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    3 हफ़्ते पहले

शुक्रवार, 8 जून 2012

तुच्छ बूँद सा जीवन देदो ...डा श्याम गुप्त ....

                   विशिष्ट होकर भी   साधारण रहना विशिष्टता  है - महानता है ...... विशिष्ट दिखने का प्रयत्न करना व्यक्ति को  साधारण बनाता  है|....सामान्य होते हुए भी विशिष्ट का दिखावा  अहं का परिचायक है .... बूँद में   अव्यक्त रूप में महासागर निहित है और महासागर बूँद का व्यक्त रूप ..... उस ऊंचाई का क्या लाभ जहां प्रेम की उष्णता न हो ...उस प्रेम का क्या जिसमें उच्च -प्रतिमान न हों |


तुच्छ बूँद सा जीवन देदो ....


नहीं  चाहता बनूँ हिमालय ,
 तुच्छ  बूँद सा जीवन देदो |
प्रेमिल अणु-कण शीतलता के,
अनुपम क्षण हों वह सुख देदो |


अमित ज्ञान भण्डार न चाहूँ ,
निर्मल स्वच्छ मुकुर मन देदो |
योग, ध्यान, ताप ,मुक्ति न मांगूं ,
अपनी सरल भक्ति प्रभु देदो |  ---......तुच्छबूँद सा.....||



चाहे कौन शिखर को छूना,
जीवन की हो नहीं उष्णता |
तिनका नहीं उग सके जहां, बस-
भावहीन  ठंडी शीतलता |


मुझको नीचे समतल में प्रभु ,
तुच्छ कुशा का आसान देदो |
नहीं चाहिए महल-तिमहले,
कुटिया  का अनुशासन देदो |     ------तुच्छ बूँद सा.......||

धन  वैभव जीवन के सुख की ,
मन में कोई चाह रहे ना |
राज-पाट सत्ता के मद में ,
बहना, मेरी चाह रहे ना |

प्रीति-भाव हो रिक्त न  मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो ||    ---तुच्छ बूँद सा ...||




                      ---- चित्र गूगल साभार ...










18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संवेदन शील भाव समेटे हैं...रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर श्याम जी.... सरल व सर्वस्व समर्पण सिखलाती रचना!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद शालिनी जी...
      -----समर्पण = ...समन्वित रूप से अर्पण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है...भक्ति का तो समर्पण है ही मूल...

      हटाएं
  3. सभी ब्लोग्स को साथ जोडने का सुन्दर प्रयास .....
    कृपया मझे भी शामिल करें..
    http://shalini-anubhooti.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. धन्यवाद रीना जी.... मुकुर की भांति निर्मल मन में ही स्वयं के स्व को देखा जा सकता है ...

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. धन्यवाद देवेन्द्र जी...वह शिखर जिसमें भावों की महानता न हो उसकी शुष्क- शीतलता भी मन को शीतलता नहीं देती ...

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. धन्यवाद आशाजी...धन वैभव या सत्ता का मद या उनकी आशा ही मानव को मानव के प्रेम से विरत करती है...

      हटाएं
  7. धन्यवाद शास्त्री जी ....अनुशासनहीन महलों के जीवन से अनुशासित जीवन महत्वपूर्ण है चाहे फिर कुटिया का ही जीवन क्यों न हो ...

    जवाब देंहटाएं
  8. धन्यवाद शास्त्रीजी .. अनुशासनहीन महलों के जीवन से अनुशासित कुटिया का जीवन अनुशंसनीय है....

    जवाब देंहटाएं
  9. उत्तर
    1. निश्चीत ही आपने जो कहा वर्तनी सुधार करने को में उसे जरुर अमल में लाउंगा सर

      हटाएं

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