विशिष्ट होकर भी साधारण रहना विशिष्टता है - महानता है ...... विशिष्ट दिखने का प्रयत्न करना व्यक्ति को साधारण बनाता है|....सामान्य होते हुए भी विशिष्ट का दिखावा अहं का परिचायक है .... बूँद में अव्यक्त रूप में महासागर निहित है और महासागर बूँद का व्यक्त रूप ..... उस ऊंचाई का क्या लाभ जहां प्रेम की उष्णता न हो ...उस प्रेम का क्या जिसमें उच्च -प्रतिमान न हों |
तुच्छ बूँद सा जीवन देदो ....
नहीं चाहता बनूँ हिमालय ,
तुच्छ बूँद सा जीवन देदो |
प्रेमिल अणु-कण शीतलता के,
अनुपम क्षण हों वह सुख देदो |
अमित ज्ञान भण्डार न चाहूँ ,
निर्मल स्वच्छ मुकुर मन देदो |
योग, ध्यान, ताप ,मुक्ति न मांगूं ,
अपनी सरल भक्ति प्रभु देदो | ---......तुच्छबूँद सा.....||
चाहे कौन शिखर को छूना,
जीवन की हो नहीं उष्णता |
तिनका नहीं उग सके जहां, बस-
भावहीन ठंडी शीतलता |
मुझको नीचे समतल में प्रभु ,
तुच्छ कुशा का आसान देदो |
नहीं चाहिए महल-तिमहले,
कुटिया का अनुशासन देदो | ------तुच्छ बूँद सा.......||
धन वैभव जीवन के सुख की ,
मन में कोई चाह रहे ना |
राज-पाट सत्ता के मद में ,
बहना, मेरी चाह रहे ना |
प्रीति-भाव हो रिक्त न मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो || ---तुच्छ बूँद सा ...||
---- चित्र गूगल साभार ...
तुच्छ बूँद सा जीवन देदो ....
नहीं चाहता बनूँ हिमालय ,
तुच्छ बूँद सा जीवन देदो |
प्रेमिल अणु-कण शीतलता के,
अनुपम क्षण हों वह सुख देदो |
अमित ज्ञान भण्डार न चाहूँ ,
निर्मल स्वच्छ मुकुर मन देदो |
योग, ध्यान, ताप ,मुक्ति न मांगूं ,
अपनी सरल भक्ति प्रभु देदो | ---......तुच्छबूँद सा.....||
चाहे कौन शिखर को छूना,
जीवन की हो नहीं उष्णता |
तिनका नहीं उग सके जहां, बस-
भावहीन ठंडी शीतलता |
मुझको नीचे समतल में प्रभु ,
तुच्छ कुशा का आसान देदो |
नहीं चाहिए महल-तिमहले,
कुटिया का अनुशासन देदो | ------तुच्छ बूँद सा.......||
धन वैभव जीवन के सुख की ,
मन में कोई चाह रहे ना |
राज-पाट सत्ता के मद में ,
बहना, मेरी चाह रहे ना |
प्रीति-भाव हो रिक्त न मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो || ---तुच्छ बूँद सा ...||
---- चित्र गूगल साभार ...
बहुत सुंदर संवेदन शील भाव समेटे हैं...रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सबाई सिंह जी...
हटाएंबहुत सुन्दर श्याम जी.... सरल व सर्वस्व समर्पण सिखलाती रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शालिनी जी...
हटाएं-----समर्पण = ...समन्वित रूप से अर्पण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है...भक्ति का तो समर्पण है ही मूल...
सभी ब्लोग्स को साथ जोडने का सुन्दर प्रयास .....
जवाब देंहटाएंकृपया मझे भी शामिल करें..
http://shalini-anubhooti.blogspot.in/
क्या कहने....बहूत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
धन्यवाद रीना जी.... मुकुर की भांति निर्मल मन में ही स्वयं के स्व को देखा जा सकता है ...
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देवेन्द्र जी...वह शिखर जिसमें भावों की महानता न हो उसकी शुष्क- शीतलता भी मन को शीतलता नहीं देती ...
हटाएंसुन्दर और भावप्रधान रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
धन्यवाद आशाजी...धन वैभव या सत्ता का मद या उनकी आशा ही मानव को मानव के प्रेम से विरत करती है...
हटाएंधन्यवाद शास्त्री जी ....अनुशासनहीन महलों के जीवन से अनुशासित जीवन महत्वपूर्ण है चाहे फिर कुटिया का ही जीवन क्यों न हो ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्रीजी .. अनुशासनहीन महलों के जीवन से अनुशासित कुटिया का जीवन अनुशंसनीय है....
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर
जवाब देंहटाएंdhanyavaad ....aapka jee ...
हटाएंबहोत अच्छे
जवाब देंहटाएंHindi Dunia Blog (New Blog)
http://hindiduniablog.blogspot.in/
dhanyavaad kilaash ji .....
हटाएंनिश्चीत ही आपने जो कहा वर्तनी सुधार करने को में उसे जरुर अमल में लाउंगा सर
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