बनाई हुई थी एयर बाद में गढ़ाई
हुई थी वह धीरे झुकने लगीं और फिर कुछ दिन बाद तो उन पर से हटा भी ली गई
क्यों कि आखिर बेचारा सम्वाददाता कितनी देर तक माइक पकड़े खड़ा रहता आखिर
वह भी तो एक दिल रखता है उस का दिल भी तो अच्छी २ चीजों के लिए मचलता है
आखिर उस का मन भी तो कोठी , कार और दूसरे साधनों के लिए ललचाता ही है
|क्यों कि वह भी तो इन्सान ही है इसी लए वह एक ही जगह पर कितनी देर नजर
बनाये रहे क्यों कि एक जगह नजर ठहराने से तो आँखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ने
का खतरा रहता है इसी लिए अब उसे कोई और जगह ढूंढनी थी जहाँ वह कुछ समय तक
नजरे बनाये रहे |
व्यंगकार :- श्री डॉ. वेद व्यथित जी
ब्लॉग का नाम / उसका लिक़ :- साहित्य सर्जक/
ब्लॉग का नाम / उसका लिक़ :- साहित्य सर्जक/
एक दम झक्कास व्यंग्य है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंग्य है.....आभार श्री डॉ. वेद व्यथित जी
हटाएंbndhu bhut 2 hardik aabhar
हटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
bndhuvr chndr bhooshn ji sadr hardik aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren
हटाएंएक दम सटीक व्यंग ,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, जिस्म महक ले आ,,,,,
bndhuvr sadr aabhar swikaren
हटाएंWaah padh ker maja aa gya, bahut karara vyangya.............
जवाब देंहटाएंbndhuvr bhut 2 hardik aabhar swikar kren
हटाएंडॉ. वेद व्यथित जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है..