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संतुलित कहानी----मंत्री जी शहर में
[ ये कहानियां मूलतः जन सामान्य की सांस्कृतिक, वैचारिक व व्यावहारिक समस्याओं व उनके समाधान से सम्बंधित होती हैं। इन कहानियों में मूलतः सामाजिक सरोकारों को इस प्रकार संतुलित रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उनके किसी कथ्य या तथ्यांकन का समाज व व्यक्ति के मन-मष्तिष्क पर कोई विपरीत अनिष्टकारी प्रभाव न पड़े .. अपितु कथ्यांकन में भावों व विचारों का एक संतुलन रहे। (जैसे बहुत सी कहानियों या सिने कथाओं में सेक्स वर्णन, वीभत्स रस या आतंकवाद, डकैती, लूटपाट आदि के घिनौने दृश्यांकन आदि से जन मानस में उसे अपनाने की प्रवृत्ति व्याप्त हो सकती है।) अतः मैं इनको संतुलित-कहानी कहता हूँ| ]
( डॉ. श्याम गुप्त )
पीछे से तेजी से आती हुई हूटर की आवाजों से आराध्य चौंक कर डर गया उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया। मुझे स्कूटर एक ओर रोकना पड़ा। गाडियां तेजी से हूटर बजाती हुईं व लाल-नीली बत्तियाँ चमकाती हुईं निकल गयीं।
थोड़ी देर में प्रकृतिस्थ होते हुए मेरे छः वर्ष के पोते आराध्य ने पूछा ,’ ये कौन थे बाबाजी ! इतनी तेज-तेज गाड़ी चलाकर लेजाते हुए, आवाजें करते हुए कहाँ जा रहे हैं इतनी जल्दी में। क्या कोई एक्सीडेंट हुआ है| कल ही तो एक रोड-एक्सीडेंट में पहुँचने के लिए एक एम्बुलेंस इसी तरह जा रही थी। और ये लाल-नीली बत्तियाँ भी लगा रखीं हैं गाड़ियों पर।
बेटा! ये हमारे माननीय नेताजी, मंत्रीजी हैं। संसद के लिए या घर के लिए जारहे होंगे।’ मैंने बताया।
तो उन्हें क्या जल्दी है ? और बावा ये मंत्री कौन होते हैं ? वे क्या करते हैं ?
वे समाज व देश के नेता हैं, लीडर जो संसद अर्थात ( अन्यथा पुनः एक नए सवाल की भूमिका बन जाती आराध्य के लिए )..हमारे देश की सबसे बड़ी पंचायत या कमेटी होती है, उसके सदस्य लोग हैं जो शासन चलाते हैं और क़ानून बनाते हैं।
अच्छा देश के लीडर यानी जो कहानियों में राजा होते हैं, राज चलाने वाले। पर अच्छे राजा लोग तो चुपचाप अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते थे। यहाँ सामने अस्पताल के आगे तो बोर्ड लगा है कि.. ‘शोर न करें, हार्न बजाना मना है‘.. और हमारे स्कूल के आगे भी.. ‘धीरे चलें ,बच्चे हैं’... का। क्या उन्हें पढना नहीं आता। कितनी तकलीफ होती होगी लोगों को, बच्चों को, गायों को कुत्तों को, सड़क पर चलते समय। आराध्य अपना नया-नया सीखा–सुना हुआ प्रकृति प्रेम जताते हुआ आगे कहने लगा,’ पेड़-पौधे भी तो आवाज से डर जाते होंगें, उन पर भी तो तेज आवाज का असर होता है। उनमें भी तो लाइफ होती है न बाबाजी ! कल ही तो साइंस की टीचर जी ने बताया था। आपको भी स्कूटर रोकना पड़ा, मुझे भी स्कूल को देर हो रही थी।’
‘बेटा! उन्हें पढने को समय नहीं मिला होगा, बिजी रहते हैं न।’ मैंने व्यर्थ का तर्क देकर उसे चुप कराने का प्रयत्न किया।
‘उन्हें पढने की क्या जरूरत है ? क़ानून बनाया तो उन्होंने ही होगा न, अभी आपने ही तो बताया था। फिर उनके पीछे पुलिस क्यों लगी थी’, आराध्य ने एक प्रश्न और जड दिया, ‘पुलिस तो चोर-डाकुओं के पकडने के लिए दौडती है। मुझे ऐसा लगा कि किसी चोर-डाकू के गिरोह को आगे –पीछे से घेरा जारहा हो या गाड़ियों के ब्रेक फेल हो गये हैं, इसीलिये कोई कुछ नहीं कह रहा है।’
‘अरे भाई ! पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए चल रही थी।’
क्यों, क्या क़ानून बनाने वालों को भी चोर-डाकुओं से डर रहता है ? आपकी कहानी में तो राजा लोग अकेले घूमते थे प्रजा का हाल जानने के लिए वो भी चुपचाप भेष बदल कर निकलते थे।
मैं धीरे धीरे तर्क-हीन होता जा रहा था। तभी एक और प्रश्न दाग दिया आराध्य ने ,’ बावा, ये नेता व मंत्री कैसे बनते हैं। मैं भी बड़ा होकर मंत्री बनूंगा।'
हम लोग, सभी लोग, देश की सारी जनता, वोट.....यानी किसी व्यक्ति के पक्ष में अपनी राय ( अन्यथा फिर एक प्रश्न उठ खडा होता ) देकर इन्हें चुनती है, मंत्री आदि बनाने के लिए।
अरे, बाबाजी, तब तो असली राजा तो बनाने वाले को या राय देने वाले को होना चाहिए न’, आराध्य ने अपनी विश्लेषक बाल-बुद्धि के ज्ञान से प्रभावित करने के अंदाज़ में कहा, ‘तब तो ये लोग काम करने वाले हुए यानी जनता के कर्मचारी। फिर इन्हें शहर के लोगों से या किसी से क्या डर जो पुलिस उनके साथ चल रही थी।’
अब मैं सोचने लगा कि क्या उत्तर दूं, तब तक स्कूल आगया। मैंने स्कूटर रोका और आराध्य टा...टा ..करके हाथ हिलाते हुए गेट के अंदर चला गया। मैंने एक गहरी सांस ली और स्कूटर स्टार्ट कर दिया।
[ ये कहानियां मूलतः जन सामान्य की सांस्कृतिक, वैचारिक व व्यावहारिक समस्याओं व उनके समाधान से सम्बंधित होती हैं। इन कहानियों में मूलतः सामाजिक सरोकारों को इस प्रकार संतुलित रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उनके किसी कथ्य या तथ्यांकन का समाज व व्यक्ति के मन-मष्तिष्क पर कोई विपरीत अनिष्टकारी प्रभाव न पड़े .. अपितु कथ्यांकन में भावों व विचारों का एक संतुलन रहे। (जैसे बहुत सी कहानियों या सिने कथाओं में सेक्स वर्णन, वीभत्स रस या आतंकवाद, डकैती, लूटपाट आदि के घिनौने दृश्यांकन आदि से जन मानस में उसे अपनाने की प्रवृत्ति व्याप्त हो सकती है।) अतः मैं इनको संतुलित-कहानी कहता हूँ| ]
( डॉ. श्याम गुप्त )
पीछे से तेजी से आती हुई हूटर की आवाजों से आराध्य चौंक कर डर गया उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया। मुझे स्कूटर एक ओर रोकना पड़ा। गाडियां तेजी से हूटर बजाती हुईं व लाल-नीली बत्तियाँ चमकाती हुईं निकल गयीं।
थोड़ी देर में प्रकृतिस्थ होते हुए मेरे छः वर्ष के पोते आराध्य ने पूछा ,’ ये कौन थे बाबाजी ! इतनी तेज-तेज गाड़ी चलाकर लेजाते हुए, आवाजें करते हुए कहाँ जा रहे हैं इतनी जल्दी में। क्या कोई एक्सीडेंट हुआ है| कल ही तो एक रोड-एक्सीडेंट में पहुँचने के लिए एक एम्बुलेंस इसी तरह जा रही थी। और ये लाल-नीली बत्तियाँ भी लगा रखीं हैं गाड़ियों पर।
बेटा! ये हमारे माननीय नेताजी, मंत्रीजी हैं। संसद के लिए या घर के लिए जारहे होंगे।’ मैंने बताया।
तो उन्हें क्या जल्दी है ? और बावा ये मंत्री कौन होते हैं ? वे क्या करते हैं ?
वे समाज व देश के नेता हैं, लीडर जो संसद अर्थात ( अन्यथा पुनः एक नए सवाल की भूमिका बन जाती आराध्य के लिए )..हमारे देश की सबसे बड़ी पंचायत या कमेटी होती है, उसके सदस्य लोग हैं जो शासन चलाते हैं और क़ानून बनाते हैं।
अच्छा देश के लीडर यानी जो कहानियों में राजा होते हैं, राज चलाने वाले। पर अच्छे राजा लोग तो चुपचाप अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते थे। यहाँ सामने अस्पताल के आगे तो बोर्ड लगा है कि.. ‘शोर न करें, हार्न बजाना मना है‘.. और हमारे स्कूल के आगे भी.. ‘धीरे चलें ,बच्चे हैं’... का। क्या उन्हें पढना नहीं आता। कितनी तकलीफ होती होगी लोगों को, बच्चों को, गायों को कुत्तों को, सड़क पर चलते समय। आराध्य अपना नया-नया सीखा–सुना हुआ प्रकृति प्रेम जताते हुआ आगे कहने लगा,’ पेड़-पौधे भी तो आवाज से डर जाते होंगें, उन पर भी तो तेज आवाज का असर होता है। उनमें भी तो लाइफ होती है न बाबाजी ! कल ही तो साइंस की टीचर जी ने बताया था। आपको भी स्कूटर रोकना पड़ा, मुझे भी स्कूल को देर हो रही थी।’
‘बेटा! उन्हें पढने को समय नहीं मिला होगा, बिजी रहते हैं न।’ मैंने व्यर्थ का तर्क देकर उसे चुप कराने का प्रयत्न किया।
‘उन्हें पढने की क्या जरूरत है ? क़ानून बनाया तो उन्होंने ही होगा न, अभी आपने ही तो बताया था। फिर उनके पीछे पुलिस क्यों लगी थी’, आराध्य ने एक प्रश्न और जड दिया, ‘पुलिस तो चोर-डाकुओं के पकडने के लिए दौडती है। मुझे ऐसा लगा कि किसी चोर-डाकू के गिरोह को आगे –पीछे से घेरा जारहा हो या गाड़ियों के ब्रेक फेल हो गये हैं, इसीलिये कोई कुछ नहीं कह रहा है।’
‘अरे भाई ! पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए चल रही थी।’
क्यों, क्या क़ानून बनाने वालों को भी चोर-डाकुओं से डर रहता है ? आपकी कहानी में तो राजा लोग अकेले घूमते थे प्रजा का हाल जानने के लिए वो भी चुपचाप भेष बदल कर निकलते थे।
मैं धीरे धीरे तर्क-हीन होता जा रहा था। तभी एक और प्रश्न दाग दिया आराध्य ने ,’ बावा, ये नेता व मंत्री कैसे बनते हैं। मैं भी बड़ा होकर मंत्री बनूंगा।'
हम लोग, सभी लोग, देश की सारी जनता, वोट.....यानी किसी व्यक्ति के पक्ष में अपनी राय ( अन्यथा फिर एक प्रश्न उठ खडा होता ) देकर इन्हें चुनती है, मंत्री आदि बनाने के लिए।
अरे, बाबाजी, तब तो असली राजा तो बनाने वाले को या राय देने वाले को होना चाहिए न’, आराध्य ने अपनी विश्लेषक बाल-बुद्धि के ज्ञान से प्रभावित करने के अंदाज़ में कहा, ‘तब तो ये लोग काम करने वाले हुए यानी जनता के कर्मचारी। फिर इन्हें शहर के लोगों से या किसी से क्या डर जो पुलिस उनके साथ चल रही थी।’
अब मैं सोचने लगा कि क्या उत्तर दूं, तब तक स्कूल आगया। मैंने स्कूटर रोका और आराध्य टा...टा ..करके हाथ हिलाते हुए गेट के अंदर चला गया। मैंने एक गहरी सांस ली और स्कूटर स्टार्ट कर दिया।
nice creation,wish u happy divali
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
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आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
धन्यवाद शास्त्रीजी एवं मधु सिंह जी....
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