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    1 माह पहले

बुधवार, 5 जून 2013

प्लास्टिकासुर ..पर्यावरण दिवस पर ...डा श्याम गुप्त की कविता




   प्लास्टिकासुर  ( कविता )
पंडितजी ने पत्रा पढ़ा, और-
गणना करके बताया,
जज़मान ! प्रभु के -
नए अवतार का समय है आया।
सुनकर छोटी बिटिया बोली,
उसने अपनी जिज्ञासा की पिटारी खोली;
महाराज, हम तो बड़ों से यही सुनते आये हैं,
बचपन से यही गुनते आये हैं, कि -
पृथ्वी पर जब कोइ असुर उत्पन्न होता है, तो वह-
ब्रह्मा, विष्णु या फिर शिव-शम्भो के
वरदान से ही  सम्पन्न होता है।
प्रारम्भ में जग, उस महाबली के,
कार्यों से प्रसन्न होता है;
पर जब वही महाबलवान,
बनकर सर्व शक्तिमान,
करता है अत्याचार,
देव दनुज नर गन्धर्व हो जाते हैं लाचार,
सारी पृथ्वी पर मच जाता है हाहाकार;
तभी लेते हैं, प्रभु अवतार।                     
हमें तो नहीं दिखता कोई असुर आज,
फिर अवतार की क्या आवश्यकता है महाराज?
पंडित जी सुनकर, हडबडाये, कसमसाए,
पत्रा बंद करके मन ही मन बुदबुदाए;
फिर, उत्तरीय कन्धों पर डालकर मुस्कुराए; बोले -
सच है बिटिया, यही तो होता है,
असुर - देव,दनुज, नर, गन्धर्व की  -
अति सुखाभिलाषा से ही उत्पन्न होता है।
प्रारम्भ में लोग उसके कौतुक को,
बाल-लीला समझकर प्रसन्न होते हैं।
युवावस्था में उसके आकर्षण में बंधकर
उसे और प्रश्रय देते हैं।
वही जब प्रौढ़  होकर दुःख देता है तो,
अपनी करनी को रोते हैं।
वही देवी आपदाओं को लाता है,फैलाता है;
अपनी आसुरी शक्ति को बढाता है, दिखाता है।
आज भी मौजूद हैं पृथ्वी पर, अनेकों असुर,
जिनमें सबसे भयावह है,' प्लास्टिकासुर '।
प्लास्टिक, जिसने कैसे कैसे सपने दिखाए थे,
दुनिया के कोने-कोने के लोग भरमाये थे।
वही आज बन गया है, आज --
पर्यावरण का नासूर,
बड़े बड़े तारकासुरों से भी भयावह है
आज का ये प्लास्टिकासुर।।


2 टिप्‍पणियां:

  1. सच है हमने अपने ही हाथों पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है ,
    विज्ञान और विकास के चलते हमारी प्रकृति नष्ट हो रही है -बेहतरीन रचना
    kavitakerang.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद मंजूषा जी ......विज्ञान व विकास भी आवश्यक हैं वशर्ते साथ में धर्म-दर्शन संस्कृति व ईश्वर पर आस्था व विश्वास हो...जो विज्ञान व विकास को समन्वित एवं मार्गदर्शित करें...

    जवाब देंहटाएं

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